हिंदी नैतिक कहानी: संतोष की नेकदिली संतोष, एक खिलौने वाला, एक बच्चे को हरा गुब्बारा देता है लेकिन उसकी मां उसे संदेह के साथ देखती है। संतोष बच्चे को उसकी मां के पास ले जाता है, जब वह बच्चा जंगल में खो जाता है। कहानी ने एक संदेश दिया है कि बच्चे सभी के होते हैं और सबको उनकी मदद करनी चाहिए। By Lotpot 08 Aug 2024 in Stories Moral Stories New Update संतोष की नेकदिली Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 हिंदी नैतिक कहानी: संतोष की नेकदिली:- एक गांव था, गांव में खिलौने बेचने वाला रहता था। उसका नाम था संतोष। अपने नाम के अनुरूप वह संतोषी भी था। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद उसे जो भी मिल जाता, उसी में उसको संतोष था। एक दिन वह पास के गांव में खिलौने बेचने गया। उसके चारों ओर बच्चों की भीड़ लगी थी। बच्चे खिलौने खरीद रहे थे। अचानक संतोष की नजर भीड़ से अलग खड़े एक बच्चे की ओर गई। उसकी आयु लगभग पांच-छह वर्ष की होगी। बच्चा लगातार एक गुब्बारे की ओर देख रहा था। संतोष का सरल और दयालु व्यवहार "बेटे! तुम्हारा क्या नाम है? क्या तुम्हें गुब्बारा चाहिए"। संतोष ने पास जाकर पूछा। "मेरा नाम आलोक है। मैं हरा वाला गुब्बारा लूंगा। लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं"। बच्चे ने तुतलाती आवाज में कहा। "कोई बात नहीं, जब तुम बड़े हो जाना तब मुझे पैसे दे देना"। संतोष ने हरा गुब्बारा उसके हाथ में पकड़ाते हुए कहा। बच्चा गुब्बारा पाकर बहुत खुश था। संतोष भी खिलौना बेचने में लग गया। अचानक उसके कानों में किसी औरत की आवाज पड़ी। "कितनी बार मना किया है कि घर से बाहर मत निकला कर लेकिन तेरी समझ में आता ही नहीं। अरे! यह गुब्बारा तुझे किसने दिया?" मां का संदेह "बहन, मैंने दिया यह गुब्बारा। बच्चा गुब्बारे की ओर देख रहा था, मुझसे रहा न गया सो दे दिया। वैसे भी बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं, सारी दुनियां के होते हैं"। संतोष ने औरत का गुस्सा भाँपते हुए उसे समझाकर कहा। "कैसे होते हैं सारी दुनिया के? यह मेरा बेटा है, एक गुब्बारा देने से यह तेरा थोड़े ही हो जायेगा। अरे! तुम लोग इसी तरह रूप बदल-बदल कर आते हो और बच्चों को उठा ले जाते हो"। औरत ने गुब्बारा बच्चे से छीनकर संतोष को थमाते हुए कहा। संतोष अपने गांव वापस आ गया। उस दिन उसने कुछ खाया-पिया नहीं। उसे रात भर नींद न आई। वह उसी बच्चे के बारे में सोचता रहा। जंगल में खोया बच्चा कुछ दिनों बाद वह फिर उस गांव में पहुंचा। दिन भर खिलौना बेचने के बाद वह अपने गांव की ओर चल दिया। उसे गांव पहुंचने के लिए बीच में जंगल पार करना पड़ता था। अभी उसने जंगल में प्रवेश किया ही था कि उसके कानों में किसी बच्चे के रोने की आवाज पड़ी। वह आवाज की दिशा में तेजी से बढ़ा। पास जाने पर उसने बच्चे को देखा तो सहम सा गया। यह वही बच्चा था, जिसे उसने गुब्बारा दिया था। "बेटा, इतने घने जंगल में आने का साहस कैसे हुआ? तुम्हारी मां को पता चलेगा तो तुम्हें बहुत पीटेगी"। संतोष ने पूछा। मां की माफी और संतोष की नेकदिली बच्चा चुपचाप था। भय की वजह से उसके मुंह से एक शब्द नहीं निकला। संतोष ने बच्चे को गोद में उठाया और वापस उसके गांव की ओर चल दिया। वह बच्चे को लेकर उसके घर पहुंचा। घर पर भीड़ लगी थी। बच्चे को देखकर सभी के मुरझाये चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई। बच्चे की मां ने उसे सीने से लगा लिया। सभी संतोष को धन्यवाद दे रहे थे। बच्चे की मां बड़ी शर्मिन्दा थी। उसने माफी मांगी- "भैया! मुझे माफ कर दो। उस दिन मैं तुम्हें बहुत बुरा-भला कह गई। आज तुम न होते तो......."। बहन! यह तो मेरा फर्ज था। और बच्चे किसी एक के नहीं बल्कि सारी दुनिया के होते हैं। संतोष ने कहा। कहानी से सीख: सच्ची दया और मानवता का कोई भी कार्य, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, समाज में बड़ा सकारात्मक बदलाव ला सकता है। बच्चों की मदद करना और उन्हें प्यार देना सबका फर्ज है। यह भी पढ़ें:- हिंदी नैतिक कहानी: लालची बंदर की कहानी हिंदी नैतिक कहानी: गरीब भाई की चालाकी हिंदी नैतिक कहानी: सबसे दुखी आदमी Moral Story: अनोखा बंटवारा #story of child and toy seller in hindi #बच्चे और खिलौने वाले की कहानी #हिंदी नैतिक कहानी #kids hindi moral story You May Also like Read the Next Article