Fun Story: वफादारी का पुरस्कार
लाला पीतांबरलाल धरमपुरा रियासत के दीवान थे। पचास गांव की इस छोटी-सी रियासत के राजा शिवपालसिंह एक कर्तव्यनिष्ठ, दयालु और प्रजा के हित में काम करने वाले धर्म प्रिय राजा थे।
लाला पीतांबरलाल धरमपुरा रियासत के दीवान थे। पचास गांव की इस छोटी-सी रियासत के राजा शिवपालसिंह एक कर्तव्यनिष्ठ, दयालु और प्रजा के हित में काम करने वाले धर्म प्रिय राजा थे।
बहुत समय पहले की बात है, बहुत दूर एक बहुत सुंदर लड़की रहती थी जो बहुत नाजुक और प्यारी थी। उसके माता पिता ने उसे बढ़े प्यार से बड़ा किया था। जब वह नदी के किनारे बैठती थी, तो सभी चिढ़ियां और पक्षी उसके आसपास घूमते रहते थे।
क्लास-टीचर गोविन्द सहाय ने कक्षा में कदम रखा। रजिस्टर खोलने से पहले उन्होंने घोषणा की- ‘‘तुम्हें याद ही होगा कि प्रधानमंत्री और विरोधी दल के नेता में जूते चल जाने के कारण प्रिंसीपल ने स्कूल की संसद भंग कर दी थी।
एक शहर में दो चोर रहते थे। छोटी-मोटी चोरी करके अपना गुज़ारा चलाते थे। वे दोनों बचपन के दोस्त थे? साथ साथ रहते थे खेलते कूदते थे। जब बड़े हुए तो उन दोनों का ध्यान चोरी की तरफ गया।
राजा चंद्रपाल सिंह राज दरबार में चिंतित बैठे थे। राज्य में चोरी-डकैती का नामोनिशान तक नहीं था। लेकिन इधर कुछ दिनों से उन्हें राज्य में बराबर चोरी होने की खबरें मिल रही थीं।
वह सोलह वर्षीय किशोर उन दिनों दाँतों के असह्य दर्द से बुरी तरह छटपटा रहा था। उच्च माध्यमिक विद्यालय स्तर के स्कूल में पढ़ने वाला यह मेघावी छात्र बेन, को दाँतों की पीडा से राहत पाने की गरज से पूछा तुम्हें किस नाम से पुकारते हैं, भैया?
एक थी गरीब भोली-भाली लड़की कनिका। सीधी, सरल लड़की अपनी मां के साथ रहती। अक्सर दोनों मां-बेटी को भूखा ही सोना पड़ता, क्योंकि जहां वह रहती थीं, वहां उन्हें कोई काम भी नहीं मिल पाता था।