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विद्वेष की भावना
Moral Story विद्वेष की भावना:- उन दिनों बनारस नगरी में शीतल नाम के एक ज्ञानी जी रहते थे, वे शांत प्रकृति एवं नेक दिल इंसान थे। उनकी धैर्य शीलता और दयालुता के कारण कई लोग उन्हें त्याग एवं तपस्या का साक्षात देवता कहकर पुकारते थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो उनसे जलन रखते थे, कोई न कोई बहाना ढूंढकर वे हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते। (Moral Stories | Stories)
वे रात्रि के समय अपने घर का तमाम कूड़ा करकट एकत्रित करके उनके घर के आगे फेंक आते। कई मर्तबा वे कांटे तथा नुकीले कंकर पत्थर भी बिछा दिया करते।
भोर में जब ज्ञानी जी की नींद उचटती तो वे अपने घर के आगे फैली तमाम गन्दगी को अपने हाथों से उठाकर कूड़ेदान में फेंक आते। एक दिन ज्ञानी जी के...
भोर में जब ज्ञानी जी की नींद उचटती तो वे अपने घर के आगे फैली तमाम गन्दगी को अपने हाथों से उठाकर कूड़ेदान में फेंक आते। एक दिन ज्ञानी जी के खास मित्र ने पंचायत के समक्ष चर्चा करते हुए कहा- 'ज्ञानी जी तो शांत प्रकृति के इंसान हैं, लेकिन कुछ शरारती लोग उन्हें बेमतलब परेशान करते रहते हैं, अत: ऐसे लोगों को दंड देना चाहिए'। (Moral Stories | Stories)
पंचायत के मुखिया ने जब ज्ञानी जी से पूछा- 'उन उदंडी लोगों को कैसा दंड दें?
इस पर ज्ञानी जी बोले- 'नहीं, मैं किसी भी तरह के दंड की आवश्यकता नहीं समझता'।
“तो फिर आप कब तक उन दुष्ट लोगों के इस दुस्कृत्य को यूं ही सहन करते रहेंगे?" मुखिया ने सवाल किया। (Moral Stories | Stories)
ज्ञानी जी ने मंद मंद मुस्कुराते हुये कहा- ''मैं तब तक ऐसा करता रहूंगा, जब तक कि उनके पत्थर दिल में मेरे प्रति ईर्ष्या व विद्वेषी की भावना समाप्त नहीं हो जाती।
ज्ञानी जी के इस जवाब के आगे उन दुष्ट लोगों को अपना शीश झुकाना पड़ा, अब वे कूड़ा करकट न फेंकने का संकल्प ले चुके थे, उनके सच्चे शिष्य भी बन गये थे। (Moral Stories | Stories)
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