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बाल कहानी : लहू का रंग एक है- राहुल और राशिद एक ही कक्षा में साथ साथ पढ़ते थे। वे दोनों ही स्कूल की हाॅकी टीम के सदस्य भी थे। दोनों ही बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। पूरे जिले में वे दोनो शार्प शूर्टस के नाम से मशहूर थे। पेनल्टी कार्नर मिलते ही राहुल बाॅल को सरका देता और राशिद उसे सीधा गोल में परिवर्तित कर देता। दोनों की इस जोड़ी से कभी भी गलती नहीं होती थी। उन दोनों के कारण ही एन के स्कूल ने लगभग सभी मैच जीते थे। स्कूल को राहुल और राशिद की इस जोड़ी पर गर्व था।
राशिद अक्सर राहुल के घर जाया करता था वहां हमेशा उसका स्वागत होता था किन्तु राहुल की मां थोड़े पुराने ख्यालात की हिन्दू महिला थी। उन्होंने राशिद के नाश्ते खाने के बर्तन अलग कर रखे थे क्योंकि राशिद एक मुसलमान लड़का था। राहुल को अपनी मां का यह व्यवहार बिल्कुल पसन्द नहीं था एक आज्ञाकारी पुत्र होने के कारण वह अपनी मां से कभी कुछ नहीं कहता था।
ईद का दिन था। राशिद सेवइयां ले कर राहुल के घर आया। उसने ईद की मुबारक बाद के साथ राहुल की मां को सेवइयां दी पर राहुल की मां ने राशिद के हाथ से सेवइयां नहीं ली। उन्होंने राहुल से कहा कि वह राशिद से सेवइयां ले ले और एक तरफ रख दें। राहुल को बहुत बुरा लगा। राशिद के जाने के बाद राहुल ने अपनी मां से पूंछा, ‘‘मां तुमने राशिद के हाथ से त्यौहार का उपहार क्यांे नहीं लिया। वह तुम्हारी कितनी इज्जत करता है और स्कूल में भी मेरी बहुत मदद करता है। जब हम मैच खेलने जाते हैं, तब हम इकट्ठे खाते हैं। मेरे साथ तो कभी इस वजह से कुछ बुरा नहीं हुआ’’।
राहुल की मां बोली, ‘‘वो अलग है, उसका धर्म अलग है। वो एक मुसलमान है और मैं उसका छुआ हुआ कुछ भी नहीं खा सकती। यह मेरे धर्म के खिलाफ है।’’
यह सुनकर राहुल चुप हो गया। अगली सुबह स्कूल से एक बच्चा दौड़ता हुआ खबर लाया कि खेलते हुए राहुल को चोट लग गई है। उसका बहुत खून बह गया है और हैड मास्टर जी उसे अस्पताल ले कर गये है। राहुल के पिताजी शहर से बाहर गये हुए थे। राहुल की मां खबर सुनते ही फूट-फूट कर रोने लगी। वह जल्दी ही अस्पताल पहुंची। राशिद के अब्बा अस्पताल में राहुल की देखभाल में लगे हुए थे वे राहुल की मां को सांत्वना देने लगे।
जो डाॅक्टर राहुल का इलाज कर रहे थे उन्होंने बताया कि राहुल का बहुत खून बह गया है। अतः उसे खून चढ़ाना पड़ेगा।
हैड मास्टर साहब ने अपना खून देने की बात कहीं किन्तु उनका खून राहुल के खून से मेल नहीं खाया। तुरन्त ही राशिद के अब्बा ने भी रक्तदान की पेशकश की और किस्मत से उनके खून का ग्रुप राहुल के खून के ग्रुप से मेल खा गया।
राशिद के अब्बा पूरी रात अस्पताल में रहे। अगली सुबह जब राहुल के पिताजी आये तभी वे वहां से गये। अगले दिन राहुल की अस्पताल से छुट्टी हो गई राहुल और राशिद साथ साथ घर पहुंचे।
कुछ दिनों में राहुल ठीक हो गया। एक दिन उसकी मां उसके पास बैठी थी। उसने प्यार से अपनी मां से पूछा, ‘मां अब तो मेरी रगो में भी एक मुसलमान का खून दौड़ रहा है, क्या अब तुम मेरे हाथों से खाने की चीजें लोगी?’
उसकी मां की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया था। उन्हांेने राहुल को गले लगाया और बोली, ‘राहुल, मेरे बच्चे, हिन्दु और मुसलमान सभी का खून एक है मैंने स्वंय अपनी आंखों से देख लिया है’। सभी इन्सानो के खून का रंग लाल है।
कहानी की सीख:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि धर्म, जाति, और मान्यताओं के कारण लोगों को बांटना गलत है। इंसान का असली धर्म मानवता है, और सभी इंसान एक समान हैं। कठिन समय में, इंसानियत और सहानुभूति ही सबसे बड़ा सहारा बनती है।
राहुल की मां का अनुभव हमें यह संदेश देता है कि हर इंसान का खून एक जैसा होता है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हो। हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और भेदभाव को छोड़कर सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
"सच्ची इंसानियत जाति और धर्म से ऊपर होती है, और प्यार और भाईचारे से ही दुनिया बेहतर बनती है।"