हिंदी नैतिक कहानी: झूठी शान आफत में जान

अविनाश आज उदास मन से स्कूल से घर लौटा। क्या स्कूल में किसी से झगड़ा हो गया या फिर अध्यापक जी ने पढ़ाई के बारे में मारा? पता नहीं अविनाश आज क्यों उदास है।

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झूठी शान आफत में जान

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हिंदी नैतिक कहानी: झूठी शान आफत में जान:- अविनाश आज उदास मन से स्कूल से घर लौटा। क्या स्कूल में किसी से झगड़ा हो गया या फिर अध्यापक जी ने पढ़ाई के बारे में मारा? पता नहीं अविनाश आज क्यों उदास है। अविनाश को उदास देख उसकी मम्मी के मन में तरह तरह के प्रश्न उमड़ने लगे। अविनाश के सिर पर हाथ फेरते हुए आखिर मम्मी ने पूछा "क्या बात है बेटे अविनाश? आज उदास कैसे बैठे हो?" (Moral Stories | Stories)

मम्मी का इतना कहना था कि अविनाश की आँखों से आंसू झलकने लगे। मम्मी ने सांत्वना देते हुए पूछा "क्या अध्यापक जी ने मारा है? या किसी से झगड़ा हो गया? मैंने तो तुम्हें कभी उदास नहीं देखा"।

"नहीं मम्मी, आज मेरे साथी दोस्त पंकज, रोहित और राणा ने मेरी खिल्ली उड़ाई है"। अविनाश ने सुबकते हुए कहा।

"क्यो?" माँ ने पुछा।

"वे सभी स्कूल में खाने के लिए सौ दो सौ रूपये लाते हैं। आज मैं भी उनके साथ था मैंने भी कैन्टीन वाले से पाँच रूपए की चीज देने को कहा तो दोस्तों ने कहा कंजूस पिता का कंजूस बेटा" अविनाश ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी कर दी। (Moral Stories | Stories)

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"तो बेटे इसमें रोने की क्या बात है? कल से उनका साथ छोड़ दो"। चलो आओ अब खाना खाते हैं अविनाश ने...

"तो बेटे इसमें रोने की क्या बात है? कल से उनका साथ छोड़ दो"। चलो आओ अब खाना खाते हैं अविनाश ने खाना खा लिया लेकिन अभी तक उसका मन शांत नहीं हुआ था वह स्कूल का होमवर्क करके खेलने निकल गया। खेलने के बाद जब घर आया तो पापा ऑफिस से आ चुके थे उसने पापा से कोई बात नहीं की। उदास मन से पढ़ने बैठ गया। अभी तक स्कूल वाली बात उसके दिमाग में घूम रही थी। 

रात को सब सो चुके थे, लेकिन अविनाश की आँखों से नींद कोसों दूर थी। वह दोस्तों के साथ बराबर में खड़ा होना चाहता था। वह रात भर इसी सोच में डूबा था कि उसके दिमाग में एक तरकीब आ गई। वह खुशी से झूम उठा। उसने मम्मी की गुल्लक से चुपचाप सौ रूपये निकाल लिए अब तो पंकज, रोहित और राणा के साथ उसकी अच्छी पटने लगी। अविनाश रोज मम्मी की गुल्लक से सौ रूपये निकाल लेता। उसकी मम्मी को बात का पता नहीं चला। क्योंकि गुल्लक में उन्होंने कभी हाथ डालकर नहीं देखा था। (Moral Stories | Stories)

स्कूल में बोर्ड के फार्म भरने शुरू हो गए थे तथा इस बार अविनाश भी हाई स्कूल बोर्ड का विद्यार्थी था। उसे फार्म के साथ फीस भी जमा करानी थी। वह मम्मी के पास जाकर बोला "मम्मी कल मुझे पाँच हज़ार रूपये दे देना, क्योंकि कल मैं बोर्ड की फीस जमा करांऊगा तथा कुछ किताबें भी लानी हैं"। 

मम्मी ने हां कहकर सिर हिलाया और काम में लग गई, अगले दिन अविनाश ने स्कूल जाते समय मम्मी से रूपये मांगे, अविनाश की मम्मी कमरे में गईं और गुल्लक उठा लाईं और उसमें से पैसे निकालने लगीं। लेकिन उसमे कम पैसे पाकर बोलीं "अरे यह क्या, 3500 रूपये?"

अविनाश का मुंह पीला पड़ गया, वह बोला "अरे क्या इसमें इतने ही पैसे होंगे.."।

अविनाश की मां ने कहा "नहीं बेटा! मैंने तो इसमें कुछ दिन पहले ही 12000 रूपये रखे थे और वो भी तुम्हारी स्कूल की फीस के लिए। क्या तुमने तो नहीं लिए?" (Moral Stories | Stories)

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अविनाश का सिर शर्म से नीचे झुक गया। वह सुबक उठा "मम्मी, मुझे क्षमा कर दो। मम्मी, मैंने ये पैसे मित्रों के सामने शान दिखाने के लिए चुराये थे। मुझे माफ कर दो अविनाश ने सच्चाई बयान करते हुए कहा"।

अविनाश को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, इसलिए उसके मम्मी पापा ने उससे कुछ नहीं कहा। अविनाश की फीस का इंतजाम पापा ने उधार लेकर कर दिया। अविनाश ने मम्मी पापा से वादा किया कि वह अब कभी झूठी शान नहीं दिखाएगा और सदैव सच्चाई का सामना निडरता के साथ करेगा। (Moral Stories | Stories)

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