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अंधा पहरेदार
Moral Story अंधा पहरेदार:- रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था। अंधे पहरेदार का कोई नहीं था। बेचारा गरीब था। इसलिये गोविन्द लाल ने उसके गुजारे के लिए उसे पहरेदारी की नौकरी दी थी। यों तो दुकान में कुछ नहीं रहता था। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान थी, सो कभी-कभार दुकान में राशन भर जाता था। वर्ना दुकान हमेशा खाली रहती थी। इसलिए महज़ दिखावे के लिए गोविन्द लाल ने अंधे आदमी को पहरेदार के रूप में रख लिया था। (Moral Stories | Stories)
रात अभी कितनी बीती है, कितनी बाकी है। इसकी जानकारी अंधे पहरेदार को नहीं थी। किन्तु उसे काफी जोरों की नींद आने लगी थी। फिर भी वह सारी रात जागे रहने का भरसक प्रयास कर रहा था। दरअसल आज दुकान में गेहूं के दस बोरे लाये गये थे। इसलिए चोरी होने का डर लगा हुआ था। दुकान में आते समय गोंविन्द लाल ने उसे इस बात की चेतावनी भी दी कि आज दुकान में गेहूँ के दस बोरे हैं। रात भर होशियार रहना सोना नहीं।
बरामदे में सीढ़ियाँ चढने की कुछ लोगों की आहटें सुनाई पड़ी आहटें सुनकर अंधा पहरेदार चौंक पड़ा-कौन? कौन आ रहा है?’ (Moral Stories | Stories)
दुकान के बरामदे में चढ़ने वालों में से एक ने रोबदार अवाज़ में कहा-’ अब्बे अंधे, चिल्लाना मत? दुकान का ताला तोडकर केवल गेहूँ के पाँच बोरे हम ले जाना चाहते हैं, अगर चिल्लाया न तो समझ जाओ, समझे?’
अंधा पहरेदार चुप रहा स्वर में बनावटीपन था। अतः अंधे पहरेदार ने दिमाग में जोर लगा कर आवाज़ पहचानने की चेष्टा की। पर गाँव में इस तरह की रोबदार आवाज़ में बोलने वाला कोई नहीं था। (Moral Stories | Stories)
’चोर ......! मन में बात उठते ही अंधा पहरेदार कांपने लगा। अब क्या करें?
उसकी समझ में कुछ न आया, इस वक्त शोर मचाना भी मुनासिब नहीं था और भाग जाना भी मुश्किल था। अंधा पहरेदार हर तरफ से मजबूर हो गया।
जान सब को प्यारी होती है। अतः अपने मालिक की परवाह न करके अंधा पहरेदार बोला- ’ले जाइये, चिल्लाऊंगा नहीं! शोर नहीं मचाऊंगा। लेकिन मुझे जान से मत मारिये!’ (Moral Stories | Stories)
तोड़ने की आवाज़ सुनाई पड़ी दरवाजा धड़ाक से खुल गया। चोर दुकान के अंदर घुसा। अंधा पहरेदार बरामदे में ही खड़ा था।
चंद मिनटों में ही एक बोरा बरामदे में पटकाया। इस प्रकार दूसरा, तीसरा, चैथा और पाचवां...
चंद मिनटों में ही एक बोरा बरामदे में पटकाया। इस प्रकार दूसरा, तीसरा, चैथा और पाचवां बोरा पटकने की आवाज सुनाई पड़ी। (Moral Stories | Stories)
तभी एक ने कहा- ‘अब्बे दरवाजा बंद कर?’
दूसरे ने कहा- ‘अब्बे शोर मत मचाना?’
तीसरे ने कहा- ‘शोर मचाकर भागेगा कहाँ?’
चैथे ने अंधे पहरेदार की मजबूरी और उसका अंधेपन पर ब्यंग्य किया- ‘भागेगा कैसे? देख जो नहीं सकता।’ (Moral Stories | Stories)
पांचवें को संदेह यह था कि पहरेदार ने उन्हें पहचाना तो नहीं। संदेह दूर करने के लिए उसने पूछा-‘तुम ने हमारी आवाज़ पहचान तो नहीं ली?’
‘नहीं.... कुछ भी नहीं, हाँ मगर मुझे मालूम न रहेगा तो अपने मालिक को क्या बताऊंगा।’ अंधा पहरेदार बोला।
एक ने आदेश दिया- ‘गिन ले जल्दी कर?’ (Moral Stories | Stories)
अंधे पहरेदार ने छुरी निकाल कर चोरों के सामने ही बोरे गिनने का अभिनय किया। चोर इस अभिनय को समझ न सके। अंधे पहरेदार ने पांच के पांच बोरों में छुरी से काट दिया।
छेद करने के बाद अंधा पहरेदार बोला- ’गिन लिया। आप लोग पांच हैं। पांच बोरे ले जा रहे हैं, जाइये।
एक-एक बोरा ढो कर चोर नौ-दो ग्यारह हो गये। (Moral Stories | Stories)
सुबह होने के पहले अंधा पहरेदार मालिक के घर गया। मालिक को जगाया और रात की घटना की बातें बता दीं घटना की बातें सुनकर मालिक चिंतित हो उठा- ‘राशन के पांच बोरे? लोगों को क्या जवाब दूँ?’
मालिक का चिंताजनक स्वर सुनकर अंधा पहरेदार बोला- ‘चिंता न करें। मैंने चोरों को पकड़ने का रास्ता बना दिया है। चोर तो क्या? सारे घर वाले पकड़ने का रास्ता बना दिया है। (Moral Stories | Stories)
मालिक ने अंधे पहरेदार की तरकीब जाननी चाही- ‘क्या किया है तुमने?’
अंधे पहरेदार ने बताया- ‘पांच के पांच बोरों में मैंने ऐसा छेद कर दिया है कि बोरे जहाँ तक ढोकर ले जाएगें वहाँ तक गेहूं के दाने गिरे हुए मिलेंगे। गेहूँ के दाने का पीछा करते हुए हम चोरों को पकड़ सकते हैं।’ (Moral Stories | Stories)
अंधे पहरेदार की तरकीब सुनकर मालिक खुश हो गया। उस की जान में जान आ गई। तुरन्त मुखिया के पास जाकर दुकान में चोरी की घटना सुना दी।
चंद मिनटों में मुखिया ने चोरों को गिरफ्तार करा दिया।
गाँव के लोगों ने उस अंधे पहरेदार की बुद्धि और तरकीब की बहुत सराहना की सचमुच अंधे व्यक्ति देख तो नहीं पाते, ज्ञान की ज्योति हमेशा जगमगाती रहती हैं। (Moral Stories | Stories)
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