Moral Story: पुरस्कार की सार्थकता सरिता के पिता का देहान्त कब हुआ था, उसे नहीं पता। उसे तो अपने पिता की छवि तक याद नहीं। वह तो बस मां को जानती और पहचानती थी। मां ही उसे बड़ी कठिनाई से पढ़ा रही थी। By Lotpot 21 Mar 2024 in Stories Moral Stories New Update पुरस्कार की सार्थकता Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Moral Story पुरस्कार की सार्थकता:- सरिता के पिता का देहान्त कब हुआ था, उसे नहीं पता। उसे तो अपने पिता की छवि तक याद नहीं। वह तो बस मां को जानती और पहचानती थी। मां ही उसे बड़ी कठिनाई से पढ़ा रही थी। आस-पड़ोस के घरों के कपड़े सीना और छोटे-मोटे काम ही, बस उन मां-बेटी के जीवन का सहारा था। (Moral Stories | Stories) घर में हर प्रकार की परेशानी होने पर भी सरिता पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। अभी पिछले वर्ष ही आठवीं कक्षा में प्रथम आने पर उसे कई पुस्तकें पुरस्कार में मिली थीं। वह जानती थी कि उसकी पढ़ाई पर ही उसका भविष्य निर्भर है। इसलिए वह अगली कक्षाओं में और भी अधिक अंक प्राप्त करना चाहती थी। पढ़ाई के अतिरिक्त, जब कभी भी समय मिलता, सरिता घर के काम में मां का हाथ बंटाती। (Moral Stories | Stories) “रहने दे बेटी तू अपनी पढ़ाई कर। इस तरह घर के कामों में समय क्यों नष्ट करती है?” काम करते देख वो सरिता को प्रायः टोक देती थी। अरे माँ, घर का काम तो मैं मनोरंजन के लिए करती हूं लड़का होती तो बाहर खेल आती। थोड़ा-बहुत काम करने से... अरे माँ, घर का काम तो मैं मनोरंजन के लिए करती हूं लड़का होती तो बाहर खेल आती। थोड़ा-बहुत काम करने से न मेरी पढ़ाई की हानि होती है और न ही मैं दुबली होती हूं।'' सरिता हमेशा हंसकर इसी तरह मां की बात टाल देती। एक दिन सरिता स्कूल से लौट रही थी तो उसने एक पेड़ के नीचे एक स्त्री को अपनी बेटी के साथ बैठे देखा। सरिता ने पहले कभी उन्हें गांव में नहीं देखा था। (Moral Stories | Stories) पास जाने पर उसे पता चला कि उन दोनों ने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है। वे पास के गांव में ही रहती थीं। वहां के जमींदार ने अपना कर्ज वसूल करने के लिए उन्हें घर से बेघर कर दिया था। “मैं सुबह से यहां पड़ी हूं बेटी। कई लोगों से प्रार्थना की, परन्तु किसी को हम पर दया नहीं आई। मैं तो भीख भी नहीं चाहती कोई काम ही मिल जाता तो मेरी बच्ची भूख से तो नहीं मरती।" उस महिला के शब्द सुनकर सरिता का मन पसीज गया, पर वह करती भी कया? उसके पास ही कौन सा धन जमा था जो वह उनकी कुछ सहायता कर देती। बेचारी सरिता मुंह लटकाये वहां से बाजार की ओर चल पड़ी। कुछ देर बाद सरिता फिर लौटकर वहीं पेड़ के पास आ गई। “लो माई, यह थोड़ा-बहुत है, इसे अपनी बेटी को खिला दो और कुछ तुम भी खा लो। मेरे पास इससे अधिक कुछ नहीं है।" (Moral Stories | Stories) “मै तुम्हें भीख नहीं दे रही हूं माई पहले इसे खाकर थोड़ा आराम कर लो। फिर मेरे साथ चलना। मैं अपनी मां से कहकर तुम्हें भी कुछ काम दिला दूंगी। इतना सुनना था कि वह महिला पत्तल पर टूट पड़ी। पहले उसने अपनी बेटी को खिलाया और फिर खुद खाया। “भगवान तुम्हारा भला करे बेटी। आज तुम हमारी सहायता नहीं करती तो हम भूख से मर जाते।” (Moral Stories | Stories) “अब चलो मेरे साथ। सरिता के कहने पर वे दोनों मां-बेटी उसके साथ-साथ चलने लगीं। जाते-जाते वह महिला सोच रही थी कि इस गांव में इतने अमीर लोग रहते हैं, फिर भी उन्हें कोई दो रोटी नहीं दे सका। घर जाकर सरिता ने माँ को उनसे मिलवाया और सारी बात बता दी। “सरिता, तेरे पास इन्हें खिलाने के लिए पैसे कहां से आये?” “वो...मां, पिछले साल मुझे पुरस्कार में जो पुस्तकें मिली थीं उन्हीं को बेचकर मैं इनके लिए भौजन खरीद लाई थी।'' सरिता को झिझकते हुए देखकर मां प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगी। यह तो तुमने बहुत अच्छा किया बेटी, आज तो पुरस्कार और भी अधिक सार्थक हो गया। पुस्तकें सच ही बहुत मूल्यवान होती हैं। इनसे ज्ञान तो बढ़ता ही है, आज तो इन्हीं के कारण दो आत्माओं की तृप्ति भी हो गई है। ''मां की बात सुनकर सभी खुश हो गये। उस दिन के बाद वह महिला भी अपनी बेटी के साथ वहीं, पास में रहने लगी। सरिता की मां ने उसे काम भी दिला दिया। (Moral Stories | Stories) lotpot | lotpot E-Comics | Hindi Bal Kahaniyan | Hindi Bal Kahani | bal kahani | Bal Kahaniyan | Kids Hindi Moral Stories | kids hindi short stories | short moral stories | short stories | Short Hindi Stories | hindi short Stories | kids hindi stories | Kids Moral Stories | Kids Stories | hindi stories | Moral Stories | Hindi Moral Stories | लोटपोट | लोटपोट ई-कॉमिक्स | बाल कहानियां | हिंदी बाल कहानियाँ | हिंदी बाल कहानी | बाल कहानी | हिंदी कहानियाँ | छोटी कहानी | छोटी कहानियाँ | छोटी हिंदी कहानी | बच्चों की नैतिक कहानियाँ यह भी पढ़ें:- Moral Story: एक गोल Moral Story: विद्वेष की भावना Moral Story: समझ समझ का फेर Moral Story: डाकू अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध #lotpot E-Comics #छोटी कहानी #छोटी कहानियाँ #Short Hindi Stories #Kids Moral Stories #Hindi Moral Stories #Kids Hindi Moral Stories #हिंदी कहानियाँ #Bal Kahaniyan #Hindi Bal Kahani #short moral stories #बाल कहानियां #kids hindi short stories #बच्चों की नैतिक कहानियाँ #लोटपोट #बाल कहानी #हिंदी बाल कहानी #Hindi Bal Kahaniyan #Moral Stories #hindi stories #Kids Stories #हिंदी बाल कहानियाँ #लोटपोट ई-कॉमिक्स #hindi short Stories #short stories #kids hindi stories #Bal kahani #छोटी हिंदी कहानी #Lotpot You May Also like Read the Next Article