सच्ची दोस्ती का इनाम: पिल्लों की बहादुरी की कहानी!

यह कहानी पांच पिल्लों की है जो एक विद्यालय के खेल के मैदान में खेलने का सपना देखते हैं, लेकिन चौकीदार उन्हें दूर रखता है। एक रात, वे देखते हैं कि चोर विद्यालय में घुस गए हैं। पिल्ले बहादुरी से भौंकना शुरू कर देते हैं

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यह कहानी पांच पिल्लों की है जो एक विद्यालय के खेल के मैदान में खेलने का सपना देखते हैं, लेकिन चौकीदार उन्हें दूर रखता है। एक रात, वे देखते हैं कि चोर विद्यालय में घुस गए हैं। पिल्ले बहादुरी से भौंकना शुरू कर देते हैं और चौकीदार को जगाते हैं, जिससे चोर पकड़े जाते हैं। उनकी इस बहादुरी से चौकीदार खुश हो जाता है और उन्हें अपना दोस्त बना लेता है। इसके बाद, पिल्ले बच्चों की छुट्टी के बाद खेल के मैदान में मनचाहा खेल पाते हैं। कहानी यह सिखाती है कि निस्वार्थ मदद का सबसे बड़ा इनाम सच्ची खुशी और दोस्ती होती है।

एक हलचल भरी सड़क के किनारे, पाँच नन्हे पिल्लों का एक झुंड उदास और मायूस बैठा था। उनकी आँखें सड़क के पार स्थित एक बड़े और रंगीन विद्यालय पर टिकी थीं। यह कोई साधारण विद्यालय नहीं था; इसकी ऊँची-ऊँची दीवारें और भव्य लोहे का दरवाज़ा, जिस पर एक बड़ी मूंछों वाला, हट्टा-कट्टा चौकीदार अपनी मोटी लाठी के साथ पहरा देता था, इसे और भी आकर्षक बना देते थे।

जब भी चौकीदार की नज़र बचाकर वे पिल्ले दरवाज़े की जाली से अंदर झाँकते, तो उनका नन्हा दिल खुशी से उछल पड़ता था। मैदान में बच्चे ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए झूलों पर झूलते, फिसलपट्टी पर सरकते हुए किलकारियाँ भरते, और गोल चक्कर पर बैठकर खुशी से लोटपोट हो जाते। बच्चों की यह मस्ती और उधम-कूद देखकर पिल्ले आपस में फुसफुसाते:

"काश! हम भी उस मैदान में जाकर खेल पाते," एक पिल्ले ने लंबी साँस लेते हुए कहा। "हाँ, लेकिन वो बड़े मूँछों वाला अंकल तो हमें पास भी नहीं फटकने देता," दूसरे ने जवाब दिया, "एक बार तो उसने इतनी ज़ोर से लाठी घुमाई कि हम 'क्याऔं क्याऔं' करते हुए भाग खड़े हुए थे।" "पता नहीं हमें कब मिलेगी ऐसी आज़ादी?" तीसरे ने उदासी से पूछा।

एक रात, जब पूरा मोहल्ला गहरी नींद में था, पिल्लों ने विद्यालय के अहाते से कुछ अजीब-सी चीं-चीं की आवाज़ें सुनीं। उन्होंने हौले से दरवाज़े की जाली में झाँककर देखा तो उनकी आँखें फटी रह गईं। छः-सात बंदरों का एक झुंड पेड़ों पर से छलांग लगाते हुए अहाते के अंदर घुस आया था। कोई झूले पर उछल रहा था, कोई फिसलपट्टी पर सरक रहा था, तो कोई गोल चक्कर पर घूमते हुए अपने दाँत दिखाकर खुश हो रहा था।

यह नज़ारा देखकर पिल्ले और भी मायूस हो गए। उन्हें पता था कि अहाते की इतनी ऊँची दीवारें कूदना उनके बस की बात नहीं थी। "काश हम भी बंदर होते!" एक पिल्ले ने निराशा से कहा।

अगली रात, पिल्लों को अहाते के अंदर से ठक्-ठक् की आवाज़ें सुनाई दीं। रात का सन्नाटा ऐसा था कि सुई गिरने की आवाज़ भी सुनाई दे जाए। उन्होंने ध्यान से देखा तो पाया कि लोहे के दरवाज़े का ताला टूटा हुआ था! चौकीदार शायद गहरी नींद में सो रहा था।

"लगता है चौकीदार अंकल सो रहे हैं!" एक पिल्ले ने फुसफुसाया। "और दरवाज़ा भी खुला है!" दूसरे ने आश्चर्य से कहा। "क्या करें? अंदर चलें?" तीसरे ने पूछा। "चलो, देखते हैं अंदर क्या हो रहा है," सबसे बहादुर पिल्ले ने कहा।

हिम्मत करके वे सब पिल्ले दबे पाँव अंदर घुस गए। उन्होंने देखा कि तीन-चार नकाबपोश लोग विद्यालय के कार्यालय का ताला तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। पिल्ले तुरंत समझ गए कि विद्यालय में चोर घुस आए हैं।

"ये तो चोर हैं!" एक पिल्ले ने कानाफूसी की। "हमें कुछ करना होगा!" दूसरे ने कहा। "क्या करें?" तीसरे ने पूछा। "भौंकना शुरू करो! और चौकीदार अंकल को जगाओ!" सबसे समझदार पिल्ले ने आदेश दिया।

उन्होंने एक स्वर में जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया। कुछ पिल्ले अपने मुँह से सोए हुए चौकीदार की पैंट पकड़कर खींचने लगे। पिल्लों के शोर से चौकीदार जाग गया। उसने भी विद्यालय के अंदर से आती आवाज़ सुनी। "चोर-चोर!" चिल्लाते हुए वह अपनी लाठी लेकर कार्यालय की ओर दौड़ा। उसने ज़ोर-ज़ोर से लाठी बजाई।

चोर बाहर की तरफ भागने लगे, लेकिन दरवाज़े पर पहरेदारी करते वे सारे पिल्ले डटे हुए थे। उन्होंने चोरों का रास्ता रोक लिया। तभी चौकीदार भी वहाँ पहुँच गया और उसने उन चोरों को धरदबोचा। लाठी से उनकी अच्छी पिटाई की और फिर पुलिस के हवाले कर दिया।

चौकीदार पूरा घटनाक्रम समझ गया था कि उन नन्हे पिल्लों की वजह से ही चोर पकड़े गए हैं। उसे यह भी एहसास हुआ कि उसकी नौकरी भी इन्हीं बहादुर पिल्लों के कारण बच गई थी। उसने पिल्लों को प्यार से सहलाया।

उस घटना के बाद से, वे सारे पिल्ले विद्यालय के उस चौकीदार के सच्चे मित्र बन गए। अब चौकीदार उन्हें लाठी से भगाता नहीं था, बल्कि प्यार से सहलाता था और हर रोज़ अपने घर से उनके लिए गरमागरम रोटियाँ भी लाता था।

और पिल्लों के लिए सबसे ज़्यादा खुशी की बात तो यह हुई कि अब विद्यालय के बच्चों की छुट्टी होने के बाद, वे बेखौफ होकर मैदान में लगे झूले, फिसलपट्टी और गोल चक्कर का खूब मज़ा लेते थे। उन्हें समझ में आ गया था कि चोरी से प्राप्त की हुई चीज़ की बजाय, इनाम में मिली वस्तु का आनंद कहीं अधिक होता है। उन्होंने चौकीदार की मदद की थी और बदले में उनके मन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई थी। यही उनका अनमोल इनाम था, सच्ची दोस्ती और खेल के मैदान की आज़ादी!

सीख (Moral of the Story):

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी और असली इनाम भौतिक चीज़ों में नहीं होता, बल्कि निस्वार्थ सेवा, बहादुरी और सच्ची दोस्ती में होता है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं और अच्छा काम करते हैं, तो हमें जो संतुष्टि और प्यार मिलता है, वही सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। यह हमें यह भी सिखाती है कि छोटी से छोटी चीज़ भी, चाहे वह एक नन्हा पिल्ला ही क्यों न हो, बड़े से बड़ा बदलाव ला सकती है और महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

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