बाल कविता: गर्मी आई

By Lotpot
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गर्मी आई

ठंडी हवा लगे सुखदाई,
गर्मी आई।


गर्मी में है एक सहारा, 
ठंडा पानी कितना प्यारा,


शीतल छाया मन को भाई,
गर्मी आई।


आकुल तन से बहे पसीना,
शुरू हो गया खाना पीना,


लस्सी कुल्फी और मलाई,
गर्मी आई।


देखा खुली मिठाई रखी,
झट आ गई हज़ारों मक्खी,


ऊब गया कल्लू हलवाई,
गर्मी आई।


कानों के समीप आ मच्छर
छेड़ रहा है सरगम के स्वर


बजा बजाकर शहनाई
गर्मी आई।

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