"बच्चों की रेल" कविता बच्चों की दुनिया में मासूमियत और खेल को दर्शाती है। यह रेल बिना किसी इंजन या स्टेशन के लगातार चलती रहती है, जिसमें बच्चों का हंसना-खेलना और मस्ती का सफर अनंत होता है। उनके हर कदम में नई उमंग और खुशी का स्पंदन छिपा है।
बच्चों की रेल बड़ी निराली,
दौड़ रही है बिन सवारी।
स्टेशन बिना रुके ना जाती,
मुस्कानों से ये भरी-पूरी आती।
छुपते-छुपाते इधर से उधर,
बगिया में दौड़ें सुंदर-सुघड़।
हवा की जैसे ये बहती धारा,
बिना इंजन की रेल का नज़ारा।
हंसी-ठिठोली, शोर मचाती,
बच्चों की टोली खिलखिलाती।
हर कदम पर नई उमंग,
खेल में छुपी जीवन की तरंग।
छोटे-छोटे कदमों का झुंड,
हर पथ पर छेड़े अपनी धुन।
न रुकने वाली, न थकने वाली,
ये रेल कभी न होने वाली खाली।
पेड़, पौधे, पत्ते सभी,
देखें बच्चों की रेल नई।
ये रेल न हो कभी बासी,
मस्ती की है ये पूरी प्यासी।