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बाल कहानी : फूलों की चोरी (Lotpot Kids Story): सौरभ और सीमा बगीचे में बैठे हुए, रंग बिरंगे फूलों को बड़े प्यार से देख रहे थे। उन्हें इस बात की बहुत खुशी थी कि उनकी मेहनत से आज सभी फूल मुस्कुरा रहे थे। दोनों भाई बहन को फूलों से बहुत प्यार था। उनके इस मासूम जीवन के दो ही तो काम थे। लगन से पढ़ना और तरह तरह के फूलों की क्यारी लगाना, प्रति दिन सुबह शाम फूलो मे पानी डालना, निराई करना आदि उनका मुख्य काम था। पढ़ाई से फुरसत पाते ही वे अपने बगीचे की देखभाल में जुट जाते। अपने इन होनहार बच्चों पर उनके मम्मी पापा भी गर्व करते थे।
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सीमा के पड़ोस में रहने वाला सौरभ का दोस्त विजय उससे मन ही मन बहुत चिढ़ता था। क्योंकि विजय की कामचोरी और लापरवाही को देखते हुए उसकी माँ कहती रहती थी। सौरभ को देखो कितना काम करता है। फिर भी कक्षा में प्रथम आता है। यह सुनकर विजय कट कर रह जाता था। सौरभ तो विजय को अपना सच्चा दोस्त मानता था, और प्रत्येक सुख दुख में उसे अपना साथी बनाता था।
किन्तु विजय हीन भावना से भरा हुआ था वह बिना मेहनत के सौरभ की बराबरी कर लेना चाहता था। सौरभ के बगीचे में लगे हुए फूलों को देखकर विजय ने भी फूल लगाना चाहा। उसने सौरभ से बीज आदि के बारे में पूछा, सौरभ ने खुशी खुशी विजय को मण्डी ले जाकर अच्छे फूलों के बीज दिलवाये और दूसरे दिन तीनों ने मिलकर उन बीजों को क्यारी में लगाया। उस दिन विजय रात भर सौरभ के बगीचे का ही स्वप्न देखता रहा। उसने देखा कि रंग बिरंगे फूलों के बीच वह खेल रहा हैं और मम्मी-पापा दोनों उसे शाबाशी दे रहे हैं।
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मगर दो-तीन दिन बीत जाने पर भी जब बीजों से अंकुर नहीं निकले तो विजय की सहनशक्ति जवाब दे गई। उसे सौरभ पर शक होने लगा कि कहीं उसने खराब बीज तो नहीं डाल दिये और उसने क्यारी के सभी बीज खोज खोजकर निकालने शुरू कर दिये। विजय की माँ इस बात से बहुत खुशी थी कि आजकल विजय शैतानी छोड़कर काम में लगा रहता है।
विजय ने एक एक करके सारे बीज क्यारी से निकाल कर फेंक दिये और सौरभ से बदला लेने का उपाय सोचने लगा। इधर सौरभ और सीमा प्रति-दिन विजय के पास आते और पौधों के निकलने का इंतजार करते। विजय मन ही मन उन्हें कोसता रहता। बदले की आग उसके दिल में इतनी भर गई कि उसने रात ही रात सौरभ को मजा चखाने की योजना बना ली।
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दूसरे दिन सुबह सीमा और सौरभ ज्यों ही बगीचे में आये उनकी नजरें ठहर गई। वे आश्चर्य से टूटी हुई डालियों और मसले हुये फूलों की यह दुर्दशा देखकर वे बहुत दुखी हुए इस घटना ने सौरभ और सीमा की रातों की नींद छीन ली थी। वे हर समय अपने फूलों के सोच में ही डूबे रहते, खाने पीने तथा पढ़ने में भी मन नहीं लग रहा था।
दोनों मिलकर चोर का पता लगाने की योजना बना रहे थे। अचानक सीमा को एक उपाय समझ में आया। उन्होंने बाजार जाकर तारकोल का एक डिब्बा खरीदा और चुपचाप लाकर लाॅन में रख दिया। रात में मम्मी पापा के सो जाने पर दोनों भाई बहन लाॅन में आ गये। तारकोल का डिब्बा गरम करके गेट के पास फैला दिया।
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और वहीं कोने में छिपकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद ही उन्होंने देखा एक काला साया गेट की तरफ बढ़ रहा है। सीमा घबराने लगी। किन्तु सौरभ ने उसे साहस दिलाया। साये ने ज्यों ही गेट पर हाथ लगाया सौरभ ने टाॅर्च की तेज रोशनी उस पर डाली। साया तुरंत भागने की कोशिश करने लगा किन्तु तारकोल में उसके पैर बुरी तरह चिपक चुके थे।
अँधेरे में उसका चेहरा देखते ही सीमा चिल्ला उठी विजय तुम.....। घबराहट और चोरी के भय से विजय रोने लगा उसने सौरभ के पैर पकड़ लिये और अपने इज्जत की भीख माँगने लगा। मित्र मैं अपने किये पर बहुत शर्मिन्दा हूँ ये बात अंकल आंटी को मत बताना नहीं तो मैं किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगा।
शंका का भूत अब मेरे सर से उतर चुका है। सौरभ और सीमा ने उसको क्षमा कर दिया और सुबह विजय के साथ बाजार जाकर उसे फिर से बीज दिलाये और उन्हें मिल कर क्यारी में लगाया कुछ ही दिनों में उन बीजों में नन्हें नन्हें अंकुर निकल आये। सौरभ ने विजय से कहा वो बीज शंका के थे इसलिये अंकुर नहीं निकला तो अच्छा हुआ, किन्तु ये बीज तो हम लोगों की दोस्ती के हैं जिसमें प्यार का ये अंकुर निकला है।
इसकी देखभाल ध्यान से करनी है।
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