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समझौता और कड़ी मेहनत का मोल
Moral Story समझौता और कड़ी मेहनत का मोल:- एक उच्च शिक्षा प्राप्त युवक एक बड़ी कम्पनी में नौकरी के लिये गया। वह पहले साक्षात्कार में सफल हो गया। कम्पनी के निर्देशक ने उसे अन्तिम साक्षात्कार के लिए बुलाया। युवक एक प्रतिभाशाली छात्र रहा था और स्कूल से काॅलेज तक सभी कक्षाओं में उसे बहुत अच्छे अंक मिले थे। (Moral Stories | Stories)
निर्देशक ने प्रश्न किया, ‘क्या तुम्हें कभी कोई छात्रवृति मिली?’
‘नहीं’ युवक ने उत्तर दिया।
निर्देशक ने पूछा, ‘क्या तुम्हारे स्कूल की पढ़ाई का खर्च तुम्हारे पिता ने उठाया?’ (Moral Stories | Stories)
युवक ने उत्तर दिया, ‘छोटी आयु में मेरे पिता की मृत्यु हो गयी थी। मेरी मां कपड़े धोने का काम करती है और उसी की कमाई से मैंने अपनी शिक्षा पूरी की है। निर्देशक ने युवक से अपने हाथ दिखाने को कहा। हाथ साफ और चिकने थे।
‘क्या तुम ने कभी कपड़े धोने में अपनी मां की सहायता की? (Moral Stories | Stories)
युवक ने उत्तर दिया, ‘नहीं, मेरी मां चाहती थी कि मैं अपना सारा ध्यान केवल पढ़ाई पर रखूं।’
निर्देशक ने युवक से कहा कि वह घर जा कर अपनी मां के हाथ साफ करे और अगले दिन फिर उसके पास आये। (Moral Stories | Stories)
युवक ने वैसा ही किया। घर जाकर उसने अपनी मां से प्रार्थना की कि वह उसे उसके...
युवक ने वैसा ही किया। घर जाकर उसने अपनी मां से प्रार्थना की कि वह उसे उसके हाथ धोने दे। मां को आश्चर्य हुआ किन्तु उसने प्यार से अपने हाथ युवक के हाथ में दे दिए। युवक ने पहली बार अनुभव किया कि उसकी मां के हाथ इतने खुरदुरे हो गये थे और उनमें कई खरोचों के निशान भी थे।
मां के हाथ धोते हुए युवक को पहली बार एहसास हुआ कि कैसे इन हाथों ने कपड़े धो-धो कर मेरी पढ़ाई का खर्चा उठाया है। मां के हाथ धोने के बाद युवक ने शेष बचे हुए कपड़े भी धोये। उस रात मां बेटे देर तक आपस में बात करते रहे। (Moral Stories | Stories)
अगले दिन युवक भीगी आंखों से फिर निर्देशक के पास पहुंचा। निर्देशक ने पूछा, ‘मैं जानना चाहूंगा कि कल तुमने क्या किया और तुम्हें कैसा अनुभव हुआ?
युवक ने उत्तर दिया, ‘मैंने अपनी मां के हाथ धोये और बचे हुए कपड़े भी धोये। मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरी मां ने मेरी उच्च शिक्षा के लिए कितना परिश्रम किया है। मैंने यह भी सीखा कि हाथ से काम करना कितना कठिन हो सकता है। आज पहली बार मुझे पारिवारिक संबंधों का महत्व अनुभव हुआ है।’ (Moral Stories | Stories)
निर्देशक ने कहा, ‘यही गुण मैं अपने प्रबंधक में चाहता हूं। मैं चाहूंगा कि वह दूसरों के परिश्रम की प्रशंसा करे, परस्पर सहयोग करे और प्रबंधक के पद पर तुम्हें नियुक्त करता हूं।’
प्रबंधक के रूप में वह युवक बहुत सफल हुआ। उसके सभी सहयोगी उसके साथ मिलकर काम करते और उसका नेतृत्व स्वीकार करते रहे। (Moral Stories | Stories)
सामान्य बच्चे यह मान कर चलते हैं कि उनकी सभी आवश्कताओं की पूर्ति करना उनके माता-पिता की जिम्मेदारी है। इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए माता-पिता को जो परिश्रम करना पड़ता है। बच्चों को इसका एहसास तक नहीं होता। बड़े होकर ये बच्चे यह अपेक्षा करते हैं कि सभी अन्य व्यक्ति उनकी इच्छा के अनुरूप काम करें और उन्हें सहयोगियों की भावनाओ का कोई एहसास नहीं होता। अभिभावकों के रूप में हमारा यह कर्त्तव्य है की हम बच्चों को ये एहसास कराएं कि जीवन में सफलता पाने के लिए वे सदैव दूसरों पर आश्रित नहीं रह सकते और न ही अपनी असफलताओं के लिए वे दूसरों को दोषी ठहरा सकते हैं। यदि हम उन्हें बचपन में ही इन बातों का एहसास नहीं कराते तो निश्चय ही लाड़ प्यार दिखाकर हम उनके प्रति न्याय नहीं कर रहे हैं।बल्कि उन्हें बिगाड़ रहे हैं। (Moral Stories | Stories)
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