Bal Kavita: पण्डित भोजन भट्ट

By Lotpot
New Update
saint eating food

पण्डित भोजन भट्ट

भोजन करने जम गए, पण्डित भोजन भट्ट।
छब्बीस पूढ़ी शीघ्र ही, कर डालीं सरपट्ट।।


कर डालीं सरपट्ट, कचौड़ी अनगिन खाई।
सब्जी, हलुआ, खीर, सभी की करी सफाई।। 


कहत 'सुमन' कविराय, खा गए चीज़ें सारी ।
फिर से करनी पड़ी, रसोई की तैयारी।।

इतना सब कुछ खा गए तब भी ली न डकार।
जाने उसकी तोंद को, थी कितनी दरकार।।


थी कितनी दरकार, हुई हमको हैरानी।
हम बोले महाराज, अरे अब पीलो पानी।।


कहत 'सुमन' कविराय, कही उसने यह बानी।
"भरता आधा पेट, तभी पीता हूँ पानी'।।

जब भोजन करके उठे, पण्डित जी श्रीमान।
हमने उनको तुरंत ही, पेश कर दिया पान।।


पेश कर दिया पान, उन्होंने उसे न खाया।
कारण पूछा तभी, उन्होंने यह बतलाया।।


अगर पान की जगह, पेट में होती भाई।
तब खाता क्यों नहीं, अरे कुछ और मिठाई।।

lotpot-latest-issue | entertaining-kids-poem | manoranjak-bal-kavita | लोटपोट | baal-kvitaa

यह भी पड़ें:-

Bal Kavita:धरा गोल है

Bal Kavita: चलो चाँद पर जाएँ

Bal Kavita: दिवाली आयी

बाल कविता: माँ की ममता