हिंदी नैतिक कहानी: किसान और अध्यापक:- करीब बीस साल बाद बचपन के पाँच दोस्त संयोग-वश किसी शहर के एक होटल में आ मिले। इस तरह मिलकर उन्हें बेहद खुशी हुई। जब वे एक साथ खाने की मेज के पास आ बैठे तो परस्पर बातें भी करते रहे। सबसे पहले विजय ने अनिल से पूछा, कहो यार, आजकल क्या कर रहे हो? दोस्तों का पुनर्मिलन और उनके पेशे "मैं तो डॉक्टर हूँ, अपना कहो" अनिल गर्व से बोला। "मैं इंजीनियर हूँ" विजय ने भी उसी गर्व से जवाब दिया। दोनों की बातें सुनकर दीपक भी घमंड से बोल उठा, "यार, मैं तो आफिस अधीक्षक हूँ। धवल भी पीछे नहीं रहा। वह अहंकार और रोब से बोला, "मैं भी समाहर्त्ता हूँ"। बच गया नलिन। वह चुप था। चारों ने उन्हें छेड़ा, "अरे यार तुम कुछ बोलते नहीं। कहो भी क्या हो रहा है आजकल?" नलिन की अभिव्यक्ति और संदेह वह नम्र स्वर में बोला, "मैं किसान हूँ! सुनकर सब हंस पड़े। "झूठ कहते हो" बीच में ही अपनी हंसी रोक कर दीपक ने नलिन की बात काट दी, मैंने किसी से सुना है कि तुम किसी स्कूल में अध्यापक हो!" "सही सुना है नलिन बोला"। "फिर अपने को किसान क्यों कहते हो, जबकि तुम्हारी खेती बाड़ी कभी नहीं रही है?" सबने एक साथ उससे सवाल किया। किसान और अध्यापक का काम तो एक जैसा ही है!" नलिन ने जवाब दिया। "वह कैसे?" धवल ने पूछा। नलिन का तर्कपूर्ण उत्तर "स्कूल ही मेरा खेत है। वहाँ पढ़ने आने वाले बच्चों के मानसिक धरातल के अनुरूप उनमें विभिन्न किस्म के ज्ञान के बीज बोना ही मेरा कार्य है। ये ही बीज अंकुरित हो बड़े होकर अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार एक दिन डॉक्टर,इंजीनियर, अधीक्षक और समाहर्ता आदि बनते हैं। अब कहो, सही में मैं एक किसान हूँ न?" नलिन ने चारों पर अपनी दृष्टि दौड़ाई। दोस्तों का अहंकार और नलिन की भूमिका की सराहना नलिन के तर्क पूर्ण जवाब ने न केवल चारों को निरूत्तर बना दिया। बल्कि पद, अधिकार और वैभव के कारण उनके मन में उठ रहे अहंकार के अंकुर को समूल नष्ट भी कर दिया। "वाकई तुम सिर्फ किसान ही नहीं हो, राष्ट्र-निर्माता भी हो!" धवल के मुख से अनायास निकल पड़ा। अन्य तीनों ने भी इस तथ्य को स्वीकारा, "सचमुच हम जैसे लोग तो तुम जैसे कुशल माली की बगिया के फूल हैं, विविध किस्मों के फूल। कहानी से सीख:- सच्चा महत्व पद और प्रतिष्ठा में नहीं, बल्कि उस कार्य में निहित होता है जो समाज को लाभ पहुंचाता है। नलिन की कहानी हमें यह सिखाती है कि हर पेशे की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है और हमें अपने कार्य के मूल्य को समझकर अहंकार से दूर रहना चाहिए। यह भी पढ़ें:- हिंदी नैतिक कहानी: संतोष की नेकदिली हिंदी नैतिक कहानी: एक असाधारण पिता हिंदी नैतिक कहानी: लालच हर मुसीबत की जड़ है Moral Story: सुरेश का अप्रैल फूल