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सुरेश का अप्रैल फूल
Moral Story सुरेश का अप्रैल फूल:- अप्रैल की पहली तारीख थी। सुरेश सुबह-सुबह सो कर उठने पर आज जल्दी ही नहा-धोकर चाय-नाश्ता कर तैयार हो गया था। वह सोच रहा था कि अप्रैल की पहली तारीख को किसी का बेवकूफ न बनाया जाये, तो अप्रैल फूल वाले दिन का महत्व ही क्या रहा? वह सोच रहा था कि अधिक से अधिक लोगों को अप्रैल फूल बनायेगा और दिल खोल कर हंसेगा सभी की मूर्खता पर। (Moral Stories | Stories)
सबसे पहले तो वह विनय के घर जा पहुंचा और बोला- "अरे विनय! तुम यहां बैठे टी.वी. देख रहे हो, वहां चौक वाली गली में तुम्हारे आगरा वाले मामाजी खड़े हुए हैं, गली के भीतर तो रिक्शा आने से रहा। उनके पास बहुत सारा सामान भी है। इतना सुनते ही विनय खुशी से चीख सा पड़ा और चौक वाली गली की ओर दौड़ पड़ा। पर कहीं कोई भी न था। जब वह मुंह लटकाये लौटा तब सुरेश अप्रैल फूल कहकर खूब हंस रहा था।
अब वह बगल के मकान वाली बीना के घर जा पहुंचा। बीना की मम्मी से वह बोला- 'अरे आंटी। बगल वाले कमरे में बिल्ली मजे से दूध पी रही है। आपको कुछ पता ही नही है'। बीना की मम्मी बगल वाले कमरे में दौड़ पड़ीं तो दूध बर्तन में सही सलामत रखा नजर आया। वह अप्रैल फूल कहकर खूब हंसता रहा। (Moral Stories | Stories)
वह अपने घर लौट आया। घर पर कुछ पल ठहर कर वह पास की दुकान पर कुछ खरीदने पहुंचा तो लौटते वक्त राह में उसे...
वह अपने घर लौट आया। घर पर कुछ पल ठहर कर वह पास की दुकान पर कुछ खरीदने पहुंचा तो लौटते वक्त राह में उसे बबीता मिली। वह बोला- "अरी बबीता! तुम्हारी सहेली घर पर आकर कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है"। बबीता बोली- "सच! अरे यह तो बड़ी अच्छी बात हुई"। वह बाजार से मिठाई और नमकीन खरीद कर शीघ्रता में घर जा पहुंची। ताकि सहेली की आवभगत कर सके पर घर लौटने पर कहीं कोई नजर न आया। बबीता समझ गई कि सुरेश ने उसे अप्रैल फूल बनाया है। (Moral Stories | Stories)
सुरेश आज अपनी सफलता पर फूला न समा रहा था। वह फिर किसी को अप्रैल फूल बनाने का चक्कर चलाने जा रहा था कि तभी उसे विवेक मिल गया। वह पास की झाड़ियों में कुछ खोजता-खोजता अब नाले में कुछ ढूंढने जा रहा था। विवेक से यह ज्ञात कर कि उसकी गेंद खो गई है और इस समय वह गेंद ढूंढ-ढूंढ कर परेशान हो रहा है तो सुरेश बोला- "अरे विवेक गेंद चली गई तो कोई बात नहीं। नाले में ढूंढने हर्गिज़ मत जाना। तुम्हें नहीं पता कि नाले में एक जगह पर नाग रहता है। बहुत से लोगों ने उसे देखा है"।
विवेक ने सोचा कि सुरेश तो आज सुबह से ही सभी को अप्रैल फूल बनाता फिर रहा है। भला इसकी बेतुकी बातों को क्या मानना? वह उसकी बात सुनी-अनसुनी करता हुआ नाले में उतर कर गेंद खोजने लगा। अब तक सुरेश घर लौट आया था। (Moral Stories | Stories)
कुछ देर बाद विवेक के घर से जोरों से चिल्लाने की आवाज़ें सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा बाहर आया तो पता चला कि नाले में गेंद खोजते समय नाग ने उसे काट खाया है और कुछ लोग उसे घर पर उठा लाये हैं। विवेक को शीघ्र ही सरकारी अस्पताल ले जाया गया। पर उसे बचाया न जा सका। डॉक्टर ने अफसोस जाहिर करते हुए बतलाया कि देर बहुत हो चुकी है। सर्प का विष विवेक के शरीर में फैल गया है।
इधर सुरेश अपने किए पर बहुत ही बुरी तरह पछता रहा था। वह बोला- "हाय! आज उसने इतने अधिक लोगों को अप्रैल-फूल बनाकर हंसने का मजा न लूटा होता तो विवेक उसकी बात को गंभीरता से लेता और नाले में गेंद खोजने नही उतरता और न आज सर्प के काटने से उसकी जान जाती। झूठ बोलने वाला जब सच बोलता है तब उसे झूठा ही समझा जाता है"। वह ऐसे अप्रैल फूल पर अपना सिर धुन रहा था। विवेक के घर वालों पर आज पहाड़ टूट पड़ा था। सुरेश भीतर ही भीतर पश्चाताप की आग में जल रहा था। (Moral Stories | Stories)
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