Jungle Story: किसी से क्यों डरना

छोटा बबलू हिरन बड़ा डरपोक था, पेड़ के पत्ते हवा से हिलते तो भी वह डर के मारे उछलकर अपनी माँ की गोद में दुबक जाता। वह बाहर मित्रों के साथ खेलने भी नहीं जाता। वह कहता ‘‘ना बाबा ना, मैं घर के बाहर नहीं जाऊँगा।

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किसी से क्यों डरना

Jungle Story किसी से क्यों डरना:- छोटा बबलू हिरन बड़ा डरपोक था, पेड़ के पत्ते हवा से हिलते तो भी वह डर के मारे उछलकर अपनी माँ की गोद में दुबक जाता। वह बाहर मित्रों के साथ खेलने भी नहीं जाता। वह कहता ‘‘ना बाबा ना, मैं घर के बाहर नहीं जाऊँगा, मुझे कुछ हो गया तो।’’ उसके साथी मित्र बबलू का बड़ा मजाक उड़ाते। वे कहते बबलू, तू बूढा़ होने तक माँ की गोद में ही चिपक के सोते रहना, डरपोक कहीं का। ‘‘बबलू कहता’’ हाँ, क्यों नहीं? मेरी माँ मुझे हमेशा संभालेगी।

बबलू की माँ भी बबलू के डर और कायरता को देखकर बहुत चिंतित रहती थी। वह सोचती ‘जब तक मैं जीवित हूँ तब तक बबलू को सहारा देती रहूँगी लेकिन मेरे मरने के बाद इस डरपोक बबलू को कौन संभालेगा? उस समय उसकी हालत दयनीय हो जायेगी। वह ठीक से जी भी नहीं पाएगा। इसलिए बबलू को अभी से ही निडर बनाना ज़रूरी है। उसे अपने पैंरो पर खड़ा होना ही होगा। (Jungle Stories | Stories)

छ दिनों से कमला बाघिन जंगल के चक्कर काट रही थी। सभी प्राणी अपनी जान बचाने की फिराक में लगे थे। तीन-चार दिन में किसी हिरन या बारहसिघें का शिकर कर ही लेती थी। बबलू हिरन तो इस खबर की चिंता से मानो पीला सा पड़ गया था। उसने रात-दिन रो-रो कर अपनी माँ को हैरान-परेशान सा कर रखा था। बबलू की माँ भी अब करे तो क्या करे? मृत्यु तो अटल है। यह तो विधि का विधान है। इस तरह रोना और डरना बचने का कोई हल नहीं था। उसका तो मुकाबला ही करना चाहिए। मौत जब सामने होगी तो उसे कोई नहीं टाल सकता।    

माँ के समझाने-बुझाने का बबलू के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। बबलू बिना कुछ खाए-पिए रोता ही रहता था। उसकी माँ कहती, ‘‘मेरा बबलू कितना पागल है। ये तो कमला के आने के पहले ही डर के मारे रो रोकर परलोक सिधार जाएगा। परन्तु उसे समझाऊँ कैसे?’’ (Jungle Stories | Stories)

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आखिरकार उसके दिमाग में एक बात आयी और उसने कहा, ‘‘बबलू चल मैं तुझे गजराज हाथी दादा के पास लेकर चलती हूँ। हाथी दादा बड़े दयालु और ईश्वर-प्रेमी हैं। श्रीमद् भगवद् गीता का नियमित पाठ करते रहते हैं। वे भगवान के सच्चे भक्त हैं, उनके पास चलने पर अवश्य तेरे अन्दर बदलाव आएगा।’’ (Jungle Stories | Stories)

बबलू की माँ बबलू को लेकर हाथीदादा के पास गयी। हाथीदादा ने प्रेम से उनका स्वागत...

बबलू की माँ बबलू को लेकर हाथीदादा के पास गयी। हाथीदादा ने प्रेम से उनका स्वागत किया। हाथीदादा की यही विशेषता थी कि अंजान से प्राणी को भी मान-सम्मान दिया करते थे। उनकी नजर में छोटे-बड़े सब एक जैसे थे। बबलू की माँ ने रोते-रोते हाथी दादा को बबलू की हालत के बारे में सब बताया और उनके चरणों में अपना माथा टेक दिया। फिर आगे कहा, ‘‘हाथी दादा! बस अब आपके हाथों से ही बबलू ठीक हो सकता है।’’

हाथी दादा बबलू की माँ को धीरज बंधाते हुए बबलू की तरफ मुड़कर बबलू को ध्यान से देखते हैं। दो पल आंखे बन्द कर ध्यान लगाया, फिर गीता के दो श्लोक बोलकर बबलू से कहते हैं। ‘‘बेटा मैं तुमसे एक बात पूछूँ?’’ हाथी दादा के पास आकर बबलू शांत होकर बैठ जाता है। हाथी दादा बोले ‘‘तुम्हें ये जीवन किसने दिया है, यह तुम्हें पता है?’’ बबलू ने नहीं में गरदन हिला दी। (Jungle Stories | Stories)

हाथी दादा श्रीमद् गीता खोलकर बबलू को समझाते हैं, ‘‘बबलू! हम-सब को यह शरीर परम पिता परमेश्वर ने दिया है तथा उसको वापस लेने का अधिकार मात्र उनको ही है। यानी परम पिता परमेश्वर को ही है। बाकी किसी और की क्या ताकत है जो हमें मौत के घाट उतार सके। जिस दिन परमेश्वर के दरबार से आदेश आएगा कि फलाँ-फलाँ की आयु पूर्ण हो गयी है, उसको लेकर आओ। किसी को भी माध्यम बनाकर परमेश्वर इस काम को पूरा करवाते हैं। इसलिए हमे केवल भगवान के खौफ से ही डरना चाहिए। हमे हर काम का हिसाब भगवान को देना पड़ता है।’’

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बबलू और उसकी माँ बड़े ध्यान से हाथी दादा की बात सुन रहे थे। हाथी दादा की बातों से बबलू को सोचने की नई दिशा मिली। जिसे वह इसके पूर्व आज तक नहीं जान पाया था। हाथी दादा आगे कहते हैं, ‘‘जिसने भी सत्कर्म किया होगा, उसको अच्छा ही फल मिलता है। अच्छी बुद्धि मिलती है। वहीं दूसरी ओर गलत काम करने वालों को जन्म-जन्मांतर तक उसकी सजा मिलती है। गरीबी, दुख, अपंगता ऐसे अनेक परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसलिए बबलू बेटा, सभी चिंता ईश्वर पर छोड़ दो। वे ही हमारे माता और पिता हैं। वे हमारा अहित कभी नहीं करेंगे। यह शरीर छोड़कर उनकी ही गोद में जाना है। फिर से सुन्दर शरीर वो हमें दे देगें। उसके बाद फिर इस संसार सागर में आएगे। मृत्यु अटल है। अरे, जब जंगल के राजा सिंहराज को भी प्रभु का बुलावा आता है, तब उनको भी यह शरीर छोड़ना पड़ता है। इसलिए मृत्यु से नहीं बुरे कर्मों से डरो।’’ (Jungle Stories | Stories)

हाथीदादा अपने मीठे-मीठे वचनों से बबलू को समझाते रहे। अब तो प्रतिदिन बबलू हाथी दादा की पाठशाला में आने लगा। भगवान का नियमित चिंतन-मनन करने से धीरे-धीरे उसके मन से डर कम होने लगा। कुछ दिन बाद ही वह निडर होकर जंगल में खेलने लगा। (Jungle Stories | Stories)

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