बाल कहानी : भाग्य की खोज

जुग जुग मुर्गे के अभी नये नये पंख निकले थे। ऊपर छोटी सी कलगी भी आ गई थी और सुंदर पूँछ भी। वह कीडे ढूँढ ढूँढ कर एक दिन माँ और पिताजी की नजर बचाकर वह अपना भाग्य खोजने चल दिया। खाता और पानी में अपनी शक्ल देखता। वाह! कितना सुंदर हूँ मैं। उसका सिर गर्व से उठ जाताए और सोचता मैं बेकार इस गंदी जगह में पड़ा रहा हूँ। कहीं चलकर अपना भाग्य आजमाऊँ। एक चलते चलते उसे एक पहाड़ मिला। पहाड़ बोला नन्हे जुग जुग भाई किधर जा रहे हो? जुग जुग बोला, "अपना भाग्य खोजने जा रहा हूँ। तुम यहाँ बरसों से एक जगह पडे हो चलो तुम भी मेरे साथए चलकर दोनों अपना भाग्य खोजेंगे।"

By Lotpot
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बाल कहानी : (Lotpot Hindi Kids Stories) भाग्य की खोज- जुग जुग मुर्गे के अभी नये नये पंख निकले थे। ऊपर छोटी सी कलगी भी आ गई थी और सुंदर पूँछ भी। वह कीडे ढूँढ ढूँढ कर एक दिन माँ और पिताजी की नजर बचाकर वह अपना भाग्य खोजने चल दिया।

खाता और पानी में अपनी शक्ल देखता। वाह! कितना सुंदर हूँ मैं। उसका सिर गर्व से उठ जाताए और सोचता मैं बेकार इस गंदी जगह में पड़ा रहा हूँ। कहीं चलकर अपना भाग्य आजमाऊँ। एक चलते चलते उसे एक पहाड़ मिला। पहाड़ बोला नन्हे जुग जुग भाई किधर जा रहे हो? जुग जुग बोला, "अपना भाग्य खोजने जा रहा हूँ। तुम यहाँ बरसों से एक जगह पडे हो चलो तुम भी मेरे साथए चलकर दोनों अपना भाग्य खोजेंगे।"

तब पहाड़ बोला, मैं यहाँ क्‍या बेकार खड़ा हूँ। जो भाग्य खोजने जाऊँ। मैं सर्दियों में अपनी दरारों में ढेर सी बर्फ जमा करता हूँ। और गर्मियों में रूप में नीचे बहा देता हूँ। अपने अंदर ढेर सा मनुष्य के काम आने वाले पत्थर, खडिया सीमेंट, लोहा आदि जमा करता हूँ। मैं तो अपने अंदर अनमोल खजाने संभाले रखता हूँ। फिर मैं क्‍यों भाग्य खोजने जाऊँ।

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रास्ते में मिला जामुन का वृक्ष

यह सुनकर जुग जुग आगे चल दिया। चलते चलते उसे घना जामुन का वृक्ष मिला। वह भी बोला, "जुग जुग तुम इधर कहाँ चले। आओ कुछ देर बैठो।"

मैं अपना भाग्य खोजने जा रहा हूँ तुम्हें चलना हो तो तुम भी चलो। भाग्य वाग्य खोजकर मैं क्या करूँगा जामुन बोला। मुझे इतनी फुर्सत कहाँ है? अब देखो न मैं हर आने जाने वाले को ठंडी छाँव में बिठाता हूँ। दूषित वायु को खींचकर वातावरण को स्वच्छ बनाता हूँ। साथ ही साँस लेने के लिये ऑक्सीजन छोड़ता हूँ। खाने के लिये फल, जलाने के लिये ईंधंन और घर बसाने के लिए लकडी देता हूँ। सबसे बड़ी बात यह हैं कि वर्षा में बहुत सहायक हूँ। जमीन तो मुझ से बहुत खुश रहती है। क्योंकि उसकी मिट्टी को बहने से रोकता हूँ। इसलिये वो मुझे जड़ों द्वारा पानी पिलाती रहती है। अब तुम्हीं बोलो इतने सब कामों को छोड॒कर मैं भाग्य ढूँढने कैसे जा पाऊँगा? जुग जुग सीटी बजाता आगे चल दिया।

फिर मिला आकाश में बदल 

उसे आगे बादल का टुकड़ा मिला। वह बोला, "ओ बादल भाई किधर जा रहे हो क्या भाग्य ढूँढने?

भाग्य ढूँढने! बादल गुर्राया, "अरे भाग्य किसके लिये ढूँढने जाऊँ? मैं तो समुद्र से पानी अपने शरीर में भरकर ला रहा हूँ। आगे खेत सूखे पडे हैं उनमें पानी बरसाऊँगा। फिर संमुद्र जाऊँगा और फिर पानी लाऊँगा। भाग्य वाग्य के चक्कर में मैं नहीं पड़ता। यह क्या कम है कि मैं इस योग्य हूँ कि किसी के काम आ सकूँ।

फिर मिली नदी

जुग जुग को आगे नदी मिली। उसने सोचा नदी जरूर भाग्य ढूँढने चलेगी। यह तो केवल बहती है और इसमें गंदे नाले मिलते रहते हें।

इसे जरूर अपने भाग्य को बदलने की इच्छा होगी। वह नदी से बोलाए श्नदी बहन भाग्य ढूँढने चल रही हो। "ना भाई, नदी हरहरा कर कूदती आगे बढ़ती बोली, "मैं तो जगह जगह जाती हूँ कहीं भाग्य देखा नहीं। भाग्य तो अपने हाथ में होता है। मैं गाँव गाँव शहर शहर जानवरों को मनुष्यों को पीने का पानी देती हूँ। खाने के लिये अनाज, साग, सब्जी सब मेरे पानी से ही पैदा करते हैं मेरे सूखने से उनके प्राण सूखने लगते हैं। मैं उन्हें अपना जीवन देती हूँ। तभी तो मुझे इतना प्यार करते हैं। अब इतने प्यारए मान सम्मान को छोड़कर भाग्य ढूँढने नहीं जाऊँगी। अब जुग जुग उदास हो गया। सब इतने बडे बडे हैं तभी तो इतने बडे बडे काम कर पाते हैं। मैं इतना छोटा हूँ ऐसे काम तो कर ही नहीं सकता। इसलिये भाग्य तो मुझे ढूँढना ही है यह सोच वह आगे चला।

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फिर मिली गिलहरी 

तभी उसे गिलहरी मिली, वह अखरोट लुढकाती हुई ले जा रही थी। जुग जुग को देखकर बोली, "अरे जुग जुग आज इधर। कहाँ रास्ता भूल गये? अकेले ही हो?

हाँ बहन, जुग जुग बोला। मैं भाग्य खोजने जा रहा हूँ तुम भी तो मेरे जेसी हो। चलों दोनों भाग्य खोजने चलते हैं।

ना भाई, गिलहरी माथे पर बल चढ़ाती बोली, मुझे सार्दियों के लिये खाना जमा करना है नहीं तो बच्चे भूखे रहेंगे।

अरे बच्चों का क्या वो अपने आप खाना खोज लेंगे। क्या बस खाना और सोना यह भी कोई भाग्य है चलो कुछ आराम की चीज भाग्य से लेंगे।

अरे जुग जुग भाई हम में जितनी करने की ताकत है वह भी न करना चाहें यह तो अच्छी बात नहीं अपना काम करना और किसी को परेशान न करना शांति पूर्ण जीवन जी कर भी तो हम सहायता कर सकते है। मैं अपने आप से संतुष्ट हूँ। मैं भाग्य खोजने नहीं जाऊँगी।

जुग जुग की आँखें खुल गई। वह चला तो गिलहरी बोली, कहाँ चले अब जुग जुग। बहन घर वापस जा रहा हूँ। माँ और पिता जी मेरा इंतजार कर रहे होंगे। फिर कीड़े खाकर भी तो सबकी बीमारियों से बचाने में सहायता करूँगा और सुबह सुबह बाँग देकर सबको उठाऊँगा। ठीक है न?

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