प्रेरणादायक कहानी: न्याय की परख

राजा यशवर्मन, कीर्तिवर्मन के पुत्र, की बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता की कहानी। एक गरीब को स्वर्ण मुद्राएँ देकर सम्मानित किया और नकली गरीब को सजा दी। यह कहानी दिखाती है कि कैसे एक समझदार और न्यायप्रिय राजा अपनी दूरदर्शिता से सही निर्णय ले सकता है।

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न्याय की परख

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प्रेरणादायक कहानी: न्याय की परख:- कीर्तिवर्मन बड़े ही बुद्धिमान राजा थे, वह दयालु भी काफी थे। उनके राज्य में प्रजा बड़ी सुखी थी। कीर्तिवर्मन अपनी प्रजा का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। प्रजा भी अपने राजा को खूब चाहती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। मगर अचानक, एक दिन वज्रपात हो गया। राजा कीर्तिवर्मन चल बसे। पूरे राज्य में शोक छा गया।

राजा कीर्तिवर्मन की मृत्यु और यशवर्मन का राज्याभिषेक

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राजकुमार यशवर्मन अभी छोटा था। फिर भी राज्य की परम्परा के अनुसार उसी का राज्याभिषेक कर दिया गया। यशवर्मन उम्र में अवश्य छोटा था। मगर था वह भी बड़ा बुद्धिमान। उसमें अपने पिता के अलावा अन्य गुण भी मौजूद थे।

यशवर्मन की बुद्धिमत्ता पर संदेह

प्रजा को अब यह चिंता सताने लगी कि राजकाज कैसे चलेगा। उन्हें यशवर्मन की बुद्धि पर अभी विश्वास न था। मंत्रीगण भी अभी यशवर्मन को कच्ची बुद्धि वाला समझते थे।

एक दिन राजा यशवर्मन महल की छत पर बैठे थे। तभी उन्होंने एक आदमी को देखा, वह महल के दरवाजे पर अपनी पीठ रगड़ रहा था। उसके कपड़े काफी गंदे एवं फटे हुए थे। आदमी का शरीर भी काफी गंदा था।

पहले गरीब का स्वागत

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राजा ने अपने नौकर को बुलाया। नौकर के आने पर उसने कहा, "जाओ, उस आदमी को मेरे पास बुलाकर लाओ"।

नौकर उस आदमी को बुला लाया। राजा ने उससे पूछा, "वहां तुम कया कर रहे थे?"

महाराज मैं अपनी पीठ की खुजली मिटा रहा था। मैं अकेला था। अपनी खुजली मिटा नहीं सकता था। इसलिए आपके दरवाजे पर पीठ रगड़ने लगा। इससे मेरी खुजली मिट गई। उस आदमी ने जवाब दिया।

"तुमने इतने गंदे कपड़े क्‍यों पहन रखें हैं? लगता है कि तुम कई दिनों से नहाये भी नहीं हो?" "महाराज, मैं गरीब आदमी हूं। मेरे पास सिर्फ यही कपड़े हैं। इस कारण मैं इन्हें रोज-रोज धो नहीं सकता और स्नान भी नहीं कर सकता हूं"।

उसकी बात सुनकर राजा यशवर्मन को बहुत अधिक दुख हुआ। उन्होंने अपने मंत्री को बुलाया और उसे आदेश दिया "इस गरीब आदमी को अच्छे कपड़े व एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ दे दी जाएँ"। आदेश का तुरंत पालन हुआ। वह आदमी राजा को दुआएं देता हुआ चला गया। मंत्रियों एवं दरबारियों ने भी राजा की दयालुता की तारीफ की।

दूसरे गरीब के साथ अलग व्यवहार

अगले दिन राजा ने फिर एक आदमी को देखा। वह भी अपने बदन को दरवाजे से रगड़ रहा था। उसके कपड़े भी गंदे एवं फटे हुए थे। राजा ने उस आदमी को अपने पास बुलाया और पूछा, "वहां क्या कर रहे थे?"

"महाराज अपने बदन की खुजली मिटा रहा था"।

"तुम यहां क्‍यों खुलजी मिटा रहे थे?"

"महाराज मैं अकेला अपनी खुजली नहीं मिटा सकता था। आपके महल का दरवाजा दिखाई पड़ा तो यहां चला आया"।

"तुम्हारे कपड़े इतने गंदे और फटे हुए क्‍यों हैं?"

"महाराज, मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे पास सिर्फ यही कपड़े हैं। इसलिए मैं इन्हें रोज-रोज धो नहीं सकता"। उस आदमी की बात सुनकर राजा ने अपने मंत्री से कहा, "इस आदमी के पचास कोड़े मारकर इसे महल के बाहर निकाल दो"।

न्याय की परख और समझ

राजा का आदेश पाकर सब हैरान रह गये। वे समझ न सके। मगर राजा के आदेश का पालन तो होना ही था। इसलिए उस आदमी के पचास कोड़े लगवाकर उसे महल के बाहर निकाल दिया गया।

महल में उपस्थित मंत्री दरबारी तथा प्रजा राजा के इस विचित्र न्याय को समझ न सके। सबके दिमाग में उथल-पुथल मची थी। कोई समझ नहीं पा रहा था कि राजा ने ऐसा क्यों किया। एक को एक हजार स्वर्ण मुद्रायें तथा दूखरे को पचास कोड़े, मगर किसी की हिम्मत राजा से कुछ पूछने की नही पड़ रही थी।

सब लोगों को राजा के न्याय एवं बुद्धि पर शक होने लगा। उन्होंने सोचा कि राजा ने अपनी कच्ची बुद्धि के कारण ही ऐसा किया है। उनमें अभी समझ की कमी है। अब तो इस राज्य का भगवान ही मालिक है।

एक दरबारी ने बड़ी हिम्मत करके राजा से पूछ ही लिया "महाराज एक बात हमारी समझ में नहीं आई"।

"क्या बात समझ में नहीं आई?"

"महाराज, आपने कल एक गरीब आदमी को एक हजार स्वर्ण मुद्रायें दिलवाई थीं, जबकि आज एक गरीब आदमी को पचास कोड़े लगवा दिये"।

राजा यशवर्मन की दूरदर्शिता

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"इसमें हैरानी की क्या बात है? कल वाला आदमी वास्तव में गरीब था। आज वाला आदमी गरीब बनने का नाटक कर रहा था। कल वाला आदमी मजबूरी वश यहां आया था, जबकि आज वाला लालचवश"।

"वह आपने कैसे पहचाना, महाराज?"

"कल वाला आदमी गंदे कपड़े पहने था। उसके बाल एवं हाथ पैरों में काफी मिट्टी लग रही थी। आज जो आदमी आया था, उसके हाथ पैर एवं बालों में मिट्टी नहीं लग रही थी। वह आदमी अपने हाथ की अंगुली में हीरे की एक अंगूठी भी पहने हुए था। बताओ, क्‍या हीरे की अंगूठी पहनने वाला गरीब हो सकता है?"

"नहीं, महाराज नहीं"। सब एक साथ बोल पड़े।

"बस इसलिए उस नकली गरीब आदमी को कोड़े मारे गये और असली गरीब आदमी को स्वर्ण मुद्रायें दी गई"।

न्याय और बुद्धिमत्ता की भूमिका

"महाराज आपने तो बड़ा ही अच्छा न्याय किया। आपकी नजर तो सचमुच में ही बड़ी परख वाली है"। सबने मिलकर कहा। 

अब सभी की समझ में आ गया कि यशवर्मन भी बड़े दूरदर्शी राजा हैं। उन पर शक करना बहुत बड़ी भूल थी। प्रजा भी अब निश्चिन्त हो गई। उसे विश्वास हो गया कि राजा यशवर्मन अच्छे ढंग से राजकाज चला लेंगे। यशवर्मन ने लम्बे समय तक सफलतापूर्वक राज किया। उनके शासन में राज्य ने बड़ी तरक्की की।

कहानी से सीख: सच्चे न्याय की पहचान और निर्णय करने के लिए गहरी समझ और दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है। राजा यशवर्मन ने दिखाया कि कैसे असली जरूरतमंदों की सही पहचान कर उनकी सहायता की जा सकती है और छलावे को सजा दी जा सकती है। यह कहानी सिखाती है कि गहराई से समझने और परखने से ही सही न्याय किया जा सकता है।

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