Moral Story: कहानी मूर्खा की तेंदुआ गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम था मूर्खा। वह बिल्कुल मूर्ख था। हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करता था। इस कारण लोग उसे 'मूर्खा' कहकर पुकारते थे। उसकी मां मूर्ख के व्यवहार और बुद्धि से बहुत दुःखी रहा करती थी। By Lotpot 11 Apr 2024 in Stories Moral Stories New Update कहानी मूर्खा की Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Moral Story कहानी मूर्खा की:- तेंदुआ गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम था मूर्खा। वह बिल्कुल मूर्ख था। हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करता था। इस कारण लोग उसे 'मूर्खा' कहकर पुकारते थे। उसकी मां मूर्ख के व्यवहार और बुद्धि से बहुत दुःखी रहा करती थी। मूर्खा जितना मूर्ख था उतना ही दयालु और मेहनती था। वह हमेशा कुछ करना चाहता था। परंतु उल्टे-सीधे काम हो जाने, तथा नुकसान होने के डर से गांव के लोग उससे कोई काम नहीं करवाते थे। (Moral Stories | Stories) एक दिन की बात है। गांव के चौपाल में लोग मूर्खा की चर्चा कर हंस रहे थे। तभी वहां मूर्खा भी पहुंच गया। “आओ मूर्खा बैठो। कवि काली दास भी कभी तुम्हारे जैसे ही मूर्ख थे। वे इतने मूर्ख थे कि वे पेड़ की उसी डाल को कुल्हाड़ी से काट रहे थे, जिस पर वे बैठे थे। बाद में वे महान काली दास बन गए। मगर तुम कभी नहीं बदलोगे"। गोपी ने कहकर ठहाका लगाया। सब हंसने लगे। मूर्खा वहां से हट गया। वह बार-बार सोचने लगा- ''जिस डाल पर बैठे हो उसी को काटने जैसी बेवकूफी करने से मूर्ख काली दास विद्वान कवि हो गए। ऐसा तो मैं भी कर सकता हूं"। (Moral Stories | Stories) यह सोचकर मूर्खा तेज कदमों से अपने घर गया और कुल्हाड़ी लेकर गांव से निकल कर एक ओर बढ़ने लगा। उस समय... यह सोचकर मूर्खा तेज कदमों से अपने घर गया और कुल्हाड़ी लेकर गांव से निकल कर एक ओर बढ़ने लगा। उस समय सुबह के लगभग 7 बज रहे थे। मूर्खा शहर जानेवाली कच्ची सड़क पर तेजी से बढ़ता जा रहा था।लगभग 2 घंटे बीत चुके थे। मूर्खा चाल्हों पहाड़ियों के पास से गुजरने वाली सड़क पर चल रहा था। उस सड़क किनारे एक ओर पहाडियां और जंगल थे। दूसरी ओर खेत था। दो तीन किलोमीटर दूर एक मात्र गांव नज़र आ रहा था। (Moral Stories | Stories) वह कच्ची सड़क गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने का एक मात्र रास्ता थी। मूर्खा को सड़क किनारे एक विशाल बरगद का पेड़ दिखाई दिया। वह तुरंत उस पेड़ की डाली पर चढ़ गया और कुल्हाड़ी से उसी डाली को काटने लगा। वह भी विद्वान बनना चाहता था, चालाक बनना चाहता था, परंतु गांव वालों ने सिर्फ हंसी उड़ाने के सिवा कोई रास्ता नहीं बताया था। मूर्खा को विद्वान बनने का यही रास्ता सूझा। तभी खट-खट की आवाज सुनकर सड़क पर गुजर रहे एक किसान जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। बरगद के नीचे आया तथा मूर्खा को डाल काटते देखकर कहा- 'अरे मूर्ख, जिस डाली पर बैठा है उसी को काट रहा है। तू जल्दी ही मर जायेगा'। यह कहकर किसान आगे बढ़ गया। मूर्खा को बहुत आश्चर्य हुआ। वह दाढ़ी बढ़े किसान को कोई पहुंचा हुआ महात्मा, साधु समझा- ''वह साधु मेरा नाम जान गया। मुझे कहा- मूर्ख तू जल्दी ही मर जायेगा लगता है तेरी मृत्यु निकट है"। मूर्खा ने मन ही मन सोचा- "साधु की बात सच होगी। मैं अपने गांव से बहुत दूर हूं अगर मैं मर गया, तो मुझे जलायेगा कौन? लकड़ी कहां से आयेगी? चिता कैसे बनेगी? क्यों न मैं पास के जंगल से सूखी लकड़ियाँ काट लाऊं। यदि मैं मर गया तो मुझे मरा देख कोई भी राहगीर उन लकड़ियों पर रख कर मुझे जला देगा"। (Moral Stories | Stories) मूर्खा, मूर्खतापूर्ण बातें सोचने लगा तथा तेजी से कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चला गया। वह मूर्ख जरूर था, परंतु था मेहनती थोड़ी ही देर में वह सूखी लकड़ियों का बड़ा सा गट्टर उठाये उसी बरगद के नीचे आ गया और मरने का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में एक बैलगाड़ी वहां पर पहुंची गाड़ीवान कड़ी धूप के कारण बरगद की छांव में गाड़ी रोककर सुस्ताने लगा। उसने मूर्खा से पूछा “ऐ लड़के! इन लकड़ियों को बेचोगे?” “नहीं मैं इससे अपनी चिता सजाऊंगा"। मूर्खा की बात सुनकर गाड़ीवान ने समझा कि यह लड़का गुस्से में है। उसने फिर कहा- "अरे भाई, मैं तुम्हें इन आधी लकड़ियों के बदले ही दो किलो चना दूंगा। मैं शहर जा रहा हूं, इसे वहीं बेच कर कुछ मुनाफा कमाऊंगा"। "ठीक है पहले चने दे दो"। मूर्खा को भूख लगी थी। इसलिए उसने मन ही मन सोचा- "आधी लकड़ियां ही मेरी चिता के लिए काफी हैं"। उसने गाड़ीवान से चने का थैला ले लिया और आधी लकड़ियां बैलगाड़ी पर रख दी। गाड़ीवान शहर को चला गया। अब तक दिन के 2 बज रहे थे। मूर्खा की मौत नहीं आई थी। वह भूख से परेशान था। वह सूखे चने चबाने लगा। चने इतने कड़े थे कि उसे चबाना मुश्किल हो रहा था। तभी सड़क पर चलता हुआ एक कुम्हार उसके पास आया और मूर्खा से पूछा- बेटे, इन सूखी लकड़ियों को बेचोगे? (Moral Stories | Stories) मूर्खा न कह देता, परंतु चने चबाने के बाद उसे जोरों से प्यास लगी थी। उस कुम्हार के पास ढक्कन सहित घड़ा था। उसने सोचा कि राहगीर यह घड़ा दे देता तो मैं दूर के उस गांव से पानी लाकर पी लेता। “हां, मैं लकड़ियां दूंगा, मगर आपको यह घड़ा मुझे देना होगा"। “हाँ-हाँ, क्यों नहीं इतनी लकड़ियों के बदले मैं घड़े के साथ-साथ 5 रूपये भी दूंगा। मूर्खा ने झटपट सौदा कर लिया। उसने मन ही मन सोचा चने खाकर पानी पी लूंगा। उसके बाद चिता के लिए और लकड़ियां काट लाऊंगा। (Moral Stories | Stories) यह सोचकर उसने घड़ा उठाया और चिलचिलाती धूप में 2-3 किलोमीटर दूर दिखाई पड़ने वाले गांव की ओर चल पड़ा। मूर्खा में आलस नाम की कोई चीज नहीं थी, वह धूप, वर्षा, ठंड से जरा नहीं घबराता था। शीघ्र ही गांव के कुंए से पानी भरकर वह लौट आया और उसी बरगद के नीचे बैठ गया। उसे चने चबाने में कठिनाई हो रही थी। इसलिए घड़े के ढककन में पानी डालकर उसने चना भींगने के लिए छोड़ दिया। 2 घंटे बाद तेज लू चलने के कारण शहर से लौट रहे राहगीर उस विशाल बरगद के नीचे आकर रूकने लगे। उन्होंने मूर्खा के पास ढेर से भीगे चने तथा घड़े में पानी देखा तो उन्होंने मूर्खा से चने खरीद कर खाये तथा भरपेट पानी पिया। मूर्खा भी बहुत खुश था। उसने शाम तक काफी रूपये कमा लिये थे। अंधेरा होने को था। मूर्खा मन ही मन सोच रहा था- "मौत अब तक नहीं आई। अब शायद नहीं आयेगी। मैं रात में कहां जाऊंगा?" (Moral Stories | Stories) तभी उसकी नजर शहर से लौटते राहगीर पर पड़ी जो एक बड़े थैले में सामान लिये धीरे-धीरे चल रहा था। वह पसीने में भीगा हुआ था। मूर्खा ने बरगद की एक डाल पर चढ़कर घड़े को छिपा दिया तथा उस राहगीर के थैले को उठाये उसके पीछे-पीछे चलने लगा। “तुम कौन हो बेटा? कहाँ रहते हो? कया करते हो?” मूर्खा ने पूरी कहानी बता दी राहगीर ने मूर्खा से कहा- भले ही तुम मुर्ख हो, पर हो मेहनती, दयालु, और सच्चे आदमी। मेरा गांव यहां से कुछ दूर है। वहां मैं शिक्षक हूं। तुम दिन भर राहगीरों के लिए चना-पानी बेचते रहो और रात में मेरे घर पर पढ़ना लिखना सीखो। तुम मूर्ख नहीं रहोगे। यदि किसी व्यक्ति को बुद्धि कम हो वह मूर्ख हो, परंतु मेहनती हो तो वह कालीदास जैसा विद्वान बन सकता है। लेकिन कोई वास्तव में विद्वान है, पढ़ा लिखा है परंतु मेहनत नहीं करना चाहता है, मेहनत से कतराता है! तो वह तुमसे भी ज्यादा मूर्ख है।तुम निराश न हो। बाबा की बात मूर्खा की समझ में आ गई वह दिन भर मेहनत कर पैसे कमाता। रात में मन लगाकर बाबा से पढ़ता। एक दिन वह पढ़ा लिखा आदमी बनकर अपने गांव पहुंचा। उसकी मां बहुत खुश हुई। (Moral Stories | Stories) lotpot | lotpot E-Comics | Hindi Bal Kahaniyan | Hindi Bal Kahani | bal kahani | Bal Kahaniyan | kids short stories | kids hindi short stories | short moral stories | short stories | Short Hindi Stories | hindi short Stories | Kids Hindi Moral Stories | Kids Moral Stories | kids hindi stories | Kids Stories | Moral Stories | hindi stories | hindi stories for kids | लोटपोट | लोटपोट ई-कॉमिक्स | बाल कहानियां | हिंदी बाल कहानियाँ | हिंदी बाल कहानी | बाल कहानी | हिंदी कहानियाँ | हिंदी कहानी | छोटी नैतिक कहानियाँ | छोटी कहानी | छोटी कहानियाँ | छोटी हिंदी कहानी | बच्चों की नैतिक कहानियाँ यह भी पढ़ें:- Moral Story: अकलूराम ने अक्ल खरीदी Moral Story: नन्हा चित्रकार Moral Story: अपने डर की वजह से पीछे मत हटो Moral Story: हर पल का मजा उठाओ #lotpot E-Comics #छोटी कहानी #छोटी कहानियाँ #Short Hindi Stories #छोटी नैतिक कहानियाँ #Kids Moral Stories #Kids Hindi Moral Stories #हिंदी कहानियाँ #Bal Kahaniyan #Hindi Bal Kahani #बाल कहानियां #short moral stories #kids hindi short stories #बच्चों की नैतिक कहानियाँ #हिंदी कहानी #लोटपोट #बाल कहानी #hindi stories for kids #हिंदी बाल कहानी #Hindi Bal Kahaniyan #Moral Stories #hindi stories #kids short stories #हिंदी बाल कहानियाँ #Kids Stories #लोटपोट ई-कॉमिक्स #hindi short Stories #kids hindi stories #short stories #Bal kahani #छोटी हिंदी कहानी #Lotpot You May Also like Read the Next Article