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गरीब भाई की चालाकी
हिंदी नैतिक कहानी: गरीब भाई की चालाकी:- किसी जमाने में कहीं दो भाई रहते थे। एक गरीब और दूसरा अमीर था। एक दिन सर्दियों में गरीब के घर लकड़ियाँ नहीं थीं ताकि वह उनको जला कर अपना घर गर्म कर सके। तो लकड़ियाँ लेने वह जंगल चला गया। वहां पर उसने लकड़ियाँ काटी, मगर उसे लादकर घर लाने के लिए उसके पास घोड़ा नहीं था। उसने सोचा, मैं अभी अपने भाई के पास जाकर घोड़ा मांगता हूं। वह अपने भाई के पास गया। उसका भाई उसे देखकर खुश न हुआ। वह बोला "चलो इस बार तो तुम घोड़ा ले जाओ लेकिन बार-बार इधर कुछ मांगने मत आया करो"। गरीब भाई घोड़े को जंगल में ले गया और लकड़ियाँ उठाने लगा। तभी उसे याद आया कि घोड़े का साज मांगना तो भूल ही गया। उसने सोचा, अब फिर से भाई के पास जाने का कोई फायदा तो है नहीं। वह साज तो देगा नहीं।
यह सोचकर उसने स्लेज को घोड़े की दुम से कस कर बांध दिया और अपने घर की ओर चल पड़ा। लौटते समय स्लेज एक झाड़ी में अटक गयी। गरीब भाई ने इस पर ध्यान नहीं दिया और घोड़े को चाबुक मार दिया। जब घोड़े को चाबुक पड़ा तो वह थोड़ा आगे बढ़ा और हुआ यह कि घोड़े की दुम भी अटक गई।
अमीर ने अब यह देखा तो अपने भाई को बुरा भला कहने और कोसने लगा। उसने कहा, "मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं छोड़ दूंगा"।
अमीर भाई ने गरीब भाई के ऊपर मुकदमा दायर कर दिया। अब थोड़े दिनों बाद दोनों को...
अमीर भाई ने गरीब भाई के ऊपर मुकदमा दायर कर दिया। अब थोड़े दिनों बाद दोनों को अदालत में बुलाया गया। जब वे अदालत जा रहे थे, तो रास्ते में एक पुल पड़ा। उसकी कोई रेलिंग नहीं थी। अब गरीब भाई का पैर फिसला और वह नीचे जा गिरा संयोग से उसी समय एक व्यापारी जमी हुई नदी पर से स्लेज दौड़ाता हुआ अपने पिता को डॉक्टर के पास लिये जा रहा था गरीब आदमी सीधे स्लेज पर जा गिरा। बूढ़े का उसी क्षण दम निकल गया, पर गरीब भाई को चोट नहीं लगी।
व्यापारी ने गरीब भाई को पकड़ लिया और कहने लगा, "चलो मेरे साथ अदालत में"। इस तरह वे तीनों, अब एक साथ शहर की ओर चल पड़े। गरीब आदमी का दिल बिल्कुल बैठ गया। उसने सोचा, अब तो सजा जरूर लगेगी। अचानक उसे सड़क पर एक पत्थर पड़ा दिखाई दिया। गरीब भाई ने उसे उठाकर एक कपड़े में लपेटा और अपने कोट में छुपा लिया। उसने सोचा "अगर जज ने बेइन्साफी की और मुझे मुजरिम ठहराया तो मैं उसे भी नहीं छोड़ूंगा"।
वे जज के सामने पहुंचे। अब गरीब भाई के सामने एक नहीं दो मुकदमे थे। जज ने कार्रवाई शुरू की और पूछ-ताछ करने लगा। जब भी जज गरीब की तरफ देखता तो वह पत्थर दिखाता। थोड़ी देर बाद जज ने सोचा "कहिं यह देहाती मुझे सोने या चांदी का डला तो नहीं दिखा रहा"। यह सोचाकर उसके मन में लालच आ गया। उसने सुनाया कि दुम के फिर से आ जाने तक घोड़ा गरीब भाई के पास रहेगा। फिर जज व्यापारी के मुकदमे का फैसला सुनाने लगा। उसने कहा, जिस तरह देहाती ने तुम्हारे पिता को मारा है, उसी तरह तुम भी पुल से छलांग लगाओ और देहाती को मार दो।
मुकदमा खत्म हो गया। अमीर भाई ने गरीब से कहा "चलो तुम मुझे दुम कटा घोड़ा ही दे दो"।
इस पर गरीब ने कहा "क्यों, मैं तो जज के फैसले के मुताबिक ही चलूंगा"। अब अमीर ने कहा, "चलो, मै तुम्हें तीस हज़ार रूपये दूंगा, तुम मुझे मेरा घोड़ा लौटा दो"। लाओ रकम, गरीब ने कहा और पैसे लेकर घोड़ा लौटा दिया।
अब व्यापारी भी गरीब के पैर पड़ने लगा। "मैं तुम्हारा कसूर माफ करता हूं। मेरा बाप तो अब वापस आने वाला नहीं"। नहीं, अब तो तुम्हें मेरे साथ पुल पर चलना ही पड़ेगा। मैं तुम्हारी जुबान नही लगना चाहता। आओ दोस्ती कर लें। मैं तुम्हें एक लाख रूपये दूंगा। गरीब ने एक लाख रूपये ले लिये। और जाने लगा।
तभी वहां जज आ गया और कहने लगा, "लाओ, वह दो जिसका तुमने वादा किया था"। गरीब ने वह पत्थर दिखाया और कहने लगा, मैं आपको, यह दिखा रहा था और यदि आपने कोई और फैसला किया होता तो मैंने इससे आपकी जान ले ली होती।
शुक्र है मैंने देहाती के हक में फैसला किया वर्ना मैं जिंदा न होता। जज ने सोचा। गरीब आदमी खुशी-खुशी नाचता गाता अपने घर की ओर चल दिया।
कहानी से सीख: कहानी का नैतिक पाठ यह है कि चालाकी और बुद्धिमानी से कठिन परिस्थितियों में सफलता प्राप्त की जा सकती है। सच्चाई, धैर्य, और सोच-समझकर की गई योजना अंततः न्याय और लाभ की ओर ले जाती है।