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भोली का उपहार एक बाल कहानी - एक सुबह प्रदीप उठा और टहलने के लिए निकल पड़ा। वह जैसे ही गेट के बाहर निकला दो छोटे छोटे कुत्ते के पिल्ले उसके पास आ गये।
दो दिन पहले ही गली की कुतियां (जिसे हमने भोली का नाम दिया हैं) के चार बच्चे पैदा हुए थे। बाहर बहुत अधिक ठंड भी कुछ बुजुर्गो को गली के कुत्ते पसंद नहीं थे। लेकिन पड़ोस की एक लड़की ने पेड़ के नीचे एक बड़ा सा गत्ते का डिब्बा रख दिया ताकि भोली और उसके नवजात बच्चे रात को उस डिब्बे में आश्रय ले सकें। उस लड़की ने तो उस डिब्बे के अन्दर एक कम्बल भी रख दिया था ताकि नये जन्मे बच्चों को उससे कुछ आराम मिल जाये।
आसपास के छोटे बच्चों के लिये तो जैसे ये पिल्ले आकर्षण का केन्द्र बन गये थे। वे अपने घरों से कभी बिस्कुट या कभी ब्रेड लेकर आते और उन पिल्लों को खिलाते। घर के बड़ों की चिन्ता थी कि कही भोली उनके बच्चों को काट न ले लेकिन भोली को दुश्मन और दोस्त में फर्क करना आता था।
जब पिल्ले प्रदीप के पास आये तो वह समझ गया कि उन्हें क्या चाहिए। वह अन्दर से एक बिस्कुट का पैकेट ले आया और पिल्लों को खिला दिया। पिल्लों को नाश्ते में बिस्कुट खाकर बड़ा आनन्द आया।
भोली दूर से यह सब देख रही थी। जब पिल्लों ने खाना खत्म कर लिया तो वह स्वंय आगे आई किन्तु उसके लिए कुछ नहीं बचा था। तभी प्रदीप की मम्मी बाहर आई और भोली को बिस्कुट खोजते देख कर उन्हें उस पर तरस आ गया। उन्होंने उसे खाने के लिए ब्रेड डाल दी। भोली और उसके पिल्ले खा-पी कर वहां से चल दिये और नजदीक के पार्क में मस्ती करने लगे।
प्रदीप के स्कूल जाने का समय हो गया था उसने अपनी साइकिल निकाली और चलने ही वाला था कि उसे अहसास हुआ कि वह कुछ भूल गया है। वह साइकिल गेट के बाहर खड़ी कर के घर के अन्दर से अपनी टेस्ट काॅपी लेने चल गया। तभी वहां से एक सड़क छाप लड़का निकला। उसने देखा कि एक नई साईकिल बिना ताले के खड़ी थी। बस फिर क्या था, उसे लालच आ गया। उसने इधर-उधर देखा और जब उसे लगा कि कोई नहीं देख रहा है वह साइकिल ले कर चल दिया। तभी प्रदीप बाहर आया और उसने देखा कि उसकी साईकिल ले कर कोई भाग रहा है। प्रदीप ने चोर का पीछा किया पर वह उसे पकड़ नहीं पाया। फिर उसने चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया।
चोर पकड़ा
भोली दूर से यह देख रही थी शुरू में उसे कुछ संदेहजनक नहीं लगा। किन्तु जब प्रदीप चिल्लाया तो उसे समझ आ गया कि कुछ गड़बड़ है। वह साईकिल चोर के पीछे बहुत तेजी से दौड़ी। चोर ने पूरी तेजी से साईकिल भगाई पर भोली ने उसकी पैंट पकड़ ली और खींच कर उसे नीचे गिरा दिया। चोर उठा और उस ने सड़क से एक पत्थर उठा कर भोली को दे मारा। तब तक प्रदीप भी वहां पहुंच गया था। उसने चोर को पकड़ लिया। शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठे हो गये और सबने मिल कर चोर को पकड़ लिया। प्रदीप ने अपनी साईकिल उठाई। अचानक उसे भोली का ध्यान आया तो उसने देखा कि उसके शरीर पर चोट लगी है। किन्तु भोली के चेहरे पर डर नहीं था उसने प्रदीप की तरफ देखा और धीमे से गुर्राआई।
प्रदीप को समझ नहीं आया कि भोली क्या कह रही थी ऐसा लग रहा था कि वह कह रही हो ‘‘तुम ने मुझ पर और मेरे बच्चों पर दया दिखाई थी। अब मैंने तुम्हारी भलाई का कर्ज चुका दिया।’’
प्रदीप अपनी साईकिल ले कर घर आ गया। उसके पिछले जन्मदिन पर पिताजी ने उसे यह साईकिल दिलाई थी पर आज वह साईकिल उसके लिये भोली का उपहार था ।
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