Moral Story: नन्हा चित्रकार

नन्हा नन्‍दू एक अच्छा चित्रकार था। अभी उसे न पढ़ना आता था, न लिखना, पर उसने चित्र बनाना सीख लिया था। जब भी मम्मी या पापा बाजार जाते नन्‍दू अपनी फरमाइशों की एक लम्बी लिस्ट उन्हें पकड़ा देता।

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नन्हा चित्रकार

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Moral Story नन्हा चित्रकार:- नन्हा नन्‍दू एक अच्छा चित्रकार था। अभी उसे न पढ़ना आता था, न लिखना, पर उसने चित्र बनाना सीख लिया था। जब भी मम्मी या पापा बाजार जाते नन्‍दू अपनी फरमाइशों की एक लम्बी लिस्ट उन्हें पकड़ा देता। उसमें एक बाल बनी होती, एक बैट बना होता, एक चश्मा बना होता, चाकलेट बनी होती, टाफी बनी होती और न जाने कया-क्या बना होता, पर मम्मी-पापा उसकी चित्रकारी की भाषा को अच्छी तरह समझते थे। (Moral Stories | Stories)

नन्‍दू का चौथा जन्म दिन था इस बार पापा ने उसे रंगों की डिब्बी और ब्रुश गिफ्ट किये साथ में बहुत सी रंग-बिरंगी शीट्स भी दीं।

“लो बेटा! अब तुम इन शीट्स पर खुब ड्राइंग बनाना “पापा ने कहा तो नन्दू बड़ा खुश हुआ। अभी तक तो वह केवल पेंसिल से ही चित्र बनाता था। अब उनमें तरह-तरह के रंग भी भरेगा। अगले दिन से ही वह अपना काफी समय चित्रकला में लगाने लगा, वैसे भी नए-नए रंगों का शौक था। सप्ताह भर में उसने काफी शीट्स भर दी, जो भी घर में आता, उसकी ड्राइंग की प्रशंसा जरूर करता।

प्रशंसा सुनकर नन्दू का उत्साह और बढ़ जाता। एक दिन दोपहर में मम्मी सो रही थी, नन्दू चित्रकला में लगा था। जब मम्मी सोकर उठीं तो सामने की दीवार देखकर परेशान हो उठीं नन्‍दू ने उस पर तरह-तरह के आडे-तिरछे चित्र बना रखे थे मम्मी को बड़ा गुस्सा आया। नन्‍दू को बुलाकर डांटते हुए बोली “तुम्हे इसलिए रंग लाकर दिये थे कि घर की दीवारें खराब करो। (Moral Stories | Stories)

नन्‍दू को पेंटिंग बनाने पर ही डॉट पड़ी थी वह तो समझ रहा था कि मम्मी उठते ही उसको शाबाशी देगी। “लगता है मम्मी को पेंटिंग पसन्द नहीं आई, इस बार मैं इतनी अच्छी पेंटिंग बनाऊंगा कि मम्मी खुश हो जायेगी।''

अगले दिन जब मम्मी रसोई के काम में लगी थी नन्दू की कोई आवाज सुनाई न दी तो मम्मी उसे ढूंढती हुई डाइनिंग रूम में आई। कमरे की दीवार को देखते ही उनका गुस्सा भड़क उठा उन्होंने आव देखा न ताव, नन्दू के दो तमाचे लगा दिये।

“तुम्हे कल भी मैंने कहा था कि दीवार खराब मत किया करो, पर तुम पर कुछ असर ही नहीं होता।" (Moral Stories | Stories)

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“लगता है, मम्मी को आज भी मेरी पेंटिंग पसन्द नहीं आई, “मन ही मन नन्‍दू ने सोचा। “पर मम्मी, अभी तो यह पूरी ही नही हुई जब पूरी हो जायेगी, तब...

“लगता है, मम्मी को आज भी मेरी पेंटिंग पसन्द नहीं आई, “मन ही मन नन्‍दू ने सोचा। “पर मम्मी, अभी तो यह पूरी ही नही हुई जब पूरी हो जायेगी, तब अच्छी लगेगी, “नन्दू ने आंसू बहाते हुए कहा। नन्दू के आंसू देखकर मम्मी कुछ ढीली पड़ी और उसे समझाते हुए बोली, “बेटा! पेंटिंग करने से दीवारें खराब हो जाती हैं, तुम्हे जो भी चित्र बनाने हैं, पेंटिंग शीट्स पर बनाओ। फिर हम उन्हें फ्रेम करवा कर कमरे में टांग देंगे मम्मी की बात सुनकर नन्‍दू चुप हो गया, पर उसे उनकी बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी।

“अरे! मम्मी की तो आदत ही है दिन भर “यह मत करो, वह मत करो, यह ठीक नहीं, वह गलत है कहने की"। इनकी बात पर ध्यान दिया तो हो गई मेरी पेंटिंग “नन्दू ने मन ही मन कहा और कुछ सोचते हुए खेलने चला गया अगले दिन नन्दू स्कूल से रंग-बिरंगे चाक के टुकड़े लाया, उसने घर के बाहरी गेट के दोनों ओर रंग-बिरंगें चित्र बनाये चित्रों को देखकर वह बड़ा खुश हुआ।

“अब तो सबको घर में आने से पहले ही पता चल जायेगा कि कोई इस घर में बहुत बढ़िया चित्र बनाता है, "नन्दू ने सोचा और उछलता हुआ घर के अन्दर आ गया। इस बार उसे पापा ने भी समझाया, “बेटा! अच्छे बच्चे दीवारों पर चित्र नहीं बनाते “नन्दू मम्मी पापा के सामने तो चुप हो जाता था, पर बाद में मनमानी करता रहता था। एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। सोफा सेट की रेग्जीन के ऊपर बाल पेन से तरह-तरह के चित्र बना दिये, उस दिन मम्मी-पापा को उस पर बहुत गुस्सा आया। वे समझ गये थे कि नन्‍दू प्यार दुलार से समझने वाला नहीं उस दिन उन्होंने उसे डांटा-फटकारा ही नहीं उसकी जमकर पिटाई भी की। (Moral Stories | Stories)

धीरे-धीरे नन्दू ढीठ हो गया अब वह स्कूल की दीवारों पर भी रंगीन चाक और रंगों से चित्र बनाने लगा मैडम ने उसे ऐसा न करने के लिए कहा तो वह अपनी मेज पर ही चित्र बनाता रहता।

बीनू नन्दू का पक्का दोस्त था। उसने भी उसे समझाया कि वह स्कूल का फर्नीचर खराब न करे, पर नन्दू पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ। नन्दू की यह गन्दी आदत छुड़ाने के लिए मुझे कुछ जरूर करना चाहिये।'' बीनू ने सोचा। 

अगले दिन आधी छुट्टी के बाद नन्दू जब कक्षा में आया तो उसे देखकर सब हंसने लगे, उसके पीछे से उल्लू-उल्लू की आवाजें आ रही थीं यही नहीं उसने गुल्लू को तो स्पष्ट कहते सुना था, कि नन्दू उल्लू है नन्दू कुछ समझ नही पा रहा था, पर वह काफी परेशान था। (Moral Stories | Stories)

छुट्टी होने पर वह घर की ओर चल दिया फिर उसने अपने पीछे आते बच्चों के ठहाके सुने बीच-बीच में उसे उल्लू-उल्लू शब्द भी सुनाई दे रहे थे उनकी हंसी से बचने के लिए नन्दू ने अपनी चाल तेज कर दी वह लगभग भागता हुआ सा अपने घर पहुंचा।

पसीने से तरबदर घबराये हुए नन्दू को देखकर मम्मी ने आगे बढ़कर उसे गोद में उठा लिया। तभी उनकी नजर उसकी पीठ पर पड़ी, उसकी पीठ देखकर मम्मी जोर-जोर से हंसने लगी।

मम्मी को भी अपने ऊपर हंसते देख नन्दू के गुस्से का ठिकाना न रहा। वह समझ नहीं पा रहा था कि आज सब उसे देखकर हंस क्यों रहे हैं। वह दौड़कर ड्रेसिंग टेबल के सामने गया। मिरर में उसे हंसने जैसी कोई बात दिखाई न दी। (Moral Stories | Stories)

तभी उसे मम्मी की आवाज सुनाई दी, “बेटा नन्दू! अभी तक तो तुम जमीन, दीवारों और फर्नीचर पर ही पेंटिंग करते थे अब अपनी पीठ पर ही पेंटिंग चिपकानी शुरू कर दी।"

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“मेरी पीठ पर पेंटिंग चिपकी हुई है!'' अपनी पीठ पर हाथ ले जाते हुए आश्चर्य से नन्दू ने पूछा तो मम्मी ने उसकी कमीज निकालकर उसके हाथ में दे दी कमीज के पीछे उल्लू की पेंटिंग चिपकी थी। नीचे लिखा था- दिवारों को खराब करने वाला नन्दू। “अरे! यह पेंटिंग मेरी पीठ पर किसने चिपकाई?' नन्दू आश्चर्य से बोला तभी बीनू वहां आया और बोला, “नन्दू! मुझे माफ करना। यह पेंटिंग मैंने ही तुम्हारी पीठ पर चिपकाई थी मैं तुम्हें यह अहसास कराना चाहता था कि हर चीज अपनी जगह पर सुन्दर लगती है, तुम दीवारों पर जगह-जगह चित्र बनाकर उन्हें ख़राब करते हो तो अपना बनाया हुआ एक सुन्दर सा चित्र फ्रेम करवाकर दीवार पर टांगो। जिस उल्लू के चित्र को तुम्हारी पीठ पर चिपका देखकर सब हंस रहे थे, वही चित्र यदि पेंटिंग शीट पर बनाकर, फेम करवाकर कहीं सजाया जाता तो कितना सुन्दर लगता?'' तुम ठीक कहते हो बीनू, “नन्दू को अपनी गलती का अहसास हो गया था अब उसने दीवारों, फर्श और फर्नीचर पर चित्र बनाना छोड़ा दिया था इससे उसके मम्मी-पापा भी खुश थे और स्कूल में मैडम भी प्रसन्‍न थी, पर सबसे अधिक खुश था बीनू, उसके प्रयत्न से उसके दोस्त की गन्दी आदत जो छूट गई थी। (Moral Stories | Stories)

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