Moral Story: अध्यापक की पहचान एक बार कक्षा में किसी अध्यापक ने बारह वर्षीय प्रफुल्ल से यूं ही पूछा, ‘पढ़ लिखकर तुम क्या बनना चाहोगे?’ ‘डाक्टर झट से उसने जवाब दिया। ‘डाक्टर ही क्यों?’ क्योंकि हमारे देश में अधिकतर लोग गरीब हैं। By Lotpot 16 Feb 2024 in Stories Moral Stories New Update अध्यापक की पहचान Moral Story अध्यापक की पहचान:- एक बार कक्षा में किसी अध्यापक ने बारह वर्षीय प्रफुल्ल से यूं ही पूछा, ‘पढ़ लिखकर तुम क्या बनना चाहोगे?’ ‘डाक्टर झट से उसने जवाब दिया। ‘डाक्टर ही क्यों?’ क्योंकि हमारे देश में अधिकतर लोग गरीब हैं। गरीब मरीज ठीक ढंग से अपना इलाज नहीं करा पाते हैं। मैं ऐसे मरीजों की सेवा करना चाहता हूँ'। प्रफुल्ल ने अपना इरादा जाहिर किया। खुश हो कर अध्यापक बोले, ‘ऐसा नेक इरादा है तो तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य जरूर प्राप्त होगा।’ प्रफुल्ल मेधावी छात्र था। मेहनत भी खूब करता। कक्षा में वह हमेशा सर्वोच्च अंक लाता रहा। आखिर में वह भी दिन निकट आया जब उसने पहली बार मेडिकल कम्पीटिशन परीक्षा दी। काफी उत्साह और लगन से उसने कम्पीटिशन परीक्षा की तैयारी की थी। मगर उसे सफलता नहीं मिली। एक नहीं, कई बार उसने ऐसी परीक्षाएं दीं उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। खर्च निर्वाह के लिए वह ऐसे लड़कों को कोच भी करता, जो मेडिकल कम्पीटिशन की तैयारी करना चाहते थे। उससे पढ़ने वाले लड़के उसकी प्रतिभा का लोहा तो मानते थे ही बल्कि उसके पढ़ाने के ढंग की सराहना भी खूब करते। एक बार ऐसा हुआ कि उसके तीन शिष्य पहली बार में ही मेडिकल कम्पीटिशन में... एक बार ऐसा हुआ कि उसके तीन शिष्य पहली बार में ही मेडिकल कम्पीटिशन में कम्पीट कर गए। मगर प्रफुल्ल उस बार भी स्वयं कम्पीट नहीं कर सका सबको अचरज हुआ। प्रफुल्ल के हम उम्र दोस्तों ने उससे मजाक किया, ‘कहो यार, यह कैसी अनहोनी हुई गुरू गुड़ और चेला चीनी कैसे हो गया?’ ‘इसमें बुरा क्या है?’ प्रफुल्ल ने शान्त भाव से प्रश्न किया। ‘बुरा है क्या इससे तुम्हारा अपमान नहीं हुआ? जिन्हें तुमने कोचिंग दी, उन्होंने एक ही बार में सफलता प्राप्त कर ली और तुम वर्षों से जिसकी तैयारी कर रहे हो, आज तक उसमें सफल नहीं हो सके'। ‘ऐसा तो है, फिर भी मुझे अपने शिष्य की सफलता पर बेहद खुशी है।’ ‘कैसी खुशी जरा मैं भी सुनूं!’ दोस्त चिढ़कर बोला। ‘कोई भी पिता अपने जीवन में कितना भी असफल क्यों न हुआ हो, मगर वह सदैव अपने पुत्र की सफलता और उन्नति ही चाहता है। ऐसे में यदि कोई पुत्र पिता के अधूरे सपने को साकार कर दिखाता है तो उसे अपार खुशी होती हेै। पुत्र की सफलता पर उसे गर्व होता है।’ प्रफुल्ल ने जवाब देते हुए कहा, ‘आज अपने शिष्य की सफलता पर मुझे भी वैसी ही खुशी हो रही है।’ ‘पिता पुत्र की बात कुछ और होती है!’ दोस्त ने प्रफुल्ल की बात काट दी। ‘बात कुछ और नहीं है बिल्कुल एक जैसी है'। प्रफुल्ल ने उसे यह कहा, ‘याद रखो, जिस तरह किसी पिता को अपने पुत्र की उन्नति से ईर्षा नहीं करनी चाहिए। जीवन में सफल शिष्य ही अपने अध्यापक की सबसे बड़ी पहचान होता है'। दोस्त को अब कुछ कहते नहीं बन पड़ा। वह निरूत्तर हो गया। lotpot E-Comics | bal kahani | Bal Kahaniyan | Hindi Bal Kahaniyan | short moral stories | short stories | Short Hindi Stories | hindi short Stories | Kids Stories | hindi stories | Moral Stories | Kids Moral Stories | Kids Hindi Moral Stories | Hindi Moral Stories | लोटपोट | लोटपोट इ-कॉमिक्स | हिंदी कहानियाँ | हिंदी बाल कहानी | बाल कहानी | छोटी कहानी | छोटी कहानियाँ | छोटी हिंदी कहानी | बच्चों की नैतिक कहानियाँ यह भी पढ़ें:- Moral Story: अपने डर की वजह से पीछे मत हटो Moral Story: रूपयों से खुशियाँ नहीं आती Moral Story: अंगूठी की कीमत Moral Story: जैसी संगति वैसी मति #lotpot E-Comics #छोटी कहानी #छोटी कहानियाँ #Short Hindi Stories #Kids Moral Stories #Hindi Moral Stories #Kids Hindi Moral Stories #हिंदी कहानियाँ #Bal Kahaniyan #short moral stories #बच्चों की नैतिक कहानियाँ #लोटपोट #बाल कहानी #हिंदी बाल कहानी #Hindi Bal Kahaniyan #Moral Stories #hindi stories #Kids Stories #hindi short Stories #short stories #Bal kahani #लोटपोट इ-कॉमिक्स #छोटी हिंदी कहानी #Lotpot You May Also like Read the Next Article