Poem: सौ बलाएं टालो

By Lotpot
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Husband wife Fighting

सौ बलाएं टालो

मेरे घर के पास एक रहते थे बाबू।

अपनी पत्नी को भी जो कर न सके काबू॥

 

दिन भर कलम घिसा करते थे वे दफ्तर में।

किन्तु शान्ति कब उनको मिलती अपने घर में॥

 

कहा सूनी हो जाने पर झगड़ा बढ़ जाता।

पत्नी बकती, बाबू का पारा चढ़ जाता॥

 

मार-काट हर रोज हुआ करती थी ऐसी।

भीड़ इकठ्ठा हो जाती बाजारों जैसी ॥

 

हुआ एक दिन ऐसा बाबू कहीं गये थे।

 पत्नी के मन में कूछ आये भाव नये थे॥

 

सोच रही थी, कहीं डूब कर मर जाऊँगी।

 या मैके जा कर पिण्ड छूड़ा पाऊंगी॥

 

खड़े द्वार पर उसने एक साधु को देखा।

 सुखी रहो माँ, भिक्षा दो तुम' सुन कर लेखा॥

 

बोली, बाबा कह दो-कल ही मैं मर जाऊँ।

रोज-रोज के झंझट से छुटकारा पाऊँ॥

 

इसके बाद सुनाई उसने राम-कहानी।

 बाबा जी बोले, 'मिट जायेगी हैरानी॥

 

ये लो चावल, जब कोई गुस्सा हो जाये।

 खा लेना चुपचाप और फिर रहो दबाये॥

 

दूर मुसीबत होगी, अच्छा अब जाता हूँ।

दस दिन बाद मिलूँगा तुमसे कह जाता हूँ॥

 

सीख मान कर बाबा की वह चावल खाती।

पति बकता था बहुत किन्तु वह ध्यान न लाती॥

 

उसे देख कर शान्त न बाबू कुछ कहते।

 धीरे-धीरे वे दोनों थे सुख से रहते॥

 

दस दिन के उपरान्त वही बाबा फिर आया।

 पत्नी ने दी भीख और उसको बतलाया॥

 

बहुत सुखी हूँ बाबा जी जन्तर मन्तर से।

वे बोले, 'कुछ नहीं हुआ छूमंतर से॥

 

क्रोध कभी मत करो सिखाया था चावल से ।

सौ बलाएँ टालो सदैव चुप - के बल से॥

 

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