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चित्रकार की चतुराई
हिंदी नैतिक कहानी: चित्रकार की चतुराई:- जर्मनी के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जैकब ने एक बार एक चित्रकार से अपना तैलचित्र बनवाया। चित्रकार ने जब उस चित्र का दाम 1000 सिक्के बताया तो सेठजी चौंक पड़े। उन्हें लगा, मूल्य बहुत अधिक है। पर चित्रकार से तो यह कह नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंनें चित्र पर एक सरसरी निगाह डाली और बोले, "यह चित्र बनाया है! इतनी मोटी नाक और मुँह ऐसा भद्दा! इसकी सूरत तो मुझसे बिल्कुल नहीं मिलती। ले जाओ यह चित्र मेरी नजरों के सामने से।
चित्रकार का अनोखा प्रस्ताव
चित्रकार बहुत ही चतुर और अनुभवी था। पल भर में सारी बात समझ गया। परंतु उसने सेठ के आरोप का विरोध नहीं किया। शांत स्वर में बोला, "कोई बात नहीं, चित्र आप नहीं लेना चाहते तो न लें। बस एक कागज़ पर सिर्फ यह लिख दें कि इस चित्र की शक्ल मुझसे बिल्कुल नहीं मिलती"।
सेठ जी ने खुशी से लिखकर दे दिया। एक दिन की बात है। वह अपने ऑफिस में बैठे हुए थे कि उनके एक मित्र का फोन आया, "रॉयल हाउस" मे लगी हुई प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर लगे हुए चित्र को जाकर जरूर देखो।
प्रदर्शनी में चित्र
सेठ जी ने फोन सुना और अपने काम में लग गये। लेकिन जब शाम तक वैसे ही बीस फोन और आये तो वह चौंके। झट से कार निकाली और जा पहुंचे रॉयल हाउस। देखा मुख्य द्वार पर उनका वही तैल चित्र लगा हुआ है। चित्र का शीर्षक था- "जर्मनी का सबसे बड़ा चोर"।
सेठजी तिलमिला उठे। वह लपक कर प्रदर्शनी के मैनेजर के पास पहुंचे और मानहानि का दावा दायर करने की धमकी देने लगे। मैनेजर ने चुपचाप उनके हाथ का लिखा हुआ नोट उनके सामने रख दिया- "इस चित्र की शक्ल मुझसे बिल्कुल नहीं मिलती"।
सेठजी का अंतिम उपाय और चित्रकार की चालाकी
अब सेठजी चकराने लगे। मैनेजर की खुशामद करने लगे। मैनेजर शांत स्वर में बोला, "अब तो आपके सामने एक ही उपाय है। आप इस चित्र को खरीद लें"।
"क्या कीमत है इसकी?"
"पांच हजार सिक्के"।
सेठ जी सुन्न रह गये। उन्होंने एक क्षण सोचा और चुपचाप 5000 सिक्के मैनेजर के सामने रख दिये। सिक्के देखकर मैनेजर हल्के से मुस्कराया। सेठ जी को यह समझते देर न लगी कि मैनेजर चित्रकार की चतुराई पर मुस्कुरा रहा है।
कहानी से सीख: चतुराई और समझदारी से किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है, और कभी-कभी आपकी अपनी प्रतिक्रिया ही आपके फैसलों को बदल सकती है।