बाल कहानी : मित्र की पहचान

मित्र की पहचान: बरसात का मौसम था आकाश में काले बादल छाये थे। ठंडी ठंडी पुरवाई चल रही थी। पीलू बया का घोंसला तैयार होने में देर थी। उसने अपने मित्र चुग्गा चिड़ा को आवाज दी।

By Ghanshyam
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बाल कहानी (Hindi Kids Stories) : मित्र की पहचान:

बाल कहानी (Hindi Kids Stories) : मित्र की पहचान: बरसात का मौसम था आकाश में काले बादल छाये थे। ठंडी ठंडी पुरवाई चल रही थी। पीलू बया का घोंसला तैयार होने में देर थी। उसने अपने मित्र चुग्गा चिड़ा को आवाज दी।

चुग्गा डाल पर बैठा सुहावने मौसम का आनंद ले रहा था। उसने पीलू की बात अनसुनी कर दी। तब पीलू ने चुग्गा से अनुरोध किया। चुग्गा दोस्त बरसात होने वाली है। मेरा घोंसला अधूरा है, जरा मदद कर दो।

मनमौजी चुग्गा ‘आता हूँ’ कहकर फुर्र से उड़ गया। पीलू भूखा प्यासा घोंसला बनाने में जुटा रहा। दिन ढलते पीलू का घोंसला तैयार हो गया। वह बहुत प्रसन्न था। उसे मालूम था कि जब बरसात शुरू होगी तो हफ्तों पानी बरसेगा। सब इधर उधर छाया की तलाश में भटकेंगे। तब वह घौंसले के झूले पर बैठा पानी की फुहार में खूब मजे से झूलेगा।

दूसरे दिन पीलू जंगल से ढेर सारे दाने चुन लाया। दानों को उसने घोंसले नुमा बनी कोठरी में सजाकर रख दिए।

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अब वह बेफ्रिक होकर बरसात की प्रतीक्षा करने लगा।

अचानक उमड़ धुमड़ कर बादल बरसे और लगातार चार दिन तक बरसते रहे। चुग्गा चिड़ा जिस पुराने पेड़ के कोठरी में रहता था वह पानी और तेज हवा के झोकों से चरमरा कर धाराशाई हो गया।

चुग्गा बेघर हो गया। उसने जाकर कालू कौवे के यहां शरण ली। कालू स्ंवय पानी में भीग रहा था। घोंसले के नाम पर उसने टहनियों के बीच पांच छः लकड़ी के टुकड़े बिछा रखे थे। चुग्गा ने जैसे तैसे रात काटी।

सुबह चुग्गा ठंड से थर थर कांप रहा था उसे जुकाम के साथ बुखार भी हो गया था। वह तुरंत सोनू गरूड़ के दवाखाने में गया। दवा दारू से उसे कुछ आराम मिला। उसकी इच्छा थी कि वह कुछ दिन सोनू के दवाखाने में रहे। लेकिन सोनू ने दूसरे दिन उसकी छुटटी कर दी। उसके यहां काफी मरीज आ रहे थे। जगह कम थी।

निराश चुग्गा भोजन और घर की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा। वह जिसके पास जाता वही मजबूरी प्रकट कर उसे लौटा देता। बरसात रूकने का नाम नहीं ले रही थी। उसे डर था, यदि वह दुबारा बीमार हो गया तो मुश्किल हो जायेगी।

चिंता में डूबा चुग्गा पेड़ की टहनी की ओट में बैठा था। भूख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे।

चारों ओर पानी ही पानी देखकर चुग्गा सोच रहा था। ऐसे में अब कहां मिलेगा उसे भोजन? वह अपने किए पर पछता रहा था। यदि समय पर उसने घर और भोजन की व्यवस्था कर ली होती तो उसे परेशान न होना पड़ता। उसे याद आया, अगर उसने अपने मित्र पीलू बया की मदद की होती तो आज बुरे समय में वह भी उसके काम आ सकता था। अब वह किस मुंह से जाये उसके पास।

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तभी बादल गरजे। अचानक घोंसले के झूले पर बैठे पीलू बया की नजर चुग्गा पर पड़ गई। गोल मटोल चुग्गा की मरियल हालत देख कर पीलू हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि टहनी पर बैठा पक्षी उसका मित्र चिड़ा ही है। अपने मित्र की दुर्दशा देख पीलू से रहा न गया।

वह बरसाती पानी में उड़कर चुग्गा के पास गया और बोला। तुम कहां थे दोस्त।

चुग्गा शर्म से गर्दन नीची किए बोला। मैं बीमार था।

पीलू ने चुग्गे के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। तुम बरसात में भीगकर फिर बीमार हो जाओगे। चलो मेरे घर।

पीलू के प्यार भरे शब्द सुनकर आश्चर्य में पड़ गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। कि पीलू उसे पहले जैसा ही प्यार करता है। वह आंखे फाड़़ फाड़ कर पीलू को देख रहा था।

तब पीलू उसका आशय समझता हुआ बोला। हाँ जो हुआ उसे भूल जाओ। समय पड़ने पर मित्र ही मित्र के काम आता हैं।

और फिर चुग्गा चिड़ा उड़ चला अपने दोस्त पीलू के साथ उसके घोंसले की तरफ। उसने मन ही मन फैसला कर लिया, अब वह कभी किसी की मदद करने से इंकार नहीं करेगा।

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