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व्यवहार का महत्व
हिंदी नैतिक कहानी: व्यवहार का महत्व:- सूरज एक मेधावी छात्र था। उसने पिछली क्लास में और वर्तमान क्लास की परीक्षा में टॉप किया था। सूरज पढ़ने लिखने में बहुत शानदार था और यही कारण था कि सूरज को अपनी पढ़ाई पर घमंड हो गया था, सूरज की इस बात से उसके माता-पिता उससे खुश नहीं थे। कारण था पढ़ाई को लेकर उसका घमंड और अपने बड़ों से तमीज से बात न करना। वह अक्सर ही लोगों से ऊंची आवाज़ मे बात किया करता और बिना किसी वजह के ही उनका मजाक उड़ा देता। दिन बीतते गए और देखते-देखते सूरज ने वह क्लास भी पास कर ली अब आगे की पढ़ाई के लिए उसे अगली क्लास में एडमिशन लेना था।
पढ़ाई में टॉप करने के बावजूद असफलता का सामना
लेकिन यह क्या अच्छे नंबर होने के बावजूद उसका अगली क्लास के इंटरव्यू में चयन नहीं हो पाया था। सूरज को लगा था कि अच्छे अंक के दम पर उसे अगली क्लास में आराम से एडमिशन मिल जाएगा पर ऐसा हो न सका। काफी प्रयास के बाद भी वो सफल ना हो सका। हर बार उसका घमंड, बात करने का तरीका इंटरव्यू लेने वाले को अखर जाता और वो उसे ना लेते। निरंतर मिल रही असफलता से सूरज हताश हो चुका था, पर अभी भी उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अपना व्यवहार बदलने की आवश्यता है।
अध्यापक से मुलाकात और चावल पकाने की कहानी
एक दिन रास्ते में सूरज की मुलाकात अपने स्कूल के पिछली क्लास के प्रिय अध्यापक से हो गयी। वह उन्हें बहुत मानता था और अध्यापक भी उससे बहुत स्नेह करते थे। सूरज ने अध्यापक को सारी बात बताई। चूँकि अध्यापक सूरज के वयवहार से परिचित थे, तो उन्होने कहा- “कल तुम मेरे घर आना तब मैं तुम्हे इसका उपाय बताऊंगा”।
एक चावल के दाने के माध्यम से महत्वपूर्ण सीख
सूरज अगले दिन मास्टर साहब के घर गया, मास्टर साहब घर पर चावल पका रहे थे, दोनों आपस में बात ही कर रहे थे कि मास्टर साहब ने सूरज से कहा जाके देख के आओ की चावल पके की नहीं। सूरज अन्दर गया उसने अन्दर से ही कहा- “सर चावल पक गए हैं, मैं गैस बंद कर देता हूँ”। मास्टर साहब ने भी ऐसा ही करने को कहा।
अब सूरज और मास्टर साहब आमने सामने बैठे थे। मास्टर साहब सूरज की तरफ मुस्कुराते हुए बोले– “सूरज तुमने कैसे पता लगाया की चावल पक गए हैं?”
सूरज बोला- “ये तो बहुत आसान था, मैंने चावल का एक दाना उठाया और उसे चेक किया कि वो पका है कि नहीं, वो पक चुका था तो मतलब चावल पक चुके हैं”।
मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले- “यही तुम्हारे असफल होने का कारण है”।
सही व्यवहार की अहमियत और आत्म-विश्लेषण
सूरज उत्सुकता वश मास्टर जी की ओर देखने लगा तो मास्टर साहब समझाते हुए बोले- “एक चावल के दाने ने पूरे चावल का हाल बयां कर दिया सिर्फ एक चावल का दाना काफी है ये बताने को की अन्य चावल पके या नहीं। हो सकता है कुछ चावल न पके हों पर तुम उन्हें नहीं खोज सकते वो तो सिर्फ खाते वक्त ही अपना स्वाभाव बताएंगे। इसी प्रकार मनुष्य कई गुणों से बना होता है, पढ़ाई-लिखाई में अच्छा होना उन्ही गुणों में से एक है, पर इसके आलावा, अच्छा व्यवहार, बड़ों के प्रति सम्मान, छोटों के प्रति प्रेम, सकारात्मक दृष्टिकोण, ये भी मनुष्य के आवश्यक गुण हैं, और सिर्फ पढ़ाई-लिखाई में अच्छा होने से कहीं ज्यादा ज़रुरी हैं”।
सूरज शांत खड़ा मास्टर जी को देख रहा था जबकि मास्टर जी मुस्कुराते हुए आगे कह रहे थे- “तुमने अपना एक गुण तो पका लिया पर बाकियों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया।इसीलिए जब कोई अगली कक्षा के लिए तुम्हारा इंटरव्यू लेता है तो तुम उसे कहीं से पके और कहीं से कच्चे लगते हो, और अधपके चावलों की तरह ही कोई इस तरह के स्टूडेंट को भी पसंद नहीं करता”।
मास्टर जी की बात सुनकर सूरज को अपनी गलती का एहसास हो गया था उसने मास्टर जी से माफी मांगते हुए अपने व्यवहार को सुधारने का वादा किया।
कहानी से सीख: सिर्फ पढ़ाई में अच्छे अंक होना ही सफलता की गारंटी नहीं है। अच्छे व्यवहार, बड़ों के प्रति सम्मान, और सकारात्मक दृष्टिकोण भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। आत्म-विकास के लिए इन गुणों पर ध्यान देना आवश्यक है।