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आत्म बोध
Moral Story आत्म बोध:- टन..टन...न..न घंटी बजते ही बच्चे जल्दी जल्दी अपना अपना सामान बस्ते में ठूंस कर कक्षा से निकलने लगे। मदन ने अपनी किताबें समेटी ही थीं कि दीपक जल्दी से चलता हुआ उसके पास आया मदन जरा गणित की कॉपी दे देना। एक क्षण मदन ने सोचा नहीं भाई दीपक, आज तो मुझे खुद इस कॉपी में काम करना है। एकदम रूखाई से जवाब दे वो कक्षा से निकल गया। (Moral Stories | Stories)
दीपक ने मुँह बिचका दिया- मतलबी कहीं का। जरा सी कॉपी क्या माँगी फट से मना कर दिया अरे कॉपी क्या घिस जाती और आज तो गणित में कोई कार्य मिला ही नहीं तो काम कहाँ से करेगा। झूठा कहीं का। (Moral Stories | Stories)
वो तो उसे कल बुखार आ गया था। स्कूल नहीं आ पाया इसलिए...
वो तो उसे कल बुखार आ गया था। स्कूल नहीं आ पाया इसलिए कॉपी माँगी थी। ठीक है बच्चू अब तेरा भी कभी काम पड़ेगा पढ़ने में थोड़ा होशियार क्या है अपने आप को ज्यादा ही बनने लगा है। देखा कैसा हैकड़ी से चल रहा है- मन ही मन बड़बड करता हुआ दीपक भी पीछे पीछे कक्षा से निकल पड़ा। (Moral Stories | Stories)
अपने ही विचारो में खोया हुआ वो गणित के काम की ही सोच रहा था अब तो सवाल समझने के लिए पापा की ही खुशामद करनी पड़ेगी।
मौहल्ले में घुसते ही उसकी नजर टिंकू पर पड़ी। उसे देखकर मुँह और कड़वा हो गया। (Moral Stories | Stories)
टिंकू भी बिल्कुल मदन की तरह है मतलबी परसों वो और उसका छोटा भाई मनोज गेंद खेलने की सोचने लगे। पर गेंद घर से कहाँ गई बहुतेरा ढूँढा ना मिली। टिंकू से गेंद माँगी तो दो टूक जवाब मिला -गेंद पता नहीं कहाँ है। अभी तो पापा के संग बाहर जाने के लिए जल्दी में हूँ। भला यह भी कोई जवाब हुआ। ढूँढने से पहले ही साफ नकार गया। और फिर क्या वो टिंकू की आदत जानता नहीं है। चीज को इतना संभाल कर रखता है कि इधर-उधर होने का सवाल ही नहीं उठता। (Moral Stories | Stories)
मन तो उस समय और भी खराब हुआ जब एक घंटे बाद ही उसने देखा टिंकू अपनी बहन के साथ सामने वाले पार्क में गेंद उछाल रहा था।
घर आते-आते उसका मन बहुत क्षुब्ध हो गया था। ख्यालों में खोया हुआ दीपक घर में घुसा और हाथ मुहँ धोने गुसलखाने में चला गया। (Moral Stories | Stories)
दस मिनट में तरोताज़ा हो तौलिया हाथ में लिए गुनगुनाता हुआ जैसे ही बाहर आया देखा-उसका छोटा भाई मनोज उसकी घड़ी पहने आराम से कुर्सी पर बैठा हुआ है।
एकदम उसका पारा तेज़ हो गया। जल्दी से हाथ से घड़ी खोल कर जोर से कान उमेठ दिया। तूने मेरी घड़ी क्यों पहनी। सौ बार कहा है तू मेरी चीजें मत छुआ कर, पर मानता ही नहीं है।
कान उमेठते ही मनोज दर्द से चीख पड़ा-माँ रसोई में दोनों बच्चों का दूध गरम कर रही थी। चीख सुनते ही बाहर निकल कर आई क्या बात है? घर में घुसते ही दोनों में झगड़ा तैयार है।
माँ माँ दीपक भैय्या ने मेरा कान उमेठ दिया। रोते रोते मनोज बोला। (Moral Stories | Stories)
हाँ हाँ ये क्यों नहीं कहता कि तूने मेरी घड़ी पहनी थी। दीपक जोर से गरजा।
‘ओफ जरा-जरा सी बात में मार पिटाई शुरू हो जाती है छोटे भाई ने घड़ी क्या छु ली कि हाथ चला दिए। अभी से तेरी ऐसी क्या आदत पड़ गई है। भाई के संग ऐसा व्यवहार करते हैं?’’
‘मुझे पसंद नहीं माँ, कि कोई मेरी वस्तु छुए। (Moral Stories | Stories)
तुझे यह पसंद नहीं है तो फिर दूसरा कौन तुझे अपनी चीज देगा। तू क्यों कल मनोज का बल्ला लेकर स्कूल चला गया था। उसे बोल कर माँ मनोज पर गुस्सा निकालने लगी तू भी उसे कूछ मत देना।
पहले ही मन खराब हो रहा था। माँ की बातों से और दिमाग खराब हो गया वो घड़ी और बस्ता लेकर अपने कमरे की ओर बढ़ गया। (Moral Stories | Stories)
पर यह क्या? माँ की कही बात आज उसके मन में बार बार घुमड़ घुमड़ कर क्यों आ रही है?
तूने क्यों मनोज का बल्ला लिया था? तुझे भी कोई अपनी चीज नहीं देगा। तो... तो.. क्या इसीलिए मदन ने उसे कॉपी के लिए मना कर दिया था। हाँ कुछ दिन पहले मदन ने उससे आधी छुट्टी में साईकिल माँगी थी यार दीपक जरा अपनी साईकिल दे दे। मेरे चाचा जी अस्पताल में भर्ती हैं उन्हें देखकर अभी आधे घण्टे में वापिस आता हूँ। (Moral Stories | Stories)
पर उसने फट से मना कर दिया था। टिंकू का चेहरा भी जैसे बोल रहा हो-हाँ दीपक मैंने भी तुम्हें गेंद के लिए इसीलिए मना किया था कि तीन-चार बार मैंने तुमसे कुछ माँगा तो तुमने साफ मना कर दिया था। उसके मस्तिष्क में जैसे मदन और टिंकू की आवाज गूँज रही हो उसका बदन पसीने पसीने हो गया। इधर से उधर बैचेनी के साथ वो कमरे में चक्कर लगाने लगा। अभी भी माँ की आवाज प्रतिध्वनित हो रही थी जब तू किसी को कुछ नहीं देगा तो तेरी कौन मदद करेगा।? लगता था यह सब आवाजें तेज होकर उसके कानों के पर्दे को फाड़ देगें। वो एकदम चीख पड़ा नहीं नहीं अब कभी ऐसा नहीं होगा। (Moral Stories | Stories)
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