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बुद्धिमान व्यापारी की समझदारी
बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) बुद्धिमान व्यापारी की समझदारी- बहुत दिन हुए, उत्तर भारत के एक गाँव में एक गरीब मजदूर रहता था। वह गाँव पहाड़ों और घने जंगल के किनारे बसा हुआ था, इसलिए अक्सर जंगलों में रहने वाले डाकू रात के समय इस गाँव पर धावा बोल दिया करते थे। डाकुओं को गाँव वालों से जो कुछ मिलता, उसे वह छीन कर ले जाते थे।
एक बार एक व्यापारी इस गाँव में आया। चूँकि रात हो चुकी थी। इसलिए उसने रात वहीं गुजारने का निश्चय कर एक दरवाजे पर दस्तक दी। यह मकान एक मजदूर का था मजदूर ने दरवाजा खोला। व्यापारी ने मजदूर से कहा। मैं शहर जाने के लिए आया था लेकिन यहीं पर रात हो गई क्या तुम अपने घर में मुझे रात गुजारने को जगह दे सकते हो?
मजदूर बहुत भला आदमी था, उसने घर आये मेहमान का स्वागत करते हुए कहा। क्यों नहीं? आईये यह तो आपका ही घर है। आप यहाँ रात गुजार सकते हो।
मजदूर ने अपने घर का रूखा सूखा खाना बड़े आदर और आत्मीयता से व्यापारी को परोसा। फिर उसके सोने का प्रबंध कर दिया। आधी रात के करीब कुछ शोर सुनकर व्यापारी की आँख खुल गई। उसने देखा, घर का मालिक मजदूर अपने हाथों में एक पोटली लिये इधर उधर बड़ी बेचैनी से चक्कर काट रहा है।
व्यापारी यह माजरा नहीं समझ पाया और उसने उत्सुकता से मजदूर से पूछा। क्यों भाई, कया बात हैं? इतने परेशान क्यों हो?
साहब, गाँव में डाकुओं ने धावा बोल दिया है। मैंने बहुत मेहनत से पाँच सौ रूपये अपनी बेटी की शादी के लिए बचाये थे। मुझे डर है कि यह रूपये डाकू ले जाएंगे। आप ही बताईये मुझे क्या करना चाहिए? मजदूर ने व्यापारी से कहा।
तब व्यापारी ने दी सलाह
व्यापारी ने फौरन सलाह दी। अरे भाई, इसमें इतना सोच-विचार करने की कया आवश्यकता हे? जल्दी से सामने गड्ढा खोदकर अपनी धन की पोटली उसमें छुपा दो। मजदूर ने व्यापारी का सुझाव पसंद किया और झटपट एक गड्ढा खोदकर उसमें धन की पोटली छुपा दी।
थोड़ी ही देर पाँच सात डाकुओं का एक दल मजदूर के मकान में घुस आया। उनके सरदार ने कड॒कती हुई आवाज में पूछा। अपना सारा धन चुपचाप हमारे हवाले कर दो। मजदूर गिड॒गिडाकर अपनी गरीबी बताने लगा तो सरदार ने अपने आदमियों को हुक्म दिया कि वे लोग मजदूर के घर की तलाशी ले। इससे पहले कि डाकू घर की तलाशी लेना शुरू करते। वह व्यापारी बोला। आप लोग तलाशी न ले। मैं बताता हूँ कि इसने अपना धन कहाँ छुपाया है? फिर व्यापारी ने सामने इशारा करते हुए कहा। आप लोग वहाँ खोदें।
आनन फानन में डाकुओं ने वह जगह खोद डाली। कुछ खोदन के बाद ही उनके हाथ धन की पोटली लग गई। उन्होंने धन की पोटली ले ली और मजदूर को झूठा बेईमान... गालियाँ देते हूए चले गए। इधर यह सब देखकर मजदूर ने सोचा कि हो न हो। यह व्यापारी भी डाकुओं का आदमी है। तभी इसने खुद मुझे धन गड्डे में छुपाने की सलाह दी और फिर इसने ही डाकुओं को धन का पता बता दिया।
मजदूर ने जब यह देखा कि व्यापारी डाकुओं के साथ नहीं गया तो उसे आश्चर्य हुआ।
डाकुओं के जाने के बाद मजदूर ने दरवाजा बंद कर दिया। और व्यापारी के पास पहुँचकर गुस्से में बड़ी देर तक उसे बुरा भला कहता रहा। व्यापारी सब कुछ सुनकर मुस्कराता रहा। जब मजदूर का जी भर गया तो वह सहज स्वर में व्यापारी ने कहना शुरू किया।
व्यापारी की बात तब समझ में आई
भाई अब मेरी बात सुनो। दरअसल मैंने डाकुओं को तुम्हारे धन का पता बताकर तुम्हारे साथ अपने को भी भारी नुकसान होने से बचाया है। जानते हो, अगर डाका तुम्हारे घर की तलाशी लेते तो उनके हाथ मेरी वह पोटली लग जाती। जिसमें ढाई हजार रूपये नकद और सोने के कुछ जेवर है। मैंने डाकुओं को तुम्हारी पोटली का पता बताकर उनका ध्यान उस ओर कर दिया और उन्होंने घर की तलाशी नहीं ली।
यह कह कर व्यापारी ने अपनी पोटली में से छ: सौ एक रूपये निकाल कर मजदूर को देते हुए कहा। यह लो तुम्हारे पाँच सौ रूपये तथा एक सौ एक रूपये तुम्हारी बिटिया को उसकी शादी पर मेरी ओर से।
मजदूर व्यापारी की सूझ-बूझ और बुद्धिमत्ता देखकर दंग रह गया।
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