Jungle story: कोयल की मीठी बोली

किसी पहाड़ी के समीप हरे-भरे वृक्षों वाला उपवन था। उपवन में पोखर था। पोखर में एक मेंढक रहा करता था। वह पोखर भर में खूब चहलकदमी करता। उपवन की हरियाली उसे बेहद भाती थी।

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कोयल की मीठी बोली

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Jungle story कोयल की मीठी बोली:- किसी पहाड़ी के समीप हरे-भरे वृक्षों वाला उपवन था। उपवन में पोखर था। पोखर में एक मेंढक रहा करता था। वह पोखर भर में खूब चहलकदमी करता। उपवन की हरियाली उसे बेहद भाती थी। उपवन में दूर-दूर तक खिले हुए रंग-बिरंगे फूल उसे खूब लुभाते थे। ठंडे पवन झकोरों से उसका मन प्रफुल्लित हो उठता। आसमान पर काले-सांवले बादल तैर रहे थे। हवाएं चल रही थी। अब हल्की-हल्की बूंदा-बांदी भी आरंभ हो गई। वर्षा की रिमझिम-रिमझिम फूहारें पोखर में पड़ते ही मेंढक का दिल बाग-बाग हो उठा। उससे शांत न रहा जा रहा था। वर्षा का आगमन उसे बहुत भला लगा था। वह उपवन के मालिक गरूड़ महाराज को पुकारने लगा। गरूड़ जी के आने पर वह बोला कि वर्षा के मनभावन मौसम ने उसके दिलो-दिमाग में हलचल मचा दी है। वह कुछ फरमाना चाहता है, जिसके लिए उसे अनुमति चाहिए। गरूड़ जी बोले- "ठीक है, मैं तुम्हारे लिए अभी एक समारोह के आयोजन की व्यवस्था करवा रहा हूं। तुम्हारे मन की मुराद अवश्य पूरी होगी"। (Jungle Stories | Stories)

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गरूड़ जी उपवन के सभी परिंदों को बुलवाकर बोले- "पोखर वाले मेंढक के लिए एक समारोह का आयोजन किया जाए। सभी पंछियों का समारोह में शामिल होना आवश्यक है। वर्षा की फुहारों ने मेंढक को बढ़ा प्रभावित किया है। वह गाना चाहता है तुम सब जा कर उसका हौसला बढ़ाओ"।

थोड़ी देर में उपवन में एक भव्य सा मंच बना दिया गया। श्रोता पंछी आ पहुंचे। पंछी बोले- "हम सब समारोह में शामिल होने आए हैं। तुम जो कुछ भी सुनाना चाहो सुना सकते हो हमें प्रसन्नता होगी। (Jungle Stories | Stories)

सभी को समारोह में आया हुआ देखकर मेंढक तो पोखरभर में तैरने लगा। थोड़ी देर बाद वह पोखर के किनारे आकर...

सभी को समारोह में आया हुआ देखकर मेंढक तो पोखरभर में तैरने लगा। थोड़ी देर बाद वह पोखर के किनारे आकर गाने लगा। पर वह तो एक ही राग अलापना जानता था। पंछी सुनते-सुनते ऊबने लगे। मैना भाग खड़ी हुई। बुलबुल बोली- "भला यह भी कोई गीत हुआ?” बुलबुल के बाद गौरेया ने भागने का प्रयास किया। कौवा बोला- "मुझे तो मेंढक का राग कुछ समझ में नहीं आ रहा है" वह उड़कर भाग गया। कबूतर बोला मुझे जरूरी कार्य से बाहर जाना है। कबूतर भी नौ दो ग्यारह हो गया। कुछ देर बाद नीलकंठ ने रास्ता नांपा। समारोह में सिर्फ कोयल शेष रह गई। वह मेंढक के बोल सुन के वाह-वाह कह उठी। वह मेंढक को
प्रोत्साहित करते हुए कहती- "बहुत सुंदर गा रहे हो गाते रहो"। थोड़ी देर बाद मेंढक गाकर चुप हो गया। अब तक गरूड़ राज आ पहुंचे थे।(Jungle Stories | Stories)

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कोयल बोली- "हमे सिर्फ अपनी न चलाते हुए औरों के बोल भी सुनने-समझने का प्रयास करना चाहिए। हर कोई अपने मनो भावों को अलग-अलग तरह से अभिव्यक्त करना चाहता है। अतः उसे प्रोत्साहित ही करता चाहिए। वरना वह हीनभाव का शिकार हो जायेगा। गरूड़ महाराज कोयल का धैर्य देख कर वैसे ही दंग रह गए थे। अब उसके वचन सुनकर वे प्रसन्न हो उठे। कोयल ने सच में मेंढक को प्रोत्साहन दिया था। मेंढक बोला- "जिस प्रकार बगैर ऊबे हुए तुमने मुझे ध्यानपूर्वक सुना है उसी प्रकार अब से हर कोई तुम्हें भी ध्यानपूर्वक सुना करेगा।

गरूड़ जो बोले- "हां, मैं भी तुम्हारे लिए यही कामना करता हूं"। मेंढक के कर्कशराग को भी ध्यानपूर्वक सुनने एवं सराहने का ही परिणाम है कि कोयल को आज भी लोग सुनते हैं। कोयल के बोल से कोई ऊबता नहीं है। (Jungle Stories | Stories)

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