Moral Story: अनोखा बंटवारा

स्वर्ण नगरी के राजा नरपत सिंह बहुत ही सहनशील और न्यायप्रिय थे। वे सदा अपनी जनता के विषय में ही सोचते रहते थे। उन्होनें अपने राज्य में बहुत सी सुख-सुविधाएं भी लोगों को दे रखी थी।

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अनोखा बंटवारा

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Moral Story अनोखा बंटवारा:- स्वर्ण नगरी के राजा नरपत सिंह बहुत ही सहनशील और न्यायप्रिय थे। वे सदा अपनी जनता के विषय में ही सोचते रहते थे। उन्होनें अपने राज्य में बहुत सी सुख-सुविधाएं भी लोगों को दे रखी थी। राज्य के हर मनुष्य की आवश्यकता पूरी करना राजा अपना कर्तव्य समझता था। (Moral Stories | Stories)

जहां राजा नरपत सिंह अपनी जनता के लिए इतना कुछ करते थे। वहां जनता भी अपने प्रिय राजा के हित में जान तक न्यौछावर करने को तैयार रहती थी। सारे राज्य में एक भी प्राणी ऐसा नहीं था जो राजा तथा वहां की व्यवस्था से प्रसन्‍न न हो।

राजा नरपत सिंह एक बार बहुत बीमार हो गए, बुढ़ापा तो था ही। लम्बी बीमारी के कारण राजा को अपना अन्त समय पास आता दिखाई देने लगा। तब उन्हें यह चिन्ता सताए जा रही थी कि वे अपना उत्तराधिकारी किसे बनाएं।

राजा नरपत सिंह के दो जुड़वा बेटे थे। एक का नाम था सूरज सिंह और दूसरे का चन्द्र सिंह दोनों में से यदि एक बड़ा होता तो कोई समस्या नहीं थी। प्रथा के अनुसार बड़े को राज्य देकर राजा नरपत सिंह अपना कर्तव्य निभा सकते थे। परन्तु यहां तो दोनों ही बराबर के थे। (Moral Stories | Stories)

काफी सोच-विचार के बाद राजा नरपत सिंह ने एक युक्ति निकाल ही ली। उन्होंने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा- ''मेरे बच्चों, तुम्हें मालूम ही है कि...

काफी सोच-विचार के बाद राजा नरपत सिंह ने एक युक्ति निकाल ही ली। उन्होंने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा- ''मेरे बच्चों, तुम्हें मालूम ही है कि हमारे राज्य में कितना धन है, कितना सोना है और कितनी खुशहाली है। अब मैं बूढ़ा हो गया हूं और मेरे मरने का समय भी समीप आ गया है। मैं चाहता हूं कि अपने मरने से पहले ही राज्य का काम तुम दोनों में से किसी एक को सौंप दूं, परन्तु तुम दोनों ही एक साथ पैदा हुए थे।

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इसलिए तुम में से किसे बड़ा मानूं और किसे छोटा, यह एक कठिन समस्या है। राजतिलक तो एक का ही होता है। इसलिए मैं तुम दोनों से एक प्रश्न पूछता हूं जिसका उत्तर उपयुक्त होगा, मैंने उसे ही स्वर्णनगर का राजा बनाने का निर्णय किया है”। (Moral Stories | Stories)

“आप प्रश्न पूछिए पिता जी"। सूरजसिंह और चन्द्रसिंह दोनों ने एक साथ कहा।

तब महाराज ने कहा- “मान लो तुम्हें इस नगरी का राजा बना दिया जाए तो तुम क्‍या करोगे? इस प्रश्न का उत्तर तुम दोनों आज सोच लो। कल मंत्रीमंडल के सम्मुख तुम दोनों को अपने-अपने उत्तर देने होंगे।”
यह सुनकर दोनों राजकुमार चले गए और अपने ढंग से उत्तर सोचने लगे। (Moral Stories | Stories)

अगले दिन महाराज नरपत सिंह अपने शयनागार में लेटे हुए थे। मंत्रीमंडल के सभी सदस्य उनके सामने बिछे आसनों पर बैठे थे। दोनों राजकुमार सूरज सिंह और चन्द्र सिंह महाराज के दोनों ओर अपने-अपने आसन पर बैठे थे।

“पहले उत्तर कौन दे, इसके लिए भी मैंने पर्ची डाली थी जिसमें सूरज सिंह का नाम निकला है इसलिए पहले सूरज ही अपना उत्तर बताएगा।''

राजा नरपत सिंह के आदेश पर सूरज सिंह उठा और कहने लगा- “पिताजी, मैं आपके इस राज्य की शोभा और भी अधिक बढ़ाऊंगा। खजाने में जमा धन को और अधिक करने का प्रयत्न करूंगा तथा राज्यों को जीत कर स्वर्णनगर को एक विशाल राज्य बनाऊंगा।" (Moral Stories | Stories)

अपनी बात कहकर सूरज सिंह बैठ गया तो राजा नरपत सिंह ने अपने दूसरे बेटे चन्द्र सिंह को अपना उत्तर देने का आदेश दिया। इस पर राजकुमार चन्द्र सिंह अपने स्थान पर खड़े होकर कहने लगा- “पिताजी, मैं आपके द्वारा शासित इस नगरी में अधिक शान्ति, न्याय और भाईचारे की व्यवस्था बनाने का प्रयत्न करूंगा जिससे आपके बनाए नियमों की महत्ता और भी बढ़ जाए। मैं प्रयास करूंगा कि इस राज्य की जनता हर प्रकार सुखी और सुरक्षित रहे जिससे यहां के निवासियों के हृदय में राज्य तथा देश के प्रति आस्था बढ़े और वे राष्ट्रहित के लिए कुछ भी करने में संकोच न करें।"

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“चन्द्रसिंह का उत्तर सुनकर न केवल राजा बल्कि वहां उपस्थित मंत्रीमंडल भी खुश हो गया। तब राजा नरपत सिंह ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा- “बेटा सूरज सिंह तुम्हारे उत्तर से यह प्रतीत होता है कि तुम केवल अपने और अपने घराने के धन तथा नाम को बढ़ाने के लिए बहुत इच्छुक हो इसलिए तुम पचास ऊंटों पर जितना भी सोना-चांदी और दूसरा सामान लाद सकते हो, लादकर ले जाओ राजा का कर्तव्य केवल अपने बारे में ही सोचना नहीं होना चाहिए, उसका उत्तरदायित्व अपने देश और अपनी जनता के प्रति अधिक होता है। राजा बनने का अधिकार केवल उसे ही होना चाहिए जो निजी हित त्याग कर राष्ट्र और जनता के लिए सोचे। इसलिए मैं राजकुमार चन्द्र सिंह को इस नगरी का आगामी राजा घोषित करता हूँ"। (Moral Stories | Stories)

सभी मंत्रियों ने तालियां बजाकर दोनों भाईयों के बीच इस अनोखे बंटवारे का समर्थन किया।

कुछ दिनों बाद राजा नरपत सिंह का स्वर्गवास हो गया। राजकुमार सूरजसिंह पचास ऊंटो पर बहुत सा धन और अन्य सामान लादकर स्वर्ण नगरी से चला गया तथा चन्द्र सिंह वहां राज्य करने लगा। कुछ ही समय में वह भी अपने पिता की तरह लोकप्रिय बन गया और जनता दिन-प्रतिदिन खुशहाल होती गई। (Moral Stories | Stories)

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