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यह Best Motivational story रघुराज की यात्रा को दर्शाती है, जो शुरू में पढ़ाई में कमजोर था, लेकिन अभ्यास और लगन से संस्कृत का महान विद्वान बन गया। यह प्रेरक हिंदी कहानी मेहनत और धैर्य की शक्ति को रेखांकित करती है।
अभ्यास की ताकत: एक प्रेरक हिंदी कहानी- प्राचीन काल में, जब शिक्षा का मंदिर गुरुकुल हुआ करते थे, बच्चे अपने गुरुओं के साथ रहकर ज्ञान अर्जित करते थे। वे न केवल पढ़ाई करते थे, बल्कि आश्रम की देखभाल में भी हाथ बंटाते थे। ऐसा ही एक लड़का, रघुराज, अपने माता-पिता की इच्छा से गुरुकुल भेजा गया। वहां वह अपने साथियों के साथ मिल-जुलकर समय बिताने लगा, लेकिन पढ़ाई में उसकी रुचि कम थी।
रघुराज पढ़ने-लिखने में बहुत कमजोर था। गुरुजी जो भी सिखाते, उसे समझने में उसे कठिनाई होती। इसका नतीजा यह हुआ कि साथी उसका मजाक उड़ाते। एक दिन गुरुजी ने उसे अलग बुलाया और दुखी मन से कहा, "रघुराज, मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लगता। शायद तुम्हारे लिए यह जगह सही नहीं। बेहतर होगा कि तुम घर जाओ और अपने परिवार की मदद करो।" रघुराज चुपचाप सुनता रहा, फिर बोला, "गुरुजी, क्या मैं सचमुच इसके लायक नहीं हूँ?" गुरुजी ने सिर हिलाया, "बेटा, अगर लगन न हो, तो विद्या हासिल करना मुश्किल है।"
दुखी मन से रघुराज गुरुकुल से निकल पड़ा। दोपहर का समय था और रास्ते में उसे प्यास लगी। थोड़ी दूर पर कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थीं। वह उनके पास पहुंचा और पूछा, "माताजी, यह कुएं के पत्थरों पर रस्सी से बने निशान कैसे हुए?" एक वृद्धा ने मुस्कुराकर कहा, "बेटा, ये निशान हमने नहीं बनाए। यह कोमल रस्सी दिन-रात पानी खींचते वक्त पत्थर पर रगड़ खाकर खुद ब खुद बने हैं।" रघुराज चकित हो गया। उसने सोचा, "अगर एक नरम रस्सी पत्थर को काट सकती है, तो मेहनत से मैं विद्या क्यों नहीं सीख सकता?"
उत्साह से भरा रघुराज वापस गुरुकुल लौटा। उसने गुरुजी से कहा, "गुरुजी, मुझे एक मौका और दीजिए। मैं दिन-रात मेहनत करूंगा।" गुरुजी ने उसकी लगन देखकर मुस्कुराए और कहा, "ठीक है बेटा, अगर मन में इच्छा हो, तो कुछ भी संभव है।" रघुराज ने सुबह से शाम तक पढ़ाई शुरू की। वह पुराने ग्रंथों को बार-बार दोहराता और गुरुजी से सवाल पूछता। गुरुजी भी उसकी मेहनत देखकर उसे मार्गदर्शन देने लगे।
कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद रघुराज न केवल पढ़ाई में निपुण हुआ, बल्कि संस्कृत व्याकरण का एक महान विद्वान बन गया। उसने "सुजानसिद्धांत", "मध्यमसिद्धांत", और "गीतामंजरी" जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की, जो आज भी पढ़े जाते हैं। गांव के लोग कहते, "देखो, रघुराज ने अपनी मेहनत से नाम रोशन किया!"
रघुराज की सफलता की खबर पूरे इलाके में फैल गई। एक दिन एक छोटा सा गांव से एक लड़का, मोहन, गुरुकुल पहुंचा। उसने रघुराज से कहा, "भैया, मैं भी पढ़ना चाहता हूँ, लेकिन मेरा दिमाग धीमा है।" रघुराज ने उसका हाथ पकड़ा और बोला, "मोहन, मेरे साथ रहा कर। मैंने भी वही राह देखी थी, लेकिन अभ्यास ने मुझे बदला।" दोनों ने मिलकर दिन-रात मेहनत की। मोहन भी धीरे-धीरे निपुण होता गया।
रघुराज ने गुरुकुल में एक नई परंपरा शुरू की, जहां हर छात्र को अपनी कमजोरी को मजबूती में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता। वह बच्चों से कहता, "बच्चो, हर दिन थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करो, जैसे रस्सी पत्थर को काटती है।" इस तरह गुरुकुल में एक नई ऊर्जा आई, और रघुराज का नाम विद्या का प्रतीक बन गया।
सीख:
इस हिंदी कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अभ्यास ही सफलता की कुंजी है। चाहे पढ़ाई हो, खेल हो, या कोई कला, बिना मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता। धैर्य और लगन के साथ अभ्यास करें, क्योंकि समय और मेहनत हर सपने को साकार कर सकते हैं। यह बच्चों की हिंदी कहानी हर उम्र के लिए एक प्रेरणा है।
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