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द ग्रेटेस्ट टीचर
हिंदी नैतिक कहानी: द ग्रेटेस्ट टीचर:- उस दिन की दोपहर झामू (घर का नौकर) के लिए काफी व्यस्त थी क्योंकि वो पूरा दिन मूर्ति के पीछे भागता रहा। मूर्ति बड़ा ही शरारती बच्चा था और वो कभी किसी का कहा नहीं मानता था।
अचानक किसी चीज़ के टूटने की आवाज सूनकर मूर्ति का कंजूस पिता कमरे के अँदर दौड़ा चला आता है और वो देखता है कि उसके कीमती दीपवृक्ष के टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं, ये देखकर वो गुस्से से आग बबूला हो जाता है। वह झामू और मूर्ति दोनों से पूछता है कि ये किसने तोड़ा और इस हरकत के पीछे कौन जिम्मेदार है।
मूर्ति झूठ बोलता हुए कहता है कि झामू ने मुझ पर जोर ड़ाला कमरे के अँदर खेलने के लिए और इसी वजह से ये दीप वृक्ष टूट गया। कंजूस, झामू को प्रताड़ित करते हुए कहता है कि अगर वह ठीक से नहीं रहेगा तो उसे घर से निकालकर फेंक दिया जाएगा।
मूर्ति के माता पिता उसकी शरारतों से अच्छी तरह से वाकिफ थे इतना ही नहीं वे उससे काफी तंग भी आ चुके थे। कई बार तो वह मिर्ची से भरा पूरा बर्तन चावलों में उड़ेल देता जो झामू के द्वारा बनाए जाते थे। कई बार वो घर के तकियों और गद्दों को फाड़ देता। कैसे न कैसे वो हर बार अपनी गलती का इल्जाम झामू पर लगा देता, जिसके बाद झामू को उसके माता पिता से डांट सुननी पड़ती।
एक दिन मूर्ति के कंजूस पिता को अपना बही खाता देखना था अपने ऋण के कारोबार के प्रबंधन के लिए...
एक दिन मूर्ति के कंजूस पिता को अपना बही खाता देखना था अपने ऋण के कारोबार के प्रबंधन के लिए, तभी उसे पता चलता है कि उसके शरारती बेटे ने बही खाते के कागजों की नाव बनाकर नदी में बहा दी। कंजूस यह देखकर बेहद हताश होता है और झामू को उसकी लापरवाही के लिए डांटने लगता है और उसे यह कहते हुए नौकरी से निकाल देता है कि वह मूर्ति पर नजर नहीं रखता। मूर्ति ने अपने कंजूस पिता से आग्रह किया कि कम से कम उसकी तीन महीने की तनख्वाह दे दो जिसके लिए उसने काम किया है लेकिन मूर्ति के कंजूस पिता इस बात को अस्वीकार कर देते है और इसके बाद मूर्ति हताश होकर वहां से चला जाता है।
मूर्ति के माता पिता काफी चिंतित थे और वे अपने बेटे को सही रास्ते पर लाने के लिए और उसकी शरारतों को रोकने के लिए दिमाग लगाते हैं। मूर्ति के माता पिता इस मसले पर बीरबल से सलाह लेने का निर्णय लेते हैं। इसी बीच बीरबल को झामू के साथ किए गए दुर्व्यवहार के बारे में पता चलता है साथ ही उसे यह भी पता चलता है कि इससे पहले भी ये ऐसा कर चुका है और ये लोगों को पैसे न देकर उनसे मुफ्त में सेवाएं लेने का आदी था। ये सब जानने के बाद बीरबल उस कंजूस को सबक सीखाने का निर्णय ले लेता है इन सब बातों से अंजान मूर्ति का कंजूस पिता बीरबल से मदद करने का आग्रह करता है वो बीरबल से ऐसे कुछ सुझाव मांगता है जो शरारती मूर्ति को अच्छे से पालने में मदद कर सकें।
बीरबल उसे सुझाव देता है कि तुम एक अच्छा शिक्षक रख लो जो मूर्ति को गुणवत्तापूर्वक प्रशिक्षण प्रदान कर सके और यह एक अच्छा तरीका भी है उसे दिन भर व्यस्त रखने का। यह तरकीब कंजूस के लिए काम कर जाती है मूर्ति का जो नया शिक्षक (पीटर) था वो बहुत ही ज्यादा मेहनती था और उसने गंभीरता से मूर्ति को जिंदगी के बारे में काफी अच्छी चीजें सिखाईं। वो यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्ति अपनी उर्जा अच्छे और रचनात्मक कार्यों में लगाएगा।
समय के साथ मूर्ति के स्वभाव में भी काफी बदलाव आता है मूर्ति अब बड़ों का आदर करना सीख जाता है, साथ ही आस पास के लोगों के प्रति भावुक होने लगता है लेकिन जैसे ही तीन महीने बाद पीटर अपनी तनख्वाह मांगता है तो कंजूस मना कर देता है और उसे एक पैसा भी देने के लिए राजी नहीं होता। कंजूस उस पर आरोप लगाते हुए कहता है कि वो उसकी तुलना में बहुत अधिक खाना खा गया जितना की उसने उसे काम पर रखने से पहले सोचा था। दोनों के बीच काफी बहस होती है।
बीरबल उस दौरान कंजूस के घर आया हुआ था। स्थिति के बारे में पता चलने के बाद बीरबल उसके सामने एक ऐसे टीचर को पेश करता है जो उसके बेटे को मुफ्त में पढ़ाएगा और खाने के लिए एक दाना भी नहीं लेगा। कंजूस को ये प्रस्ताव इतना अच्छा लगा कि वो इससे इनकार नहीं कर पाता और उसने बीरबल से उस नए शिक्षक का परिचय कराने को कहा। बीरबल ने एक चाल चली और एक शर्त रखी कि वो तभी उसे नए शिक्षक से मिलवाएगा जब वो झामू और पीटर की तनख्वाह देगा जो उसने काफी समय से रोक कर रखी हुई है।
कंजूस इस बात के लिए राजी हो जाता है और अपने भारी मन से सभी के पैसे दे देता है। जब उसने बीरबल को नया टीचर लाने को कहा तो बीरबल ने कंजूस को गौतम बुद्ध की मूर्ति देते हुए कहा कि ये ही पूरे संसार के सबसे बड़े शिक्षक हैं। इस बात पर कंजूस हंसा और उसने स्वीकार किया कि बीरबल ने बड़ी ही चालाकी से उसे इस बात का एहसास करवाया कि मूर्ति को एक अच्छे शिक्षक की जरूरत है और उसे अच्छी रकम दी जानी चाहिए।