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बच्चा होना, कितना अच्छा
बचपन (childhood) जीवन का सबसे प्यारा और मासूम दौर होता है। बच्चे अपनी छोटी-छोटी हरकतों, खेल और मासूम शरारतों से घर का माहौल खुशियों (happiness) से भर देते हैं। इसी मासूमियत और मस्ती को खूबसूरती से दर्शाती है यह कविता “बच्चा होना, कितना अच्छा”, जिसे अनंतप्रसाद रामभरोसे ने लिखा है।
कविता में दिखाया गया है कि कैसे बच्चे कभी खेलते-खेलते गाना गाने लगते हैं, ता-ता थैया करते हैं और अचानक रूठकर मुँह लटका लेते हैं। उनकी नकली रोने की आदत, गाल फुलाना और आँखें मिचकाना हमें हँसी और आनंद से भर देता है। कविता यह भी बताती है कि बच्चे बंदर जैसी हरकत करके सबको डराते और फिर हँसते-हँसते भाग जाते हैं।
इस कविता में बच्चों की दोस्ती और खेलों की झलक भी मिलती है—जैसे कल्लू, नीनू, चुन्नू-दीनू के साथ गप्पे मारना, इंजन बनकर छुक-छुक करना या घोड़े की तरह टिक-टिक दौड़ना। यह कविता बच्चों की कल्पनाशक्ति (imagination), ऊर्जा (energy) और मासूमियत (innocence) का सुंदर चित्रण है।
कविता पढ़कर न सिर्फ़ बच्चे, बल्कि बड़े भी अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं। सच में, बच्चों के संग बच्चा होना कितना अच्छा लगता है!
बच्चा होना, कितना अच्छा
बच्चों के संग बच्चा होना
कितना अच्छा लगता है!
कभी खेल में हँसना गाना,
ता-ता थैया नाच दिखाना,
और कभी नाराज सभी से
हो जाना, फिर मुँह लटकाना।
झूठ-मूठ ऊँ-ऊँ कर रोना
कितना अच्छा लगता है!
गाल फुला, आँखें मिचकाना,
करना काम कभी बचकाना,
बंदर जैसी हरकत करके
कभी डराना, फिर भग जाना।
खाना झूठ-मूठ ले दौना
कितना अच्छा लगता है!
कल्लू, नीनू, चुन्नू-दीनू
के संग मिलकर गप्प लड़ाना,
इंजन बनकर छुक-छुक करना
या टिक-टिक घोड़ा बन जाना।
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