Moral Story: बुरे काम का बुरा नतीजा

धीरू बेटे, शाम के सात बजने वाले हैं। अंधेरा गहनता की ओर खिसक रहा है। आज मुझे कुछ जरूरी काम से जाना है। हमें घर पहुंचने में देर हो सकती है। रात के नौ-दस बज सकते हैं। सुबह से अब तक की बिक्री लगभग दस हजार की रही है।

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बुरे काम का बुरा नतीजा

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Moral Story बुरे काम का बुरा नतीजा:- धीरू बेटे, शाम के सात बजने वाले हैं। अंधेरा गहनता की ओर खिसक रहा है। आज मुझे कुछ जरूरी काम से जाना है। हमें घर पहुंचने में देर हो सकती है। रात के नौ-दस बज सकते हैं। सुबह से अब तक की बिक्री लगभग दस हजार की रही है। तुम ऐसा करो, इन रूपयों को घर पहुंचा दो। अपनी मम्मी से बोल देना, हम देर रात घर पहुंचेंगे। धीरू के पापा ने, अपने उन्नीस वर्षीय बेटे धीरू को सहेजते हुए बोला। धीरू के पापा की बीच चौक में, कपड़े की दुकान थी। वह हमेशा दुकान बढ़ाने के पहले, दिन भर की बिक्री का पैसा स्वयं अथवा किसी के द्वारा घर पहुंचा देते थे। ऐसा वह सुरक्षा की दृष्टि से करते थे।

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“ठीक है पापा, हम घर जाने के लिए सोच ही रहे थे। कहां है रूपये?'' धीरू पापा से बोला। “ये लो, पूरे दस हजार रूपये हैं। इसे लेकर सीधे घर जाना और अपनी मम्मी से कहना, इसे सहेज कर रख देंगी।'' धीरू को रूपये का थैला पकड़ाते हुए पापा ने हिदायत दी। (Moral Stories | Stories)

धीरू को आज, घर पहुँचने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था। अतः वह जल्दी घर पहुंचने के उद्देश्य से, पैदल ही घर की ओर बढ़ चला। अंधेरे ने वातावरण को अपने आगोश में समेट लिया था। अतः वह लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ आगे बढ़ता रहा। अब तक उसने घर और दुकान के बीच की लगभग आधी दूरी तय कर ली थी। 

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इस समय वह पुलिया को पार कर झाड़ी के बगल से गुजर रहा था, तभी वह चीत्कार 'पड़ा-'' भूत..,भूत..।'' वह दौड़ पड़ा। ऐसी दौड़ उसने पहले कभी नहीं दौड़ी थी। आज मानों उसके पैरों में पर लग गए थे। उसने सुन रखा था, पलट कर देखने पर भूत पकड़ लेता है। बिना पलट कर देखे, वह निरन्तर दौड़ता रहा, अविराम दौड़। वह महसूस कर रहा था, कोई उसका पीछा कर रहा है। काफी दूर निकल जाने के बाद, पीछा करने वाला पद चाप धीरे-धीरे लुप्त हो गया। तब जाकर उसके दौड़ में कुछ नरमी आई। बह गिरते पड़ते किसी तरह घर पहुंचा। (Moral Stories | Stories)

धीरू हांफता हुआ बदहवास-सी सूरत लेकर घर पहुंचा उसके चेहरे से बदहवासी साफ झलक रही थी। उसकी यह दशा देख, उसकी मम्मी घबरा गई। बह धीरू से बोलीं- “बेटा, धीरू, क्‍या हुआ तुझे? क्‍या हालत बना रखी है, तुमने अपनी? तुम इतना हांफ क्‍यों रहे हो?

“भ....भ...भूत।” धीरू के मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी। वह पैसे का थैला मम्मी को देते हुए बोला। (Moral Stories | Stories)

“कहां बेटे, यहां तो आस-पास कोई भी नजर नहीं आ रहा है। लगता है, तुम्हें कोई भ्रम हुआ है।'' मम्मी उसका सर सहलाते हुए बोलीं। “नहीं मम्मी वह भूत ही था। उसकी आंखो से लाल-लाल प्रकाश निकल रहा था। उसी प्रकाश में हमने देखा, उसका चेहरा भद्दा सा था। वह मेरी ओर तेजी से लपका। उसको अपनी ओर लपका देख, मैं तेजी से दौड़ पड़ा। उसने काफी दूर तक मेरा पीछा किया। मैं बहुत तेज दौड़ा। ऐसी दौड़ मैंने आज तक नहीं दौड़ी थी। शायद यही कारण है, मैं आज सुरक्षित घर वापस लौट पाया।” धीरू ने अपनी मम्मी से आप बीती कह सुनाई।

“बेटे, भूत प्रेत कुछ नहीं होता। यह सिर्फ, मन का वहम है। अब तुम्हीं सोचो, अगर वह भूत होता, तो उसे दौड़ने की आवश्यकता थी? क्‍या वह अपनी इच्छा शक्ति से कहीं भी प्रकट नहीं हो सकता था? वह तुम्हारे आगे प्रकट होकर तुम्हें पकड़ नहीं सकता था? वह भूत-प्रेत नहीं हो सकता।” मम्मी ने धीरू के मन से भूत-प्रेत की बात निकालने की चेष्टा करते हुए कहा। (Moral Stories | Stories)

“मम्मी, तब फिर वह कौन था?'' धीरू ने मम्मी से सवाल किया। “यह तो सोच का विषय है। तुम्हारी किसी से दुश्मनी भी नहीं है, जो कोई ऐसी ओछी हरकत करता। क्‍या वजह हो सकती है, यह मेरी समझ से परे है।” मम्मी ने उत्तर दिया।

मम्मी की बात सुनकर धीरू के मन से भूत-प्रेत का भय तो निकल गया, किन्तु वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसके साथ कोई ऐसा क्यों करेगा।

पापा को वापस लौटने में देर रात हो चुकी थी। पापा के वापस घर लौटने पर धीरू ने उनसे सविस्तार सारी दास्तान कह सुनाई। पूरी दास्तान सुनने के बाद पापा धीरू से बोले, “बेटा धीरू, हम तो तुम्हारे लौटने के बहुत बाद में लौटे, किन्तु हमें तो कोई भूत-प्रेत नहीं मिला। यह सब तुम्हारा भ्रम है।'' (Moral Stories | Stories)

“पापा, अगर वह भूत-प्रेत नहीं था, तो हो सकता है, वह कोई लुटेरा था। वह इस प्रकार हमें डरा कर हमारे पैसों को छीनना चाहता था। किन्तु सवाल इस बात का है कि हमारे पास पैसे हैं, इस बात की जानकारी उसे कैसे मिली? जबकि इस बात की जानकारी हमारे और आपके सिवा और किसी को नहीं थी। समझ में नहीं आता, ऐसा कैसे हो सकता है?" घीरू पापा से बोला। चूंकि कोई घटना घट नहीं पाई थी, अतः किसी ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। बात आई गई हो गई।

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धीरू अपने दिनचर्या के कार्यों में मशगूल हो गया। अभी चार दिन ही बीते थे कि यह समाचार सर्वत्र जंगल की आग की तरह फैल गई, पुलिया के बगल झाड़ी के पास भूत लगता है।” जितने मुँह उतनी बातें। धीरू ने विशेष रूचि लेकर इस मामले की तहकीकात की। उसे जो बात पता चली, वह थी- रात के लगभग साढ़े सात का समय था। अधंकार ने सर्वत्र अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। शिव-चन्द्र नीलाम्बर के झरोखे से ताक रहे थे।

रास्ता बिल्कुल सूनसान था। वहाँ थी, तो सिर्फ झींगुर की झनझनाहट, जुगनू की टिमटिमाहट एवं हवाओं की शांय-शांय। ऐसे माहौल में एक...

रास्ता बिल्कुल सूनसान था। वहाँ थी, तो सिर्फ झींगुर की झनझनाहट, जुगनू की टिमटिमाहट एवं हवाओं की शांय-शांय। ऐसे माहौल में एक नव दम्पत्ति बाजार से शॉपिंग कर अपने घर वापस लौट रहे थे। जैसे ही वे दोनों पुलिया को पारकर झाड़ी के बगल से गुजरने को हुये, तभी उन दोनों के सामने वही डरावना चेहरा प्रकट हुआ वह नाक के बल गुर्राता-गरजता बोला- ''तुम लोगों के पास जो भी गहने और पैसे हैं, वह सब मेरे हवाले कर दो, नहीं तो हम तुम लोगों को खा जाएंगे। (Moral Stories | Stories)

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अचानक आई इस विपदा को देख, वे दोनों घबरा गए। उन दोनों के हाथ-पैर थर-थर कांप रहे थे। मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी। काफी प्रयास के बाद वे दोनों एक साथ बोल पड़े- मेरा सारा सामान और पैसा मुझसे ले लो, किन्तु हम लोगों का किसी प्रकार का नुक्सान मत पहुंचाओ। ''इसी के साथ उन लोगों ने अपना सारा सामान और पैसा उसके हवाले कर, वहां से ऐसा गायब हुये जैसे गधे के सर से सींग। 

उस डरावने चेहरे ने उन लोगों का पीछा भी नहीं किया। वे दोनों इतना घबरा गये थे कि उन्हें सामान्य होने में काफी समय लग गया। सामान्य होने के बाद, वे दोनों फूट-फूट कर खूब रोये, काफी हाथ-पैर पटका, लेकिन हाथ कुछ न आया। उनके गहने, सामान और पैसे सभी हाथ से निकल चुके थे। हताश होकर वे शांत बैठ गये। इतनी जानकारी मिल जाने के बाद धीरू को इस बात का यकीन हो गया था कि हो न हो वह कोई धूर्त लुटेरा है जो कि अपने चेहरे पर मुखौटा लगाकर लोगों को भूत-प्रेत के नाम पर डराता है और उन्हें लूट लेता है। (Moral Stories | Stories)

उसके इस कार्य पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था, किन्तु उसने बुद्धि से काम लेना उचित समझा। उसने, मन में निश्चय किया- ''मैं उस धूर्त के चेहरे से मुखौटे को हटा कर उसे जन समुदाय के सामने खड़ा कर दूंगा।”

धीरू ने तत्काल अपने साथियों में से सात ऐसे साथियों का चयन किया, जो कि बहुत बहादुर एवं साहसी थे। उनके नाम थे- रामू, मोहन, दिलेश, राजेश, प्रदीप, मुकेश और सुरेश। उसने उन्हें सारी कार्य-योजना समझा दी। वे सभी धीरू के साथ कार्य को अंजाम देने के लिए प्राणपण से तैयार थे।

थका हारा सूर्य विश्राम की तैयारी में था। प्रति दिन की भांति उजाले पर अंधकार अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए तैयार बैठा था। रामू, मोहन, दिनेश, राजेश, प्रदीप, मुकेश, सुरेश और धीरू ने योजनाबद्ध ढंग से अपना-अपना स्थान ग्रहण कर लिया था। वे स्थान थे झाड़ी से चालिस-पचास कदम की दूरी पर चारों दिशाओं में स्थित पेड़ों की डालियां। (Moral Stories | Stories)

इस प्रकार धीरू ने अपने सहयोगी मित्रों के साथ उस झाड़ी की घेरा बन्दी कर ली थी। उन लोगों ने जिन-जिन स्थानों का चुनाव किया था, वहां से झाड़ी साफ नजर आ रही थी तथा वे हर आने-जाने वालों पर पैनी निगाहें रखे हुए थे। यदाकदा इक्का-दुक्का लोग उधर से गुजर रहे थे।

रात के लगभग साढ़े सात का समय हो रहा था। धीरू ने रोड लाइट की रोशनी में देखा, एक तीस-बत्तीस साल का नौजवान हाथ में एक झोला लिए झाड़ी की ओर बढ़ा आ रहा था। वह झाड़ के निकट पहुंचकर वहीं रूक गया।

धीरू और उसके साथियों की निगाहें उसके क्रिया कलापों पर टिकी हुई थीं। उन लोगो ने ध्यान से देखा, उसने अपने झोले से विशेष प्रकार का लिबास निकाल कर धारण किया तथा चेहरे पर मुखौटा लगा लिया। अब वह वास्तव में बड़ा डरावना लग रहा था। धीरू समझ गया, अब वह राहगीरों को लूटने के लिए पूर्णतः अपने को तैयार कर चुका है। (Moral Stories | Stories)

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तभी पूर्वनियोजित ढंग से सुरेश वहां आया। उसके हाथ में एक ब्रीफ केस था। वह ऐसे भाव प्रदर्शित कर रहा था मानों वह ब्रीफकेस में काफी पैसे लेकर चल रहा हो। उसे आता देख भूत उसके सामने प्रकट हुआ। सुरेश को यह पहले से ही पता था कि उसके साथी गण यहां उपस्थित हैं, अत: वह बिना किसी भय के उस 'भूत' से भिड़ गया। तब तक धीरू और उसके अन्य साथी भी वहां आ पहुँचे। अब हालत यह थी कि जो भी वहां पहुंचता वही अपने हाथ की खुजली मिटाने लगता। देखते ही देखते उसकी अच्छी खासी धुनाई हो चुकी थी। उसको देखने के लिए लोगों का मजमा लग गया था। जनसमुदाय ने उसे पुलिस के सुपुर्द कर दिया।

पुलिस ने भी उसकी भरपूर खातिरदारी की। अब तक उसकी दशा बासी ककड़ी की भांति लुंज-पुंज हो चुकी थी। एक कहावत है, “मार के आगे भूत कबूले" उसने भी सब कुछ कबूल दिया था- ''मै छोटा था, तो छोटी-मोटी चोरी करता, जिस पर मेरे घर वालों ने कोई ध्यान नहीं दिया। मैं सामान तथा पैसे कहाँ से लाता हूं, इसकी भी उन्होंने कोई जांच पड़ताल नहीं की। मेरे हौसले बुलन्द होते गये। मैं लोगों के साथ ठगी तथा लूटपाट की वारदातें करने लगा। इधर लगभग डेढ़ दो माह से, मैं अपने चेहरे पर भूत का मुखौटा लगाकर लोगों को डराता था और उनके पैसे तथा सामान को लूट लेता था। इस प्रकार मैंने लगभग दस-बारह लोगों को लूटा। आज तक मैं हमेशा बचता रहा, किन्तु आज मैं समझ गया हूं कि हर बुरे कार्य का नतीजा भी बुरा होता है। आज के बाद मैं हर बुरे कार्य से तौबा करता हूं। मै आज से सिर्फ मेहनत, मसकत और खून पसीने की ही कमाई खाऊंगा।” और इसी के साथ वह सुधर गया। (Moral Stories | Stories)

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