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बाल कहानी : कौन किसका सेवक? (Lotpot Kids Story) मालवा का राजा राय मालवी बहुत ही घमंडी व्यक्ति था। इतने बड़े प्रदेश का निरंकुश शासक होने का उसे घमंड था। वह अपनी प्रजा को अपना सेवक समझता था। एक बार उसने भरे दरबार में बड़े घमंड के साथ कहा कि इस राज्य में जितने भी व्यक्ति हैं सभी मेरे सेवक हैं। वे मेरी सेवा करने को बाध्य हैं।
राय मालवी की यह बात दरबार के एक वृद्ध मंत्री बुद्धि सेन को नहीं भायी। बुद्धिसेन राय मालवी के पिता के समय का कुशल मंत्री था। वह समय समय पर राय मालवी को नेक सलाह भी देता था। राय मालवी की उस पर विशेष कृपा भी थी। उसने तुरंत कहा, ‘महाराज, यह आपका भ्रम है। सच्चाई तो यह है कि हम सब एक दूसरे के सेवक हैं और हमें आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए।
यूँ तो बुद्धिसेन राय मालवी का चहेता मंत्री था किन्तु उसकी यह बात उसके घमंडी मन को बिल्कुल पसंद नहीं आई। उसने बुद्धिसेन को फटकारते हुए कहा, बुद्धिसेन क्या तुम यह कहना चाहते हो कि मैं तुम्हारा सेवक हूँ। यदि तुम्हारा यह विचार है तो अपना विचार बदल डालो।
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लेकिन महाराज मेरा विचार सत्य है। आप किसी से भी पूछ लें । बुद्धिसेन ने निडर होकर कहा।
किसी से पूछने की क्या आवश्कता। तुम स्वंय ही इसका प्रमाण क्यों नहीं देते? मैं तुम्हें दो दिन का समय देता हूँ। यदि तुम किसी भांति यह सिद्ध कर सको कि मैं तुम्हारा सेवक हूँ तो मैं तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार में दूँगा। अन्यथा तुम्हें राज्य छोड़ना होगा। राय मालवी ने कहा।
बुद्धिसेन ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
अगले दिन बुद्धिसेन जब दरबार में अपनी बात सिद्ध करने की योजना बनाकर उपस्थित हुआ।
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हमेशा की तरह दरबार उठने के बाद राय मालवी बुद्धिसेन के साथ शाही बाग में टहलते-टहलते दोनों काफी दूर निकल गए। राय मालवी वापस लौटने का विचार कर ही रहे थे कि अचानक बुद्धिसेन का पैर एक गड्डे में पड़ गया। उसका पैर लड़खड़ा गया और वह राय मालवी के शरीर से टकराता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। राय मालवी ने उसे पकड़ने की कोशिश की किन्तु संभाल न पाए और स्वंय भी गिर पड़े।
बुद्धिसेन वृद्ध तो था ही तुरंत बेहोश हो गया। राय मालवी बुद्धिसेन को बेहोश देखकर घबरा उठा। वह तुरंत दौड़कर सरोवर से पानी लाकर बुद्धिसेन के मुख पर छींटे मारने लगा।
दो चार छींटों के बाद ही बुद्धिसेन को होश आ गया। होश आते ही बुद्धिसेन ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, महाराज मेरा साफा?
राय मालवी ने देखा, बुद्धिसेन का साफा छिटककर दूर जा गिरा था। वह तुरंत लपक कर गया और साफा उठा लाया। साफा गंदा हो गया था। राय मालवी ने उसे झाड़ पोंछकर बुद्धिसेन के सिर पर रखा और उसके उठने में सहायता करने लगा। राय मालवी के ऐसा करते देखकर बुद्धिसेन ने मुस्कुराते हुए कहा, रहने भी दीजिए महाराज कितनी सेवा कीजिएगा मेरी?
बुद्धिसेन का इतना ही कहना था कि राय मालवी को पिछले दिन की घटना याद आ गई। बुद्धिसेन के बिना कुछ कहे राय मालवी ने कहा, मैं समझ गया। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए तुमने यह सब नाटक किया था, बुद्धिसेन ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
राय मालवी ने कहा, तुम जीत गए बुद्धिसेन। वास्तव में हम एक दूसरे के सेवक हैं। आओ में तुम्हें तुम्हारा पुरस्कार दे दूँ। पुरस्कार की क्या आवश्यकता महाराज। धन आपके पास रहे मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। आपने सच्चाई को स्वीकार कर लिया यही मेरे लिए बड़ा पुरस्कार है।