हिंदी नैतिक कहानी: एक असाधारण पिता

विष्णु कॉलेज में पढ़ता था, उसके सभी कॉलेज के मित्रों में एक गुण समान था। कक्षा की पढ़ाई को छोड़कर उन्हे हर काम में दिलचस्पी थी। प्रताप के पिता मैजिस्ट्रेट थे और वह स्वयं एक अच्छा खिलाड़ी था।

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एक असाधारण पिता

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हिंदी नैतिक कहानी: एक असाधारण पिता:- विष्णु कॉलेज में पढ़ता था, उसके सभी कॉलेज के मित्रों में एक गुण समान था। कक्षा की पढ़ाई को छोड़कर उन्हे हर काम में दिलचस्पी थी। प्रताप के पिता मैजिस्ट्रेट थे और वह स्वयं एक अच्छा खिलाड़ी था। गोस्वामी के पिता सिविल सर्जन थे और वह बिलियर्ड का एक निपुण खिलाड़ी था। हरनाम के पिता एक प्रसिद्ध वकील थे और वह स्वयं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में कई पदक जीत चुका था। विष्णु उस समूह का एक मात्र सदस्य था। जिसे कक्षा की पढ़ाई में रूचि थी। वह नोट्स बनाता था और उन सभी साथियों में जो ज्यादातर कक्षा से बाहर समय बिताते थे उन नोटस की बड़ी मांग रहती थी। परीक्षा के दिनों में तो उसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता था।

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विष्णु अपने मित्रों के समूह में कई बार इस बात को लेकर हीन अनुभव करता था कि उसके पिता...

विष्णु अपने मित्रों के समूह में कई बार इस बात को लेकर हीन अनुभव करता था कि उसके पिता एक साधारण कर्मचारी-रेलवे में गार्ड हैं। दुर्भाग्यवश विष्णु के पिता का हार्ट अटैक के कारण स्वर्गवास हो गया। घर का बड़ा होने के कारण पिता की मृत्यु से जुड़े सभी संस्कार उसे करने पड़े। वही पिता की अस्थियां गंगा जी ले गया। अस्थि विसर्जन के बाद विष्णु घर लौट रहा था। स्टेशन से उसने घर के लिये रिक्शा करना चाहा “किशनपुर में आप कहां जायंगे वह तो बहुत बड़ी बस्ती है” रिक्शे वाले ने पूछा। “प्रेम नरायण वकील के घर के पास” विष्णु ने यह सोच कर उत्तर दिया कि रिक्शे वाला निश्चय ही इतने प्रसिद्ध वकील का घर जानता होगा। रिक्शेवाले ने फिर पूछा, “यह कहीं गार्ड साहब के घर के आस पास है क्या?” विष्णु आश्चर्य चकित हो गया। उसने हां कहा और चुपचाप रिक्शे पर बैठ गया।

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रास्ते में विष्णु ने पूछा, “तुम गार्ड साहब को कैसे जानते हो?”

“अरे साहब गार्ड साहब को कौन नही जानता रिक्शे वालों में उन्हें घर ले जाने के लिये होड़ लगी रहती है। साहब ऐसी सवारी कहां मिलती है। बैठते ही वे रिक्शे वाले को अपनी डिब्बी में से टाफियां देते हैं उनके थैले में खाने का कुछ न कुछ होता है। रिक्शे वाले को भाड़े के अलावा हमेशा उनके थैले में से कुछ न कुछ खाने के लिए मिलता है। जाड़े की एक रात जब मैं उन्हें ठिठुरता हुआ घर लाया तो घर पहुंच कर उन्होंने अपना स्वेटर उतार कर मुझे दे दिया। साहब आज की दुनिया में ऐसे आदमी कहाँ बचे हैं। 

आपको कुछ पता है साहब मैंने बहुत दिनों से उन्हें नहीं देखा है क्या वह रिटायर हो गए हैं। शायद यह वार्तालाप कुछ देर और चलता रहता पर विष्णु घर तक आ चुका था। उसने उतर कर भाड़ा दिया। पर उसकी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह रिक्शे वाले को गार्ड साहब की मृत्यु की सूचना दे सके। अपने पिता का मृत शरीर देखकर विष्णु रोया नहीं पर अब जब उसे पता चला कि वे कितने असाधारण थे वह अपने आंसू नहीं रोक सका। और अपने आपको भाग्यशाली समझने लगा।

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