/lotpot/media/media_files/WofEvfwxumwcxPYnpNbo.jpg)
गुरूकर्म
Moral Story गुरूकर्म:- भगवान श्रीकृष्ण को उज्जयिनी के सुविख्यात विद्वान और धर्मशास्त्रों के प्रकांड पंडित ऋषि संदीपनी के पास विद्या अध्ययन के लिए भेजा गया। ऋषि संदीपनी भगवान श्रीकृष्ण और दरिद्र परिवार में जन्मे सुदामा को एक साथ बिठाकर शास्त्रों की हर प्रकार से शिक्षा देने लगे। श्रीकृष्ण गुरुदेव के यज्ञ हवन के लिए स्वयं जंगल में जाकर लकड़ियां काटकर लाया करते थे। वे देखते और समझते थे कि गुरुदेव तथा उनकी पत्नी दोनों परम संतोषी हैं। श्रीकृष्ण रात के समय गुरुदेव के चरण दबाया करते और सबेरे उठते ही उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले अपने दिन का शुभारंभ करते।
कई वर्ष गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उनकी शिक्षा पूरी हो गई। शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण को ब्रज लौटना था। वह विदा लेने से पूर्व अपने गुरु ऋषि संदीपनी के पास पहुंचे। गुरु के चरणों में बैठते हुए हाथ जोड़कर बोले, ‘गुरुदेव, मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं दक्षिणा के रूप में आपको कुछ भेंट करूं।’ उनकी बात सुनकर ऋषि संदीपनी ने मुस्कराकर उनके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा, ‘वत्स कृष्ण! सुनो, ज्ञान बदले में कुछ लेने के लिए नहीं दिया जाता है। सच्चा गुरु वही है, जो शिष्य को शिक्षा के साथ संस्कार भी देता है। मैं दक्षिणा के रूप में यही चाहता हूं कि तुम औरों को भी संस्कारित करते रहो।’ क्योंकि शिक्षा के दौरान ऋषि जान गए थे कि वह तो मात्र गुरु हैं, यह बालक आगे चलकर ‘जगतगुरु कृष्ण’ के रूप में ख्याति पाएगा। उन्होंने कहा, ‘वत्स, मैं तुमसे यही कामना करता हूं कि तुम जब धर्मरक्षार्थ किसी का मार्गदर्शन करो, तो उसके बदले में कभी भी कुछ स्वीकार न करना।’ श्रीकृष्ण अपने गुरु का आदेश शिरोधार्य कर लौट आए। और अपने इसी गुरुकर्म का पालन करते हुए, आगे चलकर उन्होंने अर्जुन को न केवल ज्ञान दिया, अपितु उनके सारथी भी बने।
सीख: प्यारे बच्चों हमें इस कहानी से ये शिक्षा मिलती है कि, हमें हमेशा सबकी मदद निःस्वार्थ भाव से करनी चाहिए।
बाल कहानी | लोटपोट | Hindi Bal Kahani | Kids Moral Story | bal kanahi | Hindi Moral Story | हिंदी नैतिक कहानी | छोटी हिंदी कहानी | hindi stories