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अप्पू और गप्पू
Jungle Story अप्पू और गप्पू:- अप्पू हाथी और गप्पू बन्दर पक्के दोस्त थे। पिछले तीन सालों से वे एक ही कक्षा में पढ़ते-पढ़ते ऊब गये थे। पढ़ाई-लिखाई में उनका मन नहीं लगता था। दिन भर स्कूल में अध्यापकों से डांट खाते थे और शाम को मम्मी-पापा से। इस साल भी वे हमेशा की तरह कक्षा में अनुत्तीर्ण रहे थे और उन्होंने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि अब वे स्कूल नहीं जाएंगे। (Jungle Stories | Stories)
अप्पू और गप्पू के घर वालों को जब यह मालूम हुआ कि उनके सुपुत्र अब स्कूल नहीं जाना चाहते तो उन्होंने माथा पीट लिया अप्पू के पिता नन्नू हाथी लकड़ी ढ़ोने का काम करते थे।
“ठीक है, कल से तुम भी मेरे साथ लकड़ी ढोना शुरू कर दो, नन्नू हाथी ने अप्पू से कहा तो इच्छा न होते हुए भी उसे हामी भरनी पड़ी और अगले दिन से ही उसने पिता के साथ काम पर जाना शुरू कर दिया। गप्पू के पिता, राजा शेरसिंह के राजमहल के पहरेदार थे। पिता के कहने पर गप्पू ने भी उनके साथ काम करना शुरू कर दिया। (Jungle Stories | Stories)
अप्पू और गप्पू दिन भर काम करते थे और शाम को खेलने के समय एक दूसरे से मिलते थे। दोनों ही अपने काम से सन्तुष्ट न थे। “लकड़ी ढोते-ढ़ोते...
अप्पू और गप्पू दिन भर काम करते थे और शाम को खेलने के समय एक दूसरे से मिलते थे। दोनों ही अपने काम से सन्तुष्ट न थे। “लकड़ी ढोते-ढ़ोते मैं तो थक कर चूर हो जाता हूं। इतनी मेहनत पढ़ाई में की होती तो अव्वल आता,” अप्पू ने दुखी मन से गप्पू से कहा तो गप्पू भी अपना दुखड़ा रोने लगा।
“मित्र! मेरी हालत तो और भी खराब है। दिन भर राजा शेरसिंह की चाकरी करनी पड़ती है, पर इस सबसे छुटकारा पाने के लिए मेरे पास एक योजना है। (Jungle Stories | Stories)
“जल्दी बता, हम कैसे काम से छुटकारा पा सकते हैं?” “मैंने कल ही राजमहल में टेलिविजन पर देखा था कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के घुसपैठिये अपने देश में घुस आये हैं। यही नहीं मातृभूमि के लिए कितने ही जवान शहीद हो गये हैं। उनके परिवारों की सहायता के लिए अनेक स्वयं सेवी संस्थाएं काम कर रहीं हैं। क्यों न हम भी एक संस्था खोल लें?” गप्पू ने कहा तो अप्पू बोला- “उससे हमें क्या लाभ होगा?"
“शहीद के परिवारों की सहायता के लिए हम सभी जानवरों से धन इकट्ठा करेंगे। ऐसे काम के लिए सभी जी खोलकर पैसा देते हैं।” गप्पू ने कहा, पर बात अप्पू की समझ में नहीं आई।
अप्पू सोच रहा था कि वह सारा धन तो शहीदों के परिवारों के पास चला जायेगा। फिर उन्हें क्या मिलेगा?
“अरे मूर्ख! वह धन हम कहीं भेजेंगे नहीं बल्कि अपने काम में लेंगे," गप्पू ने झुंझलाते हुए अप्पू को समझाया।
“पर यह तो सरासर बेईमानी है। जो जवान हमारी रक्षा के लिए अपनी जान दे रहे हैं हम उनके नाम पर धोखाधड़ी करें? कम से कम मैं तो ऐसा नहीं कर सकता,'' अप्पू ने गप्पू को ऐसा करने के लिए साफ मना कर दिया।
“पर दोस्त! इससे सैनिकों को कोई नुकसान नहीं होगा। न ही यह कमाई फोकट की होगी। धन इकट्ठा करने में भी मेहनत करनी पड़ती है। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो धन इकट्ठा हो नहीं जायेगा"। आखिरकार गप्पू बन्दर ने सुमझा-बुझाकर अप्पू हाथी को यह काम करने के लिए तैयार कर लिया। (Jungle Stories | Stories)
अगले ही दिन उन्होंने एक पुराने डिब्बे को पेन्ट करके दान पात्र बना लिया और पैसा इकट्ठा करने के लिए निकल पड़े। अप्पू और गप्पू ने जानवरों को समझाया कि पैसा इकट्ठा करके सैनिक कोष में जमा कराया जायेगा। सभी जानवरों ने अप्पू और गप्पू को दिल खोलकर पैसा दिया। किसी भी तरह वे देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों के लिए कुछ करना चाहते थे।
एक सप्ताह के अन्दर ही काफी धन इकट्ठा हो गया। देखते ही देखते अप्पू-गप्पू के रंग-ढंग बदल गए। उन्होंने अपने लिए नये-नये कपड़े सिलवाए। हर शाम वे हलवाई की दुकान पर बैठे नजर आने लगे। अप्पू-गप्पू का बदला रूप देखकर जंगल के जानवरों को शंका हुई। वे समझ गये कि दाल में कुछ काला जरूर है। कुछ जानवरों ने राजा शेरसिंह को भी इस बारे में बताया।
राजा ने अपने जासूसों को उन दोनों के पीछे लगा दिया। दो दिन में ही असलियत सामने आ गई। राजा शेरसिंह ने बचा हुआ धन सैनिक कोष में जमा करवा दिया और अप्पू-गप्पू को सबक सिखाने के लिए उन्हें कारागार में डाल दिया।
कारागार में मेहनत करते-करते उनके पसीने के साथ उनकी मक्कारी भी बह गई। जब वे सजा पूरी करके बाहर आये तो वे सुधर चुके थे। अब वे मेहनत में विश्वास रखने लगे थे। दिन रात पसीना बहाकर जो उन्हें मिलता था, उसी में खुश रहते थे। अपने बच्चों का बदला रूप देखकर उनके मम्मी-पापा भी खुश थे। (Jungle Stories | Stories)
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