Jungle Story: कर्तव्य परायणता

सुन्दरवन विद्यालय का नाम आस पास के जंगलों में भी फैला हुआ था। वहाँ पढ़ने वाले जानवर खूब मन लगाकर पढ़ते थे, अध्यापक भी उन्हें पढ़ाने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

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कर्तव्य परायणता

Jungle Story कर्तव्य परायणता:- सुन्दरवन विद्यालय का नाम आस पास के जंगलों में भी फैला हुआ था। वहाँ पढ़ने वाले जानवर खूब मन लगाकर पढ़ते थे, अध्यापक भी उन्हें पढ़ाने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

सुन्दर वन विद्यालय के जानवर पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी किसी से पीछे नहीं थे। हर साल की प्रतियोगिताओं में उनके विद्यालय को कई-कई इनाम मिलते। यही कारण था कि अध्यापन करने वाले कई शिक्षक जानवर उस विद्यालय में पढ़ाने के अवसर की तलाश में रहते थे। सुन्दरवन विद्यालय के प्रिंसीपल थे हाथीराम, अपने डील डोल के अनुरूप ही उनका स्वभाव भी बहुत कड़क रहता था। इसलिए वहाँ का अनुशासन भी देखते ही बनता था। सभी जानवरों के लिए एक जैसे वस्त्र पहनना आवश्यक था। वहाँ छोटे बड़े जानवरों में भेदभाव भी नहीं होता था। (Jungle Stories | Stories)

इतना कुछ अच्छा होने पर भी वहाँ एक बात बड़ी खराब थी। प्रिंसीपल हाथीराम का पुत्र मोटू हाथी पढ़ाई लिखाई में जीरो रहता था। ऐसा नहीं था कि उसमें बुद्धि की कमी हो पर उसका मन सदा शरारतों में लगा रहता। इसलिए वह पढ़ाई नहीं करता। प्रिंसीपल का बेटा था इसलिए फेल कैसे होता। (Jungle Stories | Stories)

स्वयं हाथीराम ने कभी किसी अध्यापक को यह नहीं कहा कि वह मोटू का ध्यान रखे या...

स्वयं हाथीराम ने कभी किसी अध्यापक को यह नहीं कहा कि वह मोटू का ध्यान रखे या उसे पास करें। वे तो उल्टा कई बार सोचते भी थे कि बिना पढ़ाई किये मोटू हर वर्ष पास कैसे हो जाता है। एक दो बार उन्होंने अध्यापकों से कहा भी कि वे मोटू के साथ कोई विशेष व्यवहार न करें पर हर बार अध्यापक यही कहकर टाल देते, ऐसी कोई बात नहीं है। मोटू ठीक-ठाक ही चल रहा है। (Jungle Stories | Stories)

असल में सभी अध्यापक हाथीराम की चापलूसी में ऐसा करते थे। वे प्रायः परीक्षा में मोटू को प्रश्नों के उत्तर बता देते इसलिए हर परीक्षा में वह अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हो जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि मोटू ने पढ़ना बिल्कुल ही बन्द कर दिया। ऊपर से अपने साथियों पर रौब झाड़ता फिरता।

इस बार की परीक्षा में मोटू की किस्मत खराब थी जो परीक्षा के समय नये अध्यापक भालू दादा की ड्यूटी उसी के कमरे में लग गई। परीक्षा का पहला दिन तो निकल गया। बेचारा मोटू बड़ी कठिनाई से अपने प्रश्नों के आधे अधूरे उत्तर लिख पाया था। (Jungle Stories | Stories)

नये अध्यापक भालू दादा से परीक्षा भवन में किसी प्रकार की अनुचित सहायता की तो आशा थी नहीं, इसीलिए अगले विषयों के लिए मोटू ने परीक्षा के समय नकल करने की योजना बनाई और वह कई पुस्तकों के पन्ने फाड़कर अपने साथ ले गया। उसकी किस्मत और भी खराब थी जो वह पहली बार ही नकल करता पकड़ा गया। भालू दादा ने मोटू को परीक्षा भवन से जाने को कहकर उसकी उत्तर पुस्तिका ले ली और नोट लगा दिया। अब मोटू का इस बार परीक्षा में फेल होना निश्चित था।

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विद्यालय के अन्य अध्यापकों को इस बात का पता चला तो उन्होंने भालू दादा को समझाने का प्रयत्न किया। (Jungle Stories | Stories)

‘अरे आप तो नये हैं भालू दादा, इसलिए... अगर आप जानते कि मोटू तो हमारे प्रिंसीपल हाथीराम का बेटा है तो आप उसे इस तरह परीक्षा भवन से नहीं निकालते।’

‘मुझे सब मालूम है पर मेरा कर्तव्य भी तो है। यहाँ मेरी ड्यूटी नकल रोकने के लिए लगाई गई है। नकल करने वाले को सजा मिलनी ही चाहिये फिर भले ही वह प्रिंसीपल हाथीराम का बेटा हो या कोई अन्य छोटा जानवर। (Jungle Stories | Stories)

‘सोच लो दादा, कहीं आपको अपनी नौकरी से हाथ न धोना पड़ जाये।’

हिन्दी की अध्यापिका लोमड़ी जी ने कहा तो भालू दादा निराशा भरे स्वर में बोले, ‘असल बात तो यह है कि हम अध्यापक ही विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार नहीं डाल पाते। अपने लालच या किसी के डर से अपना कर्तव्य छोड़कर गलत कार्य करना कहाँ तक उचित है?’ (Jungle Stories | Stories)

अभी सुन्दर वन के अन्य अध्यापक भालू दादा से बातचीत ही कर रहे थे कि चपरासी बिलाव ने आकर भालूदादा को कहा, ‘आपको प्रिंसीपल साहब ने बुलाया है।’

‘तुम चलो मैं आता हूँ।’

इतना कहकर भालू दादा ने एक कागज पर कुछ लिखा और प्रिंसीपल के कमरे की ओर जाने लगे।

‘आज बेचारे की नौकरी चली जायेगी। (Jungle Stories | Stories)

‘बेकार ही आदर्शवादी बनता है।’

‘मोटू को नहीं पकड़ता तो कौनसा पहाड़ टूट जाता।’

भालू दादा के जाने के बाद वहाँ खड़े दूसरे अध्यापक आपस में बातें करने लगे। (Jungle Stories | Stories)

उधर भालू दादा जब प्रिंसीपल हाथीराम के कमरे में पहुँचे तो वे बड़े सरल भाव से बोले, ‘मुझे खुशी है भालू दादा कि हमारे विद्यालय में आप जैसा निडर और कर्तव्यपरायण अध्यापक भी है। मैं तो हर साल यही सोचकर आश्चर्य करता था कि आखिर यह मोटू पास कैसे हो जाता है। यदि नकल करते हुए पकड़ने पर भी आप मोटू को छोड़ देते तो मैं आपको आज ही नौकरी से निकाल देता।’

हाथी राम की बात सुनकर भालू दादा ने अपनी जेब में हाथ डाला और एक कागज निकाल कर दिखाते हुए बड़े संयम से बोलने लगे। (Jungle Stories | Stories)

‘सर, मैं भी अपना त्याग पत्र लिखकर ही लाया था। यदि आप मुझे कुछ भी कहते तो मैं अपना त्यागपत्र देकर आज ही नौकरी छोड़कर चला जाता।

भालू दादा की स्पष्टवादिता और निडरता देखकर हाथीराम और भी प्रभावित हुए।

सीख: इंसान को कभी भी किसी के भी दबाव में या किसी लालच की वजह से अपने कर्त्तव्यपथ से भटकना नहीं चाहिए। (Jungle Stories | Stories)

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