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नगाड़े जैसा पेट
नगाड़े जैसा पेट
लक्ष्मी चन्द शहर के सेठ,
बढ़ा नगाड़े जैसा पेट।
खाना, पीना बस आराम,
और नहीं कुछ उनका काम।
छकते रबड़ी, मेवा, चाट,
सदा तोड़ते रहते खाट।
उखड़ा दर्द पेट में जोर,
“मुझे बचाओ" करते शोर।
आये शीघ्र डॉक्टर कार,
ठोंके इंजेक्शन दो-चार।
कहा इन्हें जो बहुत पसंद,
वह सब खाना कर दो बन्द।
देना सिर्फ मूंग की दाल,
वरना, गड़ बड़ होगा हाल।
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