बाल कहानी : दूजे का दुख बात बहुत पुराने समय की है। कोयल के गीतों की तूती बोलने लगी थी। चारों ओर सुरीले कंठ की प्रशंसा होने लगी थी। वह अपनी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समाती थी। उसके अहंकार की कोई सीमा ही न थी। एक बार किसान के खेत में खड़ी फसल को परिंदों ने काफी नुकसान पहुँचाया था। किसान अपनी मेहनत की कमाई को चैपट देखकर आगबबूला हो उठा था। By Lotpot 31 Mar 2020 | Updated On 31 Mar 2020 08:50 IST in Stories Moral Stories New Update बाल कहानी : दूजे का दुख (Lotpot Kids Story): बात बहुत पुराने समय की है। कोयल के गीतों की तूती बोलने लगी थी। चारों ओर सुरीले कंठ की प्रशंसा होने लगी थी। वह अपनी प्रशंसा सुनकर फूली नहीं समाती थी। उसके अहंकार की कोई सीमा ही न थी। एक बार किसान के खेत में खड़ी फसल को परिंदों ने काफी नुकसान पहुँचाया था। किसान अपनी मेहनत की कमाई को चैपट देखकर आगबबूला हो उठा था। वह उचित अनुचित का विवेक किये बगैर हर पेड़ पौधें को क्रोधवश मशाल से जलाता फिर रहा था। घुन के साथ जौ भी पिसते जा रहे थे। मगर उसे किसी की परवाह न थी। दूर जंगल में छायादार वृक्ष पर कौआ अपने घोंसले में बैठा हुआ था। पास ही एक डाल पर कोयल भी सुस्ता रही थी। शाम का अंधेरा घिर आया था कोयल ने कुहू-कुहू की तान छेड़ दी। कौआ भयभीत होता हुआ कोयल से बोला। कृपया इस समय गाना बंद कर दो। अभी बात पूरी कह भी न पाया था। कि कोयल ने इठला कर बोला। चुप रहो काँव काँव करने वाले कौए। मुझे गाने से मना करने वाले। और पढ़ें : बाल कहानी : कौन किसका सेवक? और पढ़ें: बाल कहानी बोलने वाली मूर्ति का रहस्य तुम भला कौन होते हो? मैं तो सुरीले कंठों की गायिका हूँ। कौआ विनयपूर्वक पुनः बोल उठा। इसीलिए तो कह रहा हूँ कि इस समय गाना बंद कर दो। तुम्हें शायद नहीं पता कि क्रोधी किसान आज परिंदो से बदला लेने के लिए हर पेड़-पौधे जलाता फिर रहा है। वह तुम्हारी आवाज़ सुनकर इधर आ पहुँचेगा और इस पेड़ को जलाकर खाक कर डालेगा। तुम तो फुर्र से उड़ जाओगी। मगर मेरे बच्चे अभी छोटे ही हैं। वे ठीक से उड़ना अभी नहीं जानते हैं। बेचारे किसान की क्रोधग्नि में जल जायेगें। कोयल पर कौए के गिड़-गिड़ाने का कोई प्रभाव न पड़ा वह बोली। मुझे पता है तू मुझसे ईष्या करता है। मेरे कंठ की तारीफ तू नहीं सुन सकता। तेरे बच्चे उड़ नहीं सकते तो मैं क्या कर सकती हूँ। मैं जरूर गाऊँगी। इतना कहकर वह और भी जोर से गाने लगी। कोयल की आवाज सुनकर किसान उधर आ पहुँचा। उसने सूखी घास फंूस का ढेर इकट्ठा किया और पेड़ को आग लगा दी। कोयल नौ दो ग्यारह हो गई। कौआ अपने बच्चों को संग ले उड़ने की लाख कोशिशें करता रहा। मगर उसे सफलता न मिल सकी। लपटें तेज होने लगीं और वह असहाय होकर अकेला उड़ जाने को विवश हो गया। और पढ़ें : बाल कहानी : छोटी बुद्धि का कमाल दूसरे दिन सुबह कोयल उस पेड़ के पास आई तो कौए के बच्चों को जलकर मरा हुआ देख उसका मन रो उठा। उसका गर्व दूर हो चुका था। कौआ आठ आँसू रो रहा था। कोयल साहस करते हुए कौए से बोली। मेरे अहंकार के कारण ही तुम्हारे बच्चे जलकर मर गये हैं, इसका मुझे बड़ा पछतावा है। मेरा सारा गर्व चूर चूर हो चुका है। मैं तुम्हें वचन देती हूँ कि तुम्हारे दुख का अनुभव करने के लिए मैं अपने बच्चों का बचपन में मुख नहीं देखंूगी। अपने अंडे तुम्हारे घोंसले में दिया करूंगी इतना कह कर वह वहाँ से उड़ चली। कुछ दिनों बाद उसने अपने अंडे कौए के घोंसले में रखे। अपने नवजात बच्चों का मुख देखने को वह तरस गई। वह जार जार रो रही थी और सोच रही थी कि वह स्वयं को इसी प्रकार सजा देते हुए कौए के दुख का अनुभव करती रहेगी। आज भी कोयल कौए के घोंसले में अंडे देती है। कैसी विडंबना है। कि माँ के होते हुए भी कोयल के बच्चे जन्म के समय स्वयं को दूसरे के घोंसले में पाते हैं। Like our Facebook Page : Lotpot #Acchi Kahaniyan #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Hindi Story #Inspirational Story #Jungle Story #Kids Story #Lotpot ki Kahani #Mazedaar Kahani #Moral Story #Motivational Story #जंगल कहानियां #बच्चों की कहानी #बाल कहानी #रोचक कहानियां #लोटपोट #शिक्षाप्रद कहानियां #हिंदी कहानी #बच्चों की अच्छी अच्छी कहानियां #बच्चों की कहानियां कार्टून #बच्चों की कहानियाँ पिटारा #बच्चों की नई नई कहानियां #बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ #बच्चों के लिए कहानियां You May Also like Read the Next Article