मज़ेदार कहानी -मेहनत की चमक

सेठानी जी को अपनी रसोई से बहुत प्रेम था। वहाँ काम में आने वाली सभी वस्तुओं को जमा करना उनकी आदत बन गई थी। जहाँ कहीं भी रसोईघर में काम आने वाली कोई भी वस्तु मिल जाती, वे उसे ले आतीं।

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Funny story - The glow of hard work
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मज़ेदार कहानी -मेहनत की चमक- सेठानी जी को अपनी रसोई से बहुत प्रेम था। वहाँ काम में आने वाली सभी वस्तुओं को जमा करना उनकी आदत बन गई थी। जहाँ कहीं भी रसोईघर में काम आने वाली कोई भी वस्तु मिल जाती, वे उसे ले आतीं।

एक बार सेठानी जी किसी मेले में गईं तो एक दुकान पर सुंदर आकार के चमचमाते चाकू देखकर उनकी नजर ठहर गई। मन में आया कि यहाँ से कुछ न कुछ तो अवश्य ही खरीदना चाहिए। “ये चाकू तो दिखाना, भैया,” दुकानदार के पास जाकर चाकुओं की ओर इशारा करते हुए सेठानी जी ने कहा।

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तभी दुकानदार ने चाकुओं का डिब्बा सामने कर दिया। यों तो उसमें रखे सभी चाकू एक दूसरे से बढ़िया थे। सभी की धार ऐसी कि छूते ही काट दें, और चमक ऐसी कि आँखें चुंधिया जाएँ।

अच्छी तरह देखभाल कर सेठानी जी ने दो चाकू खरीद ही लिए। वैसे तो उनका मन और भी खरीदने का कर रहा था, परंतु साथ में सेठ जी भी थे, इसलिये सेठानी जी ने केवल दो ही चाकुओं से संतोष कर लिया। घर आने पर सेठानी जी ने एक चाकू तो रसोई की अलमारी में रख दिया और दूसरे को प्रतिदिन उपयोग के लिये निकाल लिया।

नया चाकू बहुत अच्छा था और कुछ नए का भाव भी जुड़ा था। इसलिये सेठानी जी सबसे अधिक उसी का उपयोग करतीं। साग-सब्जी काटनी हो, अचार के लिये नींबू और आम काटने हों, या फिर मेहमानों के सामने फल पेश करने हों – हर जगह वही नया चाकू दिखाई देता।

एक दिन सेठानी जी की एक पुरानी सहेली मिलने आईं। उनके सामने नाश्ते के साथ फल भी रखे गए। स्वाभाविक था कि नया चाकू भी फलों के साथ विद्यमान था।

“अरे, यह चाकू तो बहुत सुंदर है। बड़ा चमक रहा है। कहाँ से खरीदा, बहन?”

“पिछले दिनों एक मेले में गई थी। बड़ी मुश्किल से तलाश करने पर इसे ला पाई थी।”

सेठानी जी का उत्तर सुनकर चाकू महाराज भी खुशी से झूम उठे। भला इतना मान-सम्मान उन्हें और कहाँ मिल सकता था? कौन चाकुओं की इतनी पूछ और तारीफ करता है?

सेठानी जी की सहेली चली गईं तो वे सोचने लगीं कि अब इस चाकू को कुछ दिन रख देना चाहिए। कहीं लोगों की नजर न लग जाए। यह विचार मन में आते ही सेठानी जी ने उस चाकू को अच्छी तरह साफ किया और दूसरे चाकू के साथ अलमारी में रख दिया।

पहले से रखे अपने साथी चाकू को देखकर वह नया चाकू आश्चर्य में पड़ गया। कारण था उसका बिगड़ा रूप। दोनों चाकू जब इस घर में आए थे, तो उनकी चमक-दमक और धार एक जैसी थी। पर यह क्या? रखा हुआ चाकू अब बदरंग और मरा-मरा सा दिखाई दे रहा था।

“क्यों मित्र! तुम्हारी यह हालत कैसे हो गई? स्वस्थ तो हो ना?”

“क्या पूछते हो, मित्र! मैं तो तुम्हारे भाग्य पर ईर्ष्या करता हूँ जो तुम उपयोग में आते रहे। यहाँ खाली पड़े-पड़े तो मुझे जंग लग गया है। बिना मेहनत और काम किए तो सभी की हालत ऐसी हो जाती है।”

“परंतु तुम तो विश्राम करते रहे हो, इसमें तो तुम्हें खुश होना चाहिए।”

“नहीं, मित्र! एक सीमा तक ही विश्राम ठीक रहता है। अधिक पड़े रहने से भी बीमारियाँ घर कर लेती हैं। अब तुम अपने को ही देख लो। तुम सदा मेहनत करते रहे हो, इसलिये तुम्हारी चमक बनी हुई है। अब यदि तुम भी यहाँ आराम करते रहे, तो एक दिन तुम्हारी हालत भी मेरे जैसी हो जाएगी।”

पहले से अलमारी में रखे चाकू की बात सुनकर वह नया चाकू भी चिंता में डूब गया।

“तुम ठीक कहते हो, मित्र। खाली पड़े रहने से अंग भी जाम हो जाते हैं। भगवान करे, अब सेठानी जी हम दोनों को बारी-बारी से उपयोग में लाती रहें, जिससे हम दोनों पर ही मेहनत की चमक बनी रहे।”

इसके बाद दोनों चाकू अपने को उपयोग में लाए जाने की प्रतीक्षा करते रहते। जब भी सेठानी जी अलमारी खोलतीं, दोनों चाकुओं के चेहरों पर आशा की किरण चमकने लगती।

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