हिंदी नैतिक कहानी: लालची बंदर की कहानी

इस नैतिक कहानी में एक लालची बंदर की कथा है जो अपनी अत्यधिक लालसा के कारण परेशानी में फंस जाता है। इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि अधिक की लालसा में अपनी मौजूदा स्थिति को खोना पड़ सकता है।

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लालची बंदर की कहानी

हिंदी नैतिक कहानी: लालची बंदर की कहानी:- ऐसा कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति जितना उसके पास है उससे वह संतुष्ट नहीं होता। उसे सदैव और अधिक की भूख लगी रहती है। कई बार और अधिक के लालच में उसे जो है वह भी खोना पड़ता है या फिर कुछ और परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है। ऐसा ही कुछ एक लालची बन्दर के साथ हुआ।

जंगल से शहर की ओर

जंगल के अधिकांश बन्दर पेड़ों पर लगे प्राकृतिक फलों को खा कर बहुत खुश थे। एक बन्दर ऐसा भी था जो जंगल के बाहर पाये जाने वाली वस्तुओं का आनन्द लेना चाहता था। वह जंगल से बाहर निकल कर एक पास के शहर में आ गया।

जार में फंसे बंदर का संघर्ष

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शीघ्र ही वह एक किसान के घर के पास पहुंच गया। उसने घर की खुली खिड़की से देखा कि कमरे में एक जार में कुछ भुनी हुयी मूंगफलियाँ रखी हुई हैं। मूंगफलियों की खुशबु से उसका मन ललचा उठा। वह तुरन्त ही खुली खिड़की से कमरे के अन्दर दाखिल हो गया। अन्दर घुस कर उसने इधर-उधर देखा। कोई नहीं था और तब उसने तुरंत अपना हाथ सुराही नुमा जार में डाल दिया। उसने अपनी मुट्टी मूंगफलियों से भर ली और अपना हाथ बाहर निकालने की कोशिश करने लगा।

बन्द मुट्टी जार से बाहर नहीं आ रही थी किन्तु बन्दर मूंगफलियां छोड़ने को तैयार नहीं था। वह जंगल से इतनी दूर जो आया था और खाली हाथ वापस जाना नहीं चाहता था।

उसने अपनी मुट्टी बाहर निकालने की बहुत कोशिश की। किन्तु छोटे मुंह के जार से बन्द मुट्टी बाहर नहीं आ रही थी। इसी खींचा तानी में बंदर जार समेत धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। परंतु जार टूटा नहीं शोर सुन कर बाहर बैठा किसान तुरंत कमरे के अन्दर आ गया बन्दर चाहता तो मुट्टी खोल कर अपना हाथ बाहर निकाल सकता था और आसानी से खिड़की के रास्ते वापस जंगल की ओर भाग सकता था किन्तु लालची बन्दर मूंगफलियों का मोह नहीं छोड़ पा रहा था।

किसान की प्रतिक्रिया और बंदर की सजा

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किसान ने कई बार भाग-भाग कह कर शोर मचाया। किन्तु लालची बन्दर भागने का मन नहीं बना पा रहा था। किसान को गुस्सा आ गया। उसने दो बेंत बन्दर की पीठ पर मारी। अब बन्दर के पास कोई चारा नहीं बचा था उसने मुट्टी खोल कर मूंगफलियां गिरा दीं और हाथ बाहर निकाल कर खिड़की से बाहर कूद गया।

मूंगफलियां तो नहीं पर लालची बन्दर को पीठ पर दो बेंतों की मार जरूर मिल गयी।

निष्कर्ष

इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि अत्यधिक लालसा और संतोष की कमी व्यक्ति को मुश्किलों में डाल सकती है। बंदर की तरह अगर हम भी अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नहीं रहते और अधिक की लालसा में पड़ते हैं, तो हमें भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। संतोष और विवेकशीलता हमें सही दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती हैं।

कहानी से सीख: वास्तविक जीवन में भी यदि कभी आप को लगे कि जो सब कुछ आप चाहते हैं उसे पाने में काफी खतरा है तो जो आपके पास है उससे संतुष्ट होने का स्वभाव बनाये। और यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो लालची बन्दर की तरह पीठ पर बेंत खाने के लिये तैयार रहें।

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