Travel: खालसा पंथ की इमारत विरासत-ए-खालसा
घूमना फिरना किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन घूमने-फिरने की बात आए तो मन में सिर्फ पहाड़, झरने ही आते हैं या फिर पुरानी इमारतें, जिन्हें देखकर वहां की कहानियाँ याद आती हैं।
घूमना फिरना किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन घूमने-फिरने की बात आए तो मन में सिर्फ पहाड़, झरने ही आते हैं या फिर पुरानी इमारतें, जिन्हें देखकर वहां की कहानियाँ याद आती हैं।
सोते हुए सपने देखने से, सपने पूरे नहीं होते, हमें जागते हुए सपने देखना चाहिए। ऐसे ही एक बच्चा था जो जागकर सपना देखता था। नाम था उसका, कोनोसुके मात्सुशिता, जिसका जन्म 1894 में जापान में हुआ था।
सोते हुए सपने देखने से, सपने पूरे नहीं होते, हमें जागते हुए सपने देखना चाहिए। ऐसे ही एक बच्चा था जो जागकर सपना देखता था। नाम था उसका, कोनोसुके मात्सुशिता, जिसका जन्म 1894 में जापान में हुआ था।
सरिता के पिता का देहान्त कब हुआ था, उसे नहीं पता। उसे तो अपने पिता की छवि तक याद नहीं। वह तो बस मां को जानती और पहचानती थी। मां ही उसे बड़ी कठिनाई से पढ़ा रही थी।
चमन भालू बहुत ही ईमानदार और मेहनती मोची था, सभी लोग उसी के पास अपने जूते चप्पलों की मरम्मत करवाते थे। चमन का बेटा था, सोनू। वह एक नंबर का आलसी था। वह ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नही था।
ब्लू व्हेल का नाम उनके भूरे रंग के कारण रखा गया है, जो पानी में हल्का नीला दिखाई देता है। ठंडे पानी के डायटम (diatoms) उनकी त्वचा से चिपक जाते हैं और कभी-कभी उनके पेट को पीला रंग दे देते हैं।