Moral Story: नकलची

सुरेश अपने परिवार के साथ एक गांव में रहता था। पढ़ने-लिखने में वह बिलकुल ही कमजोर था। साथ ही उसमें ये कमी थी कि वो खुद को बहुत ही बुद्धिमान समझता था। किसी को कुछ करते देख लेता तो तुरंत उसकी नकल उतारने लगता।

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नकलची

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Moral Story नकलची:- सुरेश अपने परिवार के साथ एक गांव में रहता था। पढ़ने-लिखने में वह बिलकुल ही कमजोर था। साथ ही उसमें ये कमी थी कि वो खुद को बहुत ही बुद्धिमान समझता था। किसी को कुछ करते देख लेता तो तुरंत उसकी नकल उतारने लगता। चाहे वह उसके लिए ठीक हो या न हो। (Moral Stories | Stories)

गांव के स्कूल में वह अपनी उम्र से छोटे बच्चों के साथ पढ़ता था। वहां ज्यादातर बच्चे कुर्ता पायजामा या धोती-कुर्ता पहनते थे। पर सुरेश को लगता कि ये तो गंवारों वाले कपड़े हैं। वह भी घर में शहर की तरह रंग-बिरंगे पैंट शर्ट तथा अन्य कपड़े खरीदने की जिद करता। परंतु घर में सभी लोग मना कर देते थे। 

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एक बार उसके मामा गांव आए। वे शहर में रहते थे। उनके वापस जाते समय सुरेश ने भी साथ जाने की जिद की तो छुट्टियां होने के कारण वे उसे अपने साथ ले गए।

शहर में सुरेश अपने मामा के दो लड़को से मिलकर बहुत खुश हुआ। पर उनके कपड़ों तथा शहर की रौनक देखकर सुरेश मन ही मन ललचा रहा था। अपने ममेरे भाईयों की जीन्स, पैन्ट-शर्ट, चश्मे आदि को देखकर सोच रहा था कि उसके पास भी ये सब होता तो कितना अच्छा होता। (Moral Stories | Stories)

जब वापस आने की तैयारी होने लगी तो उसके मामा ने उसकी इच्छा देखते हुए एक पैन्ट-शर्ट भी दिलवा दी। पर इससे उसे संतोष नहीं हुआ तो उसने चुपचाप मामी से बहाना बनाया "मामी मेरा एक दोस्त थोड़ा गरीब है अगर कुछ कपड़े उसके लिए दे दो तो बहुत ही अच्छा रहेगा"।

ये सुनकर मामी को बहुत अच्छा लगा। उन्होंने घर में रखे हुए कुछ छोटे मगर साफ सुथरे पैंट शर्ट सुरेश को दे दिए। गांव आते समय सुरेश ने चश्मा और कुछ टोपियां भी खरीदीं ताकि वह शहर वाला दिखे।

गांव जाकर वह मामा का खरीदा पैंट-शर्ट पहनकर और चश्मा, टोपी लगाकर घूमने लगा। बच्चे भी उसे देखकर खुश हो रहे थे।कुछ तो...

गांव जाकर वह मामा का खरीदा पैंट-शर्ट पहनकर और चश्मा, टोपी लगाकर घूमने लगा। बच्चे भी उसे देखकर खुश हो रहे थे।कुछ तो ललचा भी रहे थे। पर सुरेश किसी को भी अपने कपड़ों को हाथ नहीं लगाने देता था। बात-बात पर कह देता- "तुम लोग गंवारों जैसे कपड़े पहनते हो। मुझे देखो बिल्कुल ही शहर का लगता हूं। (Moral Stories | Stories)

ये सुनकर बच्चों को बुरा तो लगता, पर वे क्या करते? दो-चार दिन बाद वह पैंट-शर्ट गंदा हो गया तो उसकी मां ने धोकर डाल दिया। अब वह क्या करता? उसने मामी से मांगकर लाए कपड़ों का थैला निकाला और एक बैगनी रंग की ड्रेस निकालकर पहनी। फिर चश्मा और टोपी लगाकर स्कूल गया।

वह अपने दोस्तों पर रौब झाड़ने लगा। उसकी कक्षा में राजू भी था। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने चुपचाप सुरेश की टोपी में एक छोटी सी लकड़ी खड़ी करके फंसा दी। तभी सब बच्चे हंसने लगे। राजू ने कहा- "बैगन राजा आए है"। ये सुनते ही अन्य सब बच्चे भी चिल्लाए-"बैंगन राजा आए हैं"। (Moral Stories | Stories)

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सुरेश कुछ समझ न पाया। उसने सोचा सब जलते हैं। वह वहां से पैर पटकता चला गया। पर रास्ते भर सब उसे देख हंसते रहे। घर में मां ने उसे देखकर हंसना शुरू किया तो उसने कारण पूछा। मां ने बताया कि बैंगनी कपड़े और हरी टोपी और ऊपर लगी डंण्डी से वो बिल्कुल ही बैंगन लग रहा है। सुरेश थोड़ा सनकी और मूर्ख तो था ही। उसने सोचा कल सबको अच्छी ड्रेस पहन के दिखाऊंगा। दूसरे दिन वह बिना सोचे समझे किसी सूट की पैंट किसी की शर्ट और किसी की टोपी लगाकर गया। चूंकि कपड़े थोड़े छोटे भी थे। अतः जो भी उसे आ सके उसने पहन लिए।

स्कूल में घुसते ही उसने एक लड़के को धकेला- "कल तू हंस रहा था। आज देख, मैंने कितने अच्छे कपड़े पहने हैं"। उस लड़के को भी गुस्सा आया और उसने सुरेश को गिरा दिया। 

सुरेश का पैंट पीछे से फट गया। पर उसे पता न चला वह रौब झाड़ता हुआ आगे चला। अब तो सभी बच्चे जोर-जोर से हंस रहे थे। राजू चिल्लाया- "विणयी विश्व तिरंगा प्यारा"। (Moral Stories | Stories)

सचमुच सुरेश ने उस दिन सफेद, नारंगी और हरे रंग के कपड़े पहने थे। वह पैर पटकता घर पहुंचा। मां से कहा- "सब मुझसे जलते हैं इसीलिए हंसते हैं। मैं शहर का लगता हूं ना, वे सब गंवार हैं"।

मां ने समझाया- "देखो जहां रहो वैसा ही भेष होना चाहिए। फिर तुमने शहर की नकल करके बिना सोचे कपड़े पहन लिए। तुम्हारा भेष सचमुच तिरंगे वाला ही है। तुम्हारा पैंट भी फटा है"।

अब सुरेश ने ध्यान दिया। सच बात थी। उसने उसी समय अपने गांव वाले ही कपड़े पहन लिए। उसने कभी शहर की नकल में उल्टे सीधे कपड़े नहीं पहने। फिर भी बच्चे उसे फटा झंडा कहते रहे। (Moral Stories | Stories)

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