प्रेरणादायक कहानी: मालिक और काना नौकर

एक घर में एक नौकर, जिसका नाम पप्पू है लेकिन मालिक उसे 'काना' कहकर बुलाता है। पप्पू दिन भर घर का काम करता है और मोहल्ले की खबरें भी बताता है। पप्पू की सेवा के कारण मालिक जल्दी ठीक हो जाता है और मालिक ने तब से पप्पू को उसका असली नाम 'पप्पू' से ही पुकारा।

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मालिक और काना नौकर

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मेरे घर में एक नौकर है। नाम तो उसका पप्पू है लेकिन मैं उसे काना कहकर बुलाता हूँ। क्योंकि उसकी एक आँख खराब है। मेरी तरफ देखता है तो लगता है कि दूसरी तरफ देख रहा है और दूसरी तरफ देखता है तो लगता है मेरी तरफ देख रहा है।

पप्पू और 'काना' नाम का रिश्ता

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कोई भी बात होगी, अपनी बात कहने से वो नहीं चूकता है। बहुत बोलता है। दिन भर बक-बक किये रहता है। फिल्म, रसोई घर पढ़ाई-लिखाई तथा आस-पड़ोस के साथ-साथ दुनिया में क्या हो रहा,सबकी खबर रखता है। मुहल्ले की हर नई खबर हमें पप्पू ही बताता है। घर का काम-धाम भी अच्छे ढंग से करता है। 

घर में सब उसे प्यार करते हैं लेकिन मेरी उससे बिल्कुल नहीं पटती है। काना है लेकिन अपने को किसी फिल्‍मी हीरो से कम नहीं समझता है। मैं उसे बात-बात पर काना कहता रहता हूँ।या यूं समझिये मैंने उसे कभी पप्पू कहा ही नहीं। मैंने अपनी तरफ से उसे काना नाम ही दे दिया है।

पप्पू की सेवा और मालिक की आपत्ति

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मैं उसे काना कहता हूँ तो वह बुरा नहीं मानता। मुझसे प्रेम से ही बोलता है। एक बार उसने मुझसे पूछा भी था कि मेरा पप्पू नाम अच्छा नहीं लगता क्या आपको? मैंने कहा "पप्पू नाम ठीक है लेकिन काम के अनुसार या रंग रूप के अनुसार नाम हो तो और अच्छा लगता है। अब देखो मेरा नाम "चिराग" है क्योंकि मैं इस घर का इकलौता लड़का हूँ। तुम आँख से काने हो इसलिए तुम्हारा काना नाम तुम्हारे लिए एकदम ठीक है"।

इसके बाद उसने कभी मुझसे काना कहने की शिकायत नहीं की। मैं उसे काना कहता हूँ तो मुझे बहुत मजा आता है।

दुर्घटना के बाद पप्पू की भूमिका

एक दिन मैं साइकिल से बाजार जा रहा था। एक जीप ने धक्का मारा और मैं घायल हो गया। कुछ लोगों ने मुझे उठा कर अस्पताल में भर्ती किया। पता चला कि मेरे एक पैर में गम्भीर रूप से चोट आयी है। डाक्टर ने बताया कम से कम चार-पाँच महीने तो बिस्तर पर लग ही जायेंगे।

मालिक का नया दृष्टिकोण

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एक हफ्ते बाद मैं अस्पताल से घर आया। मम्मी के कहने पर पप्पू मुझे सेव देते हुए बोला- "बहुत दुःख की बात है छोटे साहब! आपका एक पैर खराब हो गया"। पप्पू ने ऐसा कहा तो मुझे लगा कि वो मुझे लंगड़ा कहकर चिढ़ा रहा है। मन ही मन मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन मैं उसे डाँटता कैसे, उसने तो मुझे खुले शब्दों में लंगड़ा भी नहीं कहा था और फिर पता नहीं उसने ये बात मुझे चिढ़ाने के लिए कही थी या सहानुभूति वश कही थी। जो भी हो पप्पू ने तीन महीने तक मेरी सेवा की और मैं तीन महीने में ही चलने लायक हो गया। ये सब पप्पू को सेवा का परिणाम था। उस दिन से मैंने उसे काना बोलना छोड़ दिया।

कहानी से सीख: सच्ची सेवा और निष्ठा के माध्यम से ही किसी के प्रति सम्मान और समझ विकसित होती है। बाहरी विशेषताओं से ज्यादा महत्वपूर्ण किसी की सेवा और योगदान होता है।

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