पहाड़ी का रहस्य- जासूसी बाल कहानी

उस रोज टिमटु जासूस रात को बहुत देर से सोया था, इसलिए सुबह के आठ बजने पर भी उसकी नींद नहीं खुल रही थी। सूरज सिर पर चढ़ आया था, लेकिन टिमटु खर्राटे ले रहा था। उधर उसका साथी मिमटु जासूस आकर बाहर लगी घंटी पर अपना गुस्सा उतार रहा था।

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Mystery of the Hill- Detective Children Story
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पहाड़ी का रहस्य- जासूसी बाल कहानी :- उस रोज टिमटु जासूस रात को बहुत देर से सोया था, इसलिए सुबह के आठ बजने पर भी उसकी नींद नहीं खुल रही थी। सूरज सिर पर चढ़ आया था, लेकिन टिमटु खर्राटे ले रहा था। उधर उसका साथी मिमटु जासूस आकर बाहर लगी घंटी पर अपना गुस्सा उतार रहा था। घंटी अपनी पूरी ताकत से चीख रही थी, लेकिन टिमटु तो जैसे गहरी नींद में डूबा हुआ था।

काफी देर परेशान होने के बाद मिमटु लॉन पार करके टिमटु के कमरे की खिड़की के पास पहुंचा और पानी के पाइप को उसके पलंग की ओर खोल दिया। पानी पड़ते ही टिमटु को होश आया और उसने आंखें खोल दीं।

"यह बरसात किधर से हो रही है?" टिमटु ने चौंकते हुए कहा।

"अबे बरसात के बच्चे, अभी तक सोया पड़ा है? चलना नहीं है क्या?" मिमटु ने झल्लाकर जवाब दिया।

"चले हमारे दुश्मन! यार, मुझे सोने दे।" टिमटु ने मुँह बनाते हुए कहा।

मिमटु झल्लाते हुए बोला, "देखेगा तो तब, जब उठेगा। अब दरवाजा खोलता है या मैं खोलूं?"

भुनभुनाते हुए टिमटु उठ गया। दोनों जासूसों ने नाश्ता किया और तैयार होकर जीप में बैठ गए।

"अमां यार, आज जंगल में जाने की क्या सूझी है? पता है, आजकल के शेर काफी भूखे रहते हैं!" टिमटु ने पूछा।

मिमटु थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, "देख टिमटु, यह मजाक का वक्त नहीं है।"

"तो फिर कौनसा वक्त है ?"

टिमटु ने लापरवाही से पूछा, तो उसने मिमटु को अपनी ओर घूरते पाया।

"तुम्हें याद है, पिछले साल सारंग नाम का एक गिरोह हमारे देश की सरहद पर काफी सक्रिय था?"

"हाँ, याद है। वही ना, जिसका सरदार सारंगा हमारी ही गोली का शिकार होकर नदी में गिर गया था और फिर उसकी लाश भी नहीं मिली थी?"

"लाश कहाँ से मिलती? वह मरा ही नहीं था।"

"क्या कहा, मरा नहीं था?"
अब टिमटु भी गंभीर हो गया था।

"इसका मतलब है, तुम्हें जानकारी मिली है और हम दोनों उसी के चक्कर में जंगल के पेड़-पौधे गिनने आए हैं?"

टिमटु के प्रश्न पर मिमटु ने "हाँ" में सिर हिलाया।

"वो देखो..."

जीप को धीमा करते हुए मिमटु ने एक पहाड़ी की ओर संकेत किया।

"लगता है, इसी पहाड़ी के आसपास उस सारंगा ने अपना जाल बिछा रखा है।"

"तुम यह यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि सारंगा मरा नहीं है और यहीं कहीं उसने अपना अड्डा बना लिया है?"
टिमटु के सवाल पर मिमटु संयत होकर बोलने लगा।

"मेरे पास कोई सबूत तो नहीं है, पर मुझे पूरा विश्वास है कि यहाँ जो कुछ भी हो रहा है, वह सारंगा की ही करतूत है। इसका कारण है यहाँ पर फैला भूतों का डर। पिछले कुछ दिनों से यहीं से तस्करी का माल हमारे देश में पहुँच रहा है। छानबीन करने पर पता चला कि शाम को अंधेरा होने के बाद यहाँ कोई आने का साहस नहीं करता। गाँव वालों का कहना है कि पहाड़ी पर जगह-जगह रोशनी टिमटिमाती रहती है। उन्हें लगता है कि रात को यहाँ भूत आकर खेल-तमाशा करते हैं। तुम्हें याद होगा, पिछले साल भी इस जंगल में इसी तरह का आतंक फैला था।"

मिमटु की बात सुनकर टिमटु भी गंभीर हो गया।

"अगर ऐसा है, तो आज उस सारंग के बच्चे की जन्मकुंडली पर शनि महाराज बैठ गए, समझो।"

दोनों ने अपनी जीप को पेड़ों की ओट में खड़ा किया और ऊपर से डालियाँ व पत्ते बिखेर दिए। फिर वे पैदल ही पहाड़ी की ओर बढ़ने लगे। दोनों ने अपने-अपने पिस्तौल चेक करके वापस जेबों में रख लिए।

"जरा ध्यान से सुनो, टिमटु। कहीं से आवाज सी आ रही है।"

टिमटु ने ध्यान दिया, तो उसे भी वैसा ही लगा। वे दोनों एक घने पेड़ की ओट में होकर इधर-उधर देखने लगे। आवाज उसी गति से आ रही थी—न कम हो रही थी, न बढ़ रही थी।

"अरे, यह तो किसी वायरलेस की आवाज लगती है।"

कहते ही टिमटु ने अपनी जेब से एक छोटा सा यंत्र निकाला और उस पर लगी सुई की दिशा में चलने लगा। मिमटु भी उसके पीछे-पीछे हो लिया। थोड़ी ही देर में वे दोनों एक भारी-भरकम वृक्ष के पास आकर रुक गए। अब उनके यंत्र की सुई चारों ओर घूमने लगी थी।

टिमटु ने यंत्र को वापस जेब में रखा और पिस्तौल निकाल कर सतर्कता से इधर-उधर देखने लगा। मिमटु भी उस वृक्ष के चारों ओर बड़ी सावधानी से घूमने लगा। अचानक उसका पैर एक पत्थर पर पड़ा और वह एक ओर को गिरने लगा। तभी उसके हाथ का पिस्तौल वृक्ष के तने पर लगा, तो एक अजीब आवाज हुई, जैसे धातु किसी दूसरी धातु से टकराई हो।

मिमटु ने ध्यान से देखा, तो पाया कि वह वृक्ष साधारण वृक्षों की तरह नहीं था। उसका तना लोहे की चादर का बना हुआ था, लेकिन पास से देखने पर भी वह साधारण वृक्ष ही नजर आता था।

तब मिमटु ने टिमटु को इशारे से अपने पास बुलाया और उसके कान में धीरे से कुछ कहा। साथ ही वह पेड़ की डालियों को खींचता और छोड़ता जा रहा था। अचानक, एक डाली खींचने पर वृक्ष का तना किसी ड्रम की तरह घूमने लगा। देखते ही देखते तना आधा चक्कर पूरा कर गया और वहां एक दरवाजा सा दिखाई देने लगा, जैसे ड्रम को काटकर बनाया गया हो। साथ ही, नीचे की ओर जाती हुई सीढ़ियां भी नजर आने लगीं।

"लगता है, बदमाशों ने इस पहाड़ी के नीचे तहखाना बनाकर अपना अड्डा बना रखा है। अवश्य ही ये सीढ़ियां वहीं जाती होंगी," टिमटु ने धीरे से कहा।

तभी उन्होंने दूर से एक जीप को आते हुए देखा। मिमटु ने तुरंत उसी डाली को दूसरी दिशा में खींच दिया और दोनों तेजी से दौड़कर एक अन्य पेड़ की ओट में छिप गए।

थोड़ी ही देर में, एक गहरे हरे रंग की जीप वहाँ आकर रुकी। उसमें से विचित्र वेशभूषा पहने चार व्यक्ति उतरे। चारों ने चारों ओर नजरें घुमाईं।

"ऑल ओ. के., बॉस," उनमें से एक ने कहा। इसके बाद जीप में से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बड़े रौब के साथ उतरा। फिर, पहले उतरे व्यक्तियों में से एक पेड़ के पास गया और उसने डाली खींच दी।

पहले की तरह ही वृक्ष का तना घूमने लगा। बॉस और तीन व्यक्ति उसमें नीचे उतरते चले गए। तना वापस अपनी जगह पर घूम गया। बाकी बचा एक व्यक्ति जीप को लेकर लौट गया।

"लगता है, तुम्हारा अनुमान बिल्कुल सही था। अवश्य ही उस पहाड़ी के नीचे तहखाना है," मिमटु ने कहा।

टिमटु मुस्कराते हुए बोला, "आज इस बॉस के जीवन का आखिरी दिन है।"

"अपना काम निकालो और अपनी पोज़ीशन संभालो," मिमटु ने टिमटु की बात का समर्थन करते हुए कहा।
इसके बाद, दोनों जासूस धीरे-धीरे पेड़ की ओट से बाहर निकले और अपनी जीप में जाकर आराम करने लगे। रात होने पर टिमटु और मिमटु ने देखा कि पहाड़ी पर छोटी-छोटी लौएं इधर-उधर तैरने लगी थीं। कई जगहों पर तो तारे जैसे टिमटिमाते उजाले भी नजर आ रहे थे।

"कछुओं की पीठ पर जलती मोमबत्तियां लगाकर ये हमें बेवकूफ नहीं बना सकते," टिमटु बुदबुदाया।

"और पॉलिथीन की थैलियों में जुगनुओं की चमक से भी हम डरने वाले नहीं हैं," मिमटु ने कहा।

"अब क्या प्रोग्राम है?" टिमटु के सवाल पर मिमटु सोचने लगा। तभी उसने अपना सिर झटका और गंभीरता से कहा, "लेकिन यह सारंगा तो नहीं लग रहा।"

"हो सकता है, यह उसी के गिरोह का कोई आदमी हो। शायद उसी की तरह भूत-प्रेतों का आतंक फैलाकर डराने की कोशिश कर रहा हो," मिमटु ने कहा।

"मैं उसी पहाड़ी पर ब्लास्ट करता हूं। बम पड़ते ही वे लोग उसी पेड़ के रास्ते से भागने का प्रयास करेंगे। इसलिए तुम वहीं पेड़ के पास अपनी पोजीशन ले लो।"

"ठीक है," टिमटु ने कहा।

इतना कहकर टिमटु धीरे-धीरे उस वृक्ष से थोड़ी दूरी पर जाकर छिप गया। उधर, मिमटु भी जीप से उतरकर पहाड़ी की ओर बढ़ने लगा।

थोड़ी देर बाद, मिमटु पहाड़ी के पास पहुंच गया। उसने अपनी कमीज का एक बटन तोड़ा और पहाड़ी पर उछाल दिया। बटन गिरते ही एक जोरदार धमाका हुआ और पहाड़ी के स्थान पर एक गहरा खड्डा बन गया। साथ ही हल्की सी चीख भी सुनाई दी। बिना कोई समय गंवाए, मिमटु ने एक और बटन उछाल दिया। दूसरे धमाके के बाद वहाँ से काफी धुआं और आग की लपटें निकलने लगीं। शायद तहखाने में रखा सामान जलने लगा था।

मिमटु का अनुमान सही था। दूसरे धमाके से पहले ही उस वृक्ष का दरवाजा खुलने लगा। टिमटु पहले से तैयार था।

पहले बॉस ही बाहर निकला। सामने खड़े टिमटु और मिमटु को देखकर वह चौंक गया। टिमटु ने उसे देखकर कहा, "कहिए, सेठ रामनारायण जी! अनाज की ब्लैक से पेट नहीं भरा जो यह तस्करी का धंधा शुरू कर दिया?"

बॉस का पिस्तौल उठाने का प्रयास बेकार गया। पहली गोली बॉस के हाथ पर लगी, जिससे उसका पिस्तौल दूर जा गिरा। दूसरी गोली उसकी टांग में छेद करती हुई पीछे खड़े व्यक्ति के पेट में जा घुसी।

अब तक मिमटु भी वहाँ आ चुका था।

"यदि दुष्ट और नीच व्यक्ति को कोई भला कहे, तो वह भला नहीं होगा। केवल कहने से जहर मीठा और न ही नमक मीठा हो सकता है," मिमटु ने तंज कसते हुए कहा।

"इसमें सोचने की कोई खास बात नहीं है, अंकल। असल में, आपके यहाँ पिछले दिनों रखे गए नए ड्राइवर ने ही आपको मरवा दिया होता।"
"इंस्पेक्टर अंकल शर्मा ने उसी पर निगाह रखने के लिए हमें कहा था। पर आपके ड्राइवर महोदय के हाथ पर विदेशी घड़ी देखकर मुझे शक हो गया। फिर वह तो रोज नई-नई घड़ियां लगाकर घूमने लगा था। अब आप तो जानते ही हैं, सेठजी, कि हम जैसे जासूस बच्चों को तो सुई की नोंक चाहिए, फिर उस पर घर खड़ा करने में हमें देर नहीं लगती।"

सेठ रामनारायण के साथ-साथ टिमटु भी मिमटु का यह व्याख्यान बड़े ध्यान से सुन रहा था। सेठ रामनारायण की फटी-फटी आँखें देखकर मिमटु मुस्कुराने लगा।

"अब मेरे चौखटे को ही घूरता रहेगा क्या? सेठजी को मेहमानखाने ले चलने की तैयारी भी तो कर। वहाँ शर्मा अंकल चिंता कर रहे होंगे। सोच रहे होंगे कि छोकरे कहीं फँस तो नहीं गए।"

इसके बाद, दोनों ने मिलकर उस तथाकथित बॉस को अपनी जीप में डाला और शहर की ओर चल पड़े।

अगले दिन के अखबारों में "पहाड़ी के रहस्य" की कथा को लोगों ने चटखारे ले-लेकर पढ़ा।

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