बाल कहानी : चमगादड़ को सबक

बात तबकी है जब दुनिया बनी ही थी। एक बार पशुओं और पक्षियों में किसी बात पर आपस में मन मुटाव हो गया। बात बढ़ते बढ़ते युद्ध की नौबत तक आ गई। दोनों ही पक्षों के असरदार सरदारों ने अपने आपको श्रेष्ठ ठहराया। जब कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ तो दोनों ही युद्ध के लिए हथियार लेकर आमने सामने डट गए।

By Lotpot
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बाल कहानी : चमगादड़ को सबक(Lotpot Kids Story):

बाल कहानी : चमगादड़ को सबक(Lotpot Kids Story): बात तबकी है जब दुनिया बनी ही थी। एक बार पशुओं और पक्षियों में किसी बात पर आपस में मन मुटाव हो गया। बात बढ़ते बढ़ते युद्ध की नौबत तक आ गई। दोनों ही पक्षों के असरदार सरदारों ने अपने आपको श्रेष्ठ ठहराया। जब कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ तो दोनों ही युद्ध के लिए हथियार लेकर आमने सामने डट गए।

चमगादड़ इन दोनों ही दलों को देखकर भी अनदेखा कर रहा था। उसकी बीवी ने उसे कहा-‘तुम भी किसी दल के साथ अपना संबंध जोड़ लो। फिर अपना जौहर दिखलाओ लड़ाई में।

मैं पशु पक्षी दोनों ही वर्ग के जीवों की तरह मूर्ख नहीं हूँ।

तो क्या होशियार हो, मैं खुद क्यों लडूँ। इनको लड़ते भिड़ते लहु लूहान होते देखता रहूँगा। फिर जो भी पक्ष जीतता नजर आएगा। मैं उसी दल में शामिल होकर ‘सत्य मेव जयते’ का नारा जोर शोर से लगाने लग जाऊँगा। वह बोला।

मतलब तुम पूरे, मौका परस्त जीव कहलाओगे।

चमगादड़ की बीवी ने व्यंग्य से उसे घूरते हुए कहा।

तुम क्या समझो! यह नीति की गंभीर बातें हैं। कहकर चमगादड़ फुर्र से अमरूद खाने के लिए उड़ गया।

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तीन चार दिन घमासान युद्ध हुआ। एक दिन उसने महसूस किया कि पशुओं का मुकाबला पक्षी नहीं कर पा रहे है। तो वह  पशुओं के दल में सम्मिलित होने के लिए उनके सरदार के पास गया और बोला। लो जी सरदार जी मैं आ गया हूँ अब मोर्चे पर। देखें पक्षी क्या खाकर मुकाबला कर पाते हैं हम पशुओं का।

अरे चमगादड़! तू इधर क्यों आया हैं। कहीं जासूसी करने तो नहीं आया है तू। तू तो पक्षी है। इसलिए हमारा शत्रु है। हम धर्म युद्ध लड़ रहे हैं इसलिए तुझको हम मारेंगे नहीं जा भाग जा अपने खेमें में।

पशुओं के सरादार ने अपनी मूँछों पर ताव देते हुए कहा।

अरे वाह, सरदार वाह! अपने पराये का भेद भी नहीं समझते हो आप तो। कौन कहता है कि मैं पक्षी हूँ। चमगादड़ ने जरा गंभीर होकर कहा।

तभी बैल बोला। पक्षी नहीं हो तो क्या पशु हो? कैसे पशु जरा हमें भी समझाओ

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अरे दादा बैल! तुम सब गुस्से में हो इसलिए अपने पराये को पहचान नहीं पा रहे हो। मैं पक्षी नहीं, पशु हूँ, पशुओ की तरह मेरे दाँत हैं, देख लो। इसी तरह से मैं पशुओं की तरह ही अपने बच्चों को अपने शरीर से दूध पिलाता हूँ। मेरा मतलब मादा चमगादड़ से है। वह पशुओं की तरह ही बच्चों को दूध पिलाती है। पक्षी के न तो दाँत होते हैं और न वे अपने बच्चों को हम पशुओं की तरह ही दूध पिलाते हैं। इसलिए मैं पशु हँू। मुझे भी युद्ध में अपना जौहर दिखाकर पशु जाति की सेवा का अवसर देना चाहिए।

सरदार ने तब थोड़ी सी पूछताछ और की तथा चमगादड़ को पशु मानकर उसको अपने दल में प्रवेश दिला दिया। चमगादड़ अब पशुओं के दल में उछल कूद करता लंबी चैड़ी डींगे हाँकता घूमता फिरता रहता।

इधर युद्ध अपनी उसी रफ्तार से चल रहा था। एक दिन अचानक पासा पलट गया। पशु पक्षियों की छापामार स्टाइल की वजह से हारने लगे। चमगादड़ ने चुपचाप पशु दल को छोड़कर पक्षी दल में जाकर अपनी डींगे हाँकना शुरू कर दी।

उसे देखते ही पक्षियों का सरदार गरूड़ आँखें लाल पीली करके पूछ उठा। अरे, हमारे दुश्मन चमगादड़। तू इधर क्या करने आया? तू तो पशुओं की तरफ से लड़ रहा था न।

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अरे सरदार। उन लोगों ने मेरा अपहरण कर लिया था। वह मुझे पशु सिद्ध करने पर तुले हुए थे। पर मैं मौका देखकर अपनी सही जगह आ गया। चमगादड़ ने अपने पंख फड़फड़ा कर कहा।

पर तुम तो हमारे दुश्मन हो। पशु हो इसलिए जान बचाना

चाहते हो तो तुरन्त उधर चले जाओ। गरूड़ बोला।

अरे हुजूर। सत्य मेव जयते का पुजारी हूँ मैं। यह तो साफ ही है कि मैं पक्षी हूँ। देखिए पक्षियों की तरह ही मेरे भी पंख हैं और उनकी तरह ही मैं उन्मुक्त आकाश में उड़ता हूँ। फिर भी आप मुझे पक्षी नहीं मानें तो मर्जी आपकी। वैसे यह मेरे साथ अन्याय ही होगा।

चमगादड़ ने खुशामदाना अन्दाज से कहा।

अच्छा तो चलो तुम पक्षी ही सही। कहकर गरूड़ ने उसे

अपने दल में मिला लिया।

काफी दिन तक युद्ध चलता रहा तो एक दिन ब्रहृा जी ने उन दोनों ही पक्षों के सरदारों को कहा। अरे लड़ते क्यों हो? युद्ध बंद कर दो। पक्षी आसमान के बादशह और पशु धरती के राजा। लड़ाई समाप्त। सब अपने अपने इलाके में मस्ती से रहने लग जाओ।

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तभी बैल ने चमगादड़ को पक्षियों के दल में पँख फड़फड़ाते हुए देखा तो बोला। पर पितामह, हम पशु पक्षी हैं। हम में गद्दार भी है। अवसर वादी भी है। ऐसे लोगों को कहाँ का राज्य आप दे रहे हैं।

अरे ऐसे लोगों को किस बात का राज्य। उन्हें तो माकूल सजा दी जानी चाहिए। मौका परस्त लोगों को कहाँ का राज्य आप दे रहे हैं।

दोनों ही पक्षों ने तब अपने अपने सदस्यों को देखा तो बस चमगादड़ ही ऐसा जीव नजर आया। तब ब्रहृा जी ने उसे मृत्युदण्ड देने को कहा।

तभी गरूड़ बोला। नहीं भगवान। उसको मृत्युदण्ड दे देंगे तो सारी कहानी आज ही खत्म हो जाएगी। आप तो इसको पेड़ पर उल्टा लटका दें और दिन में इसे नजर नहीं आए ऐसी व्यव्स्था कर दें। इससे पशु पक्षी इसे देखते रहेंगे और उन्हें मौका परस्ती, कौम से गद्दारी करने की सजा नजर आ जाएगी। वे कभी ऐसा नहीं करेंगे।

ब्रहृा जी ने तभी कहा। तथास्तु। ऐसा ही होगा। यह शानदार सजा हैं। तब से लेकर आज तक चमगादड़ जाति यह सजा भुगत रही है। कभी कभी उनकी बीवी पूछती है। कैसी रही होशियारी चमगादड़ जी।

वह तब जोर जोर से चीं चीं चकर चकर का शोर करके उसकी बात को अनसुना कर देता है। आज भी दिन में नजर नहीं आने से वह उल्टा लटककर अपनी होशियारी की सजा भुगत रहा है।

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