प्रेरणादायक कहानी : रावण का श्राप प्रेरणादायक कहानी : रावण का श्राप लंका नामक स्वर्ण मंडित नगरी की पश्चिमी समरभूमि पर घमासान युद्ध चल रहा था। एक ओर रामचन्द्र जी की वानर सेना डटी थी तो दूसरी ओर लंकाधिपति रावण की भयंकर राक्षसी सेना। दोनों सेनाओं के वीर योद्धा प्राणों से जूझ रहे थे। आज समर भूमि में एक अनोखा कोलाहल और विचित्र उत्तेजना व्याप्त थी। वानर सेना के समरनायक स्वयं प्राभु श्रीराम थे जबकि राक्षसी सेना का हौंसला लंकाधिपति महाबली रावण स्वयं युद्ध का संचालन कर रहा था। By Lotpot 19 Sep 2020 | Updated On 19 Sep 2020 12:40 IST in Stories Moral Stories New Update प्रेरणादायक कहानी : रावण का श्राप लंका नामक स्वर्ण मंडित नगरी की पश्चिमी समरभूमि पर घमासान युद्ध चल रहा था। एक ओर रामचन्द्र जी की वानर सेना डटी थी तो दूसरी ओर लंकाधिपति रावण की भयंकर राक्षसी सेना। दोनों सेनाओं के वीर योद्धा प्राणों से जूझ रहे थे। आज समर भूमि में एक अनोखा कोलाहल और विचित्र उत्तेजना व्याप्त थी। वानर सेना के समरनायक स्वयं प्राभु श्रीराम थे जबकि राक्षसी सेना का हौंसला लंकाधिपति महाबली रावण स्वयं युद्ध का संचालन कर रहा था। एक क्षण वह भी आया, जब राज ताज त्यागी तपस्वी रूपधारी श्रीराम और राक्षसराज रावण आमने सामने आ डटे। अहंकार के मद में मस्त रावण ज़ोरों से हँसा और बोला-‘ओ तपस्वी रूपधारी राम, क्यो बेकार में इन निरीह नासमझ वानरों को लंकाधिपति का कोप भोजन बनाते हो?.. क्या कोई चींटियों का झुंड प्रबल गजराज के उठते कदमों को रोक सका है? प्रभु श्रीराम मुस्कुराए.. बोले-‘रावण, वाचालता छोड़कर अपना धनुष धारण करों क्योंकि वीर पुरूष अपना प्रश्न धनुष की टंकार से किया करते हैं और उत्तर बाणों के प्रहार से दिया करते है’ कुपित होकर रावण बोला- ‘तो लो, संभालो मेरा प्रहार!’ लंकाधिपति ने क्रुद्ध होकर अपने धनुष पर एक सर्पिल बाण चढ़ाया और कान तक प्रत्यंचा खींचकर उसे श्रीराम पर छोड़ दिया। दिव्य बाण गगन मंडल पर वर्षकालीन बिजली सा गरजा और चमक पैदा करता हुआ श्रीराम पर झपटा। लेकिन ठीक उसी समय रामचन्द्र जी के धनुष से छूटा बाण रावण के बाण से जा टकराया। दिव्य शक्ति बाणों के टकराने से एक प्रलयकारी गर्जना उत्पन्न हुई और पृथ्वी कंपायमान हो उठी। वानर एवं राक्षस क्षणभर को युद्ध करना भूल उस अलौकिक दृश्य को देखने लगे। वह दो महाशक्तियों का महासंग्राम था। एक से बढ़कर एक दिव्य अस्त्र अपनी प्रचण्ड शक्ति का प्रदर्शन करने लगे। युद्ध का वेग बढ़ता ही जा रहा था ऐसा अद्भुत और रोमांचकारी युद्ध पृथ्वी पर पहले कभी नहीं हुआ था। बड़े बड़े वीर सूरमा अपनी सुधबुध भुलाकर उस महासंग्राम का अवलोकन कर रहे थे। स्वर्ग से देवतागण भी इस अभूतपूर्व युद्ध का दर्शन कर रोमांचित हो रहे थे। युद्ध अविराम अनिर्णीत चलता रहा। एक समय वह भी आया जब श्रीराम स्वंय को थका सा महसूस करने लगे। रावण अब भी अविजित युद्ध कर रहा था। सारे दिव्य अस्त्र शस्त्र उस पर बेअसर सिद्ध हो रहे थे। श्रीराम को ऐसा प्रतीत हुआ मानों रावण की ओट में कई महाशक्ति उनसे युद्ध कर रही है। लक्ष्मण विभीषण, हनुमान तथा सुग्रीव जैसे महावीर भी इस अनिर्णीत युद्ध से विचलित एवं अधीर होने लगे। ऐसे में सहसा एक आकाशवाणी उभरी-हे राम, इस अविजित रावण में स्वंय माँ दुर्गा समविष्ट होकर युद्ध कर रही है, अतएव आप रावण पर सिर्फ तभी विजय प्राप्त कर सकते है, जब माँ दुर्गे की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लें।’ आकाशवाणी सुनकर श्रीराम दुर्गा पूजन के लिए तैयार हुए। परन्तु समस्या यह आन पड़ी कि उक्त पूजन कार्य का संपादन करने हेतु श्रेष्ठ ब्राहृमण समर भूमि में आए कहाँ से? अतः विभीषण ने इस कार्य हेतु रावण का नाम सुझाया। रावण से बढ़कर श्रेष्ठ ब्राहृमण भला उस स्वर्ण नगरी में और कौन हो सकता था? मगर प्रश्न यह था कि क्या रावण इस कार्य हेतु तैयार हो जाएगा। किसी को भी इस बात का यकीन न था। परन्तु भगवान राम की पूर्ण आस्था थी कि उन्हे पूजन कार्य हेतु रावण का सहयोग अवश्य प्राप्त होगा। अतः उन्होंने लक्ष्मण को कमल के फूलों सहित रावण के पास भेजा। प्रस्थान करते समय लक्ष्मण ने गुप्त रूप से एक तेज कटार भी साथ ले ली, कि यदि रावण ने पूजन कार्य हेतु रामचन्द्र जी को अपना सहयोग देने से इंकार किया तो वे लक्ष्मण उसी समय कटार द्वारा उसका वध कर देंगे। लक्ष्मण जब कमल पुष्प लिए रावण के समक्ष पहुंचे, तो वह तुरन्त ही सारी बात समझ गया। और पढ़ें : प्रेरणादायक कहानी – गिलहरी से प्रेरणा फिर भी उसने लक्ष्मण जी के विचारों के विपरीत ‘दुर्गा पूजन’ करवाने के लिए अपनी सहमति दे दी। लक्ष्मण को परम आश्चर्य हुआ उनकी मनोदशा ताड़कर रावण ने कहा-लक्ष्मण, मैं इस वक्त समर भूमि का अविजित योद्धा लंकाधिपति रावण नहीं एक ब्र्राहृमण मात्र हूँ... और एक सच्चा श्रेष्ठ ब्राहृमण कभी भी ‘पूजा कार्य’ से इंकार नहीं कर सकता.. आप निश्चिंत भाव धारण कर जाइए, मैं नियत समय में ‘माँ दुर्गे’ का पूजन सम्पन्न करा दूँगा।’ विस्मित् लक्ष्मण वापस लौटने लगे, तभी सहसा रावण की दृष्टि उस कटार पर पड़ी, जिसे लक्ष्मण ने अपने कमर बंध में छुपा रखा था, रावण ने पूछा-‘लक्ष्मण, तुम तो एक ब्राहृमण के पास निवेदन लेकर आए थे, फिर साथ में यह हथियार क्यों?’ अब लक्ष्मण को सच्चाई बतलानी पड़ी। वे बोले, ‘हे रावण, आपने यदि ‘पूजा’ कराने से इंकार किया होता, तो मैं इस कटार द्वारा आपका वध कर बैठता!’ ‘लक्ष्मण तुम्हे तो यह कुटिल युद्ध नीति समर भूमि के लंकाधिपति रावण के प्रति अपनानी चाहिए थी.. मगर तुमने एक शस्त्रहीन निर्दोष ब्राहृमण की छलपूर्वक हत्या करनी चाही.. अतः मैं तुम्हें श्राप देता हूं. अंतिम समय तुम अपने प्रिय बड़े भाई राम से बिछड़ जाओगे!’ इस तरह श्राप से दुखी लक्ष्मण वापस लौट गए। उन्हें अपने किए पर पश्चाताप भी हो रहा था। उधर, युद्ध भूमि का धूर्त योद्धा रावण ब्राहृमण के रूप में अपने कर्तव्य पालन से विमुख न हुआ। उसने सही समय पर रामचन्द्र जी का ‘दुर्गा पूजन’ सम्पन्न करा दिया। पूजन से प्रसन्न हो माँ दुर्गे ने श्री रामचन्द्र को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया और अतः श्रीराम ने लंकाधिपति रावण पर विजय पाई। मगर, ब्राहृमण राज रावण का श्राप खाली न गया। अपनी छोटी सी भूल के कारण अंत में लक्ष्मण को अपने प्राणों से प्रिय अग्रज श्रीराम प्रभु से बिछड़कर उनके अमृतमय स्नेह एवं प्रेम से वंचित होना पड़ा। और पढ़ें : प्रेरणादायक कहानी : जमीन का चक्कर Facebook Page #Acchi Kahaniyan #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Hindi Story #Inspirational Story #Jungle Story #Kids Story #Lotpot ki Kahani #Mazedaar Kahani #Moral Story #Motivational Story #जंगल कहानियां #बच्चों की कहानी #बाल कहानी #रोचक कहानियां #लोटपोट #शिक्षाप्रद कहानियां #हिंदी कहानी #बच्चों की अच्छी अच्छी कहानियां #बच्चों की कहानियां कार्टून #बच्चों की कहानियाँ पिटारा #बच्चों की नई नई कहानियां #बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ #बच्चों के लिए कहानियां You May Also like Read the Next Article